Friday 31 July 2015

कविता १०६. आँखों ने देखी

                                                             आँखों ने देखी
दुनिया के हर हिस्से में कोई ओर ही नाम लिखा होता है हमने जो आँखों से देखा उस सोच से भी अलग किस्सा बयान होता है
दुनिया के हर किस्से में कोई बात तो है हर अल्फ़ाज़ में अलग अंदाज तो है पर हम तो सिर्फ उसे समजते है जो आँखों ने देखी है
दुनिया की कही पर हमें विश्वास नहीं हम तो बस अपनी आँखों पर यकीन रखते है जो हम सोचते है हर बार वही सोच हम रखा करते है
जिसमे हमें सचाई दिखती है पर जाने क्यों लोग सिर्फ दुनिया पे यकीन   किया करते है जब जब हम आगे बढ़ जाये तो हम आँखों पे ही यकीन करते है
काश के लोग भी आँखों से देख लेते सिर्फ कही पर भरोसा नहीं करते पर लोग अक्सर सिर्फ कही सुनी बातों पर यकीन किया करते है
जब जब हम बात को समज लेते है वह अक्सर हमने खुद से कही होती है क्युकी अक्सर हम बस वही बात समज लिया करते है
जिनमे सारे मतलब है छुपे पर लोग कहा सचाई समजना चाहते है वह तो बस आसान सी बात मन में रखा करते है और उसे समज लिया करते है
सचाई जो मुश्किल लगे तो उसे आसानी से अनदेखा किया करते है जब जब हम समजते है जीवन को वह तो सिर्फ वही है जिसे हम जिया करते है
दुनिया में तो कई रंग होते है कही सुनी बातों से हम सिर्फ सचाई पर यकीन खोते है पर काश के लोग समज लिया करते तो अँधेरे में उम्मीद के दिये जला करते है
आँखो से जो दुनिया दिखाती है उसे हम जीया करते है शायद कुछ लोग समज पाये उसे पर हमें तो हर बार उसे ही समज लिया करते है 

कविता १०५. कुछ साथी

                                                                      कुछ साथी
खुबसूरत रंग को दुनिया तो समज लेती है उनके अंदर जीवन की खुशियाँ ही तो वह पाती है पर जब जब दुःख आ जाये तो अपने आप को दूर कर लेती है
दुनिया में तरह तरह के रंग तो अक्सर होते है खुशियाँ तो वह ले लेती है पर दुःख को अपने लिए छोड़ के भी चली जाती है
जब जब दुनिया में तरह तरह रंग उतर कर आते है हम चाहते है खुशियों के साथ वह हमारे दुःखो को भी जीवन में ले लेते  पर दुनिया ऐसा नहीं करती है
वह खुशियों को तो अपना लेती है पर दुःख तो हमारे लिए अक्सर छोड़ के चली जाती है खुशियाँ के अंदर तो दुनिया हमेशा साथ ही होती है
पर जब जब गम आते है वह मन की चोटों को समज ना पाती क्युकी दुनिया के पास ऐसा वक्त नहीं है जिस में वह हमें समज पाती है
पर हम क्यों उम्मीद करे उनसे समज की जो वह उपर से दिखलाती है वह तो सिर्फ वही सोच है जो दुनिया में असर कर जाती है
पर सचाई तो बस यही है की दुनिया तो आसानी से मुकर जाती है चोट लगे जो अपने दिल को तो वह हमें ही इल्जाम  लगाकर खुद पीछा छुड़ाती है
जब जब दुनिया को समजो तो दुनिया अलग अलग रंग ही दिखाती है दुःख में तो सिर्फ वही साथ देते है जो सचमुच में हमारे साथी है
जब जब हम आगे बढ़ जाये दुनिया खुशियाँ लेने आती है पर हर बार दुःखों के पलों में दुनिया साथ नहीं देती बस दोस्ती ही काम आती है
पर जब गम आते है तो जिन्दगी बताती है कौन अपना दोस्त है और कौन है दुनिया क्युकी दुनिया का हिस्सा बन के भागे ऐसे भी कई साथी है

Thursday 30 July 2015

कविता १०४. पानी का बहना

                                                                  पानी का बहना
पानी को तो बस बहना है उसे छू कर खुशियों को समजना है पानी के उस बहने से जीवन को हर पल समजना है पानी को छू लेने से चंचलता तो मिल जाती है
पानी को हम समज लेते है तो उसमें हम दुनिया पाते है पानी की हर एक बून्द में दुनिया को समज जाते है पानी को जो हम समजे तो दुनिया को क्या समज पाते है
पानी के हर एक रंग में हम अपनी दुनिया पाते है पानी को बस छू लेते है तो खुशियाँ पाते है पानी में जब जब हम देखे अपना ही रूप पाते है
वह रूप हमें जो छू लेते है उसके अंदर दुनिया पाते है पानी के रूप अलग है जिनमे जीवन दिखता है पानी के भीतर दुनिया का भी अनोखा रंग दिखता है
पानी में कई कई तरह के रूप हमें दिख जाते है उस पानी में जो जीवन है उसे हर बार हम नहीं समज पाते है पानी में जो ठंडक है
वह हम कई और कभी भी नहीं पा सकते है जब जब पानी को छू लेने पर मनको खुशियाँ देते है पानी तो वह एक अहसास है जो हर बार हमें छू लेता है
पानी तो वह सोच है जो हमें खुशियाँ दे जाती है पानी के हर एक रूप में हमें दुनिया नयी नज़र आती है जब जब हम आगे बढ़ते है
खुशियाँ हमें नज़र आती है जो पानी हमें देता है क्युकी पानी तो बचपन का साथी है पानी तो वह बात है जिसमे दुनिया नज़र आती है
हाथ जब पानी में डालो तो मन को ठंडक मिल जाती है पानी तो वह चीज़ है जिसमे पानी के अंदर जीवन होता है पानी को जो देखो तो भी दुनिया नयी दिखलाता है
पानी तो वह साथी है जो हर बार नज़र आता है जो खुशियाँ दे कर दुनिया को नयी नयी उम्मीदों को जगह दे देती है पानी को  समज लेने पर दुनिया सुंदर लगती है
पानी को समजो तो उसमे भी खुशियाँ हासिल हो जाती है पानी की वह बून्द हमें खुशियाँ देती यही पानी तो अपना साथी है नदियाँ हो या नल हो वही खुशियाँ देता है 

कविता १०३. एक तिनका

                                                                    एक तिनका
हर बार जो सोचा हमने वह हो जाये यह जरुरी नहीं होता क्युकी हम तो तिनका है इस दुनिया में उस तिनके का हर बार सही होना जरुरी नहीं होता
जरुरी  तो होता है उस सच को समजना जिस में सिर्फ हँसी नहीं रोना भी होता हो उस सच को समजना जिस में सिर्फ पाना नहीं खोना भी होता हो
पर हर  उस सचको अपनाना जरुरी नहीं लगता यह दिल समजता है की वह बदल जायेगा पर उसको समज पाना आसान नही होता
तिनके में दुनिया छुपी होती है पर उस तिनके को समजाना दुनिया के लिये जरुरी नहीं होता तिनके को तो खुद ही समजना है क्युकी वह तिनका है उसे अपनाना दुनिया के लिये जरुरी नहीं होता
हम तूफान में उड़ जाये तो दुनिया को अफ़सोस नहीं होता पर अगर हम कुछ हासिल कर जाये तो दुनिया को हमेशा अचरज है जरूर होता
काश दुनिया समज पाये की वह बस तिनके से बनी है उस तिनके को ठुकराना सही नहीं होता जो अपनाये उस तिनके को वह जिन्दगी को आसानी से है समज लेता
जब जब हम आगे बढ़ जाये तो उन खयालों को समजना है बड़ा जरुरी होता तिनके के अंदर से जो हम दुनिया को समज ले तो जीना मुश्किल नहीं होता
क्युकी तिनका ही तो आखिर जीवन का सच है बिन तिनके के कुछ भी नहीं बनता वक्त मिल जाये तो दुनिया को समज लेना वह तिनका ही होती है बाकि कुछ नहीं होता
जो मिट्टी से बनती है और मिट्टी में जाती है पर बीच में क्या करती है उसी पर जीवन हर मोड़ पे है बना होता
तिनके को अगर जानो तो समजोगे तिनके से अलग जीवन का कोई भी मतलब नहीं होता
दुनिया नहीं समजती है यह दुनिया की कमी है वरना तिनके से बेहतर दुनिया में कुछ भी नहीं होता क्युकी तिनका तो वह सच है जिसमे जीवन का मतलब है छुपा होता 

Wednesday 29 July 2015

कविता १०२. मालिक और गुलाम

                                                              मालिक और गुलाम
जब जब हम आगे बढ़ते है  ईश्वर आप  हमें समज लेना चाहे कोई साथ दे या ना दे आप बस हमारे साथ ही रहना आप को दिल में पाया है
किसी ओर दिशा में आप को ढूढ़ने का ख्वाब भी मन में कभी ना आया है जब जब हम आगे बढ़ते है आप बस हमारे साथ साये की तरह रहना मदद्त नहीं सिर्फ साथ ही काफी है
यही है हमारे मन का कहना हम जाने आप हर जगा हो पर फिर भी जब जब हम डर जाते है उस पल आप हमारे साये में ही रहना क्युकी बाकि सब अलग हो जाते है
बस साया है वह बहना जो कभी दूर नहीं जाता है यही है हमारे मन का हर बार कहना जब जब उम्मीदों में अंदर जीवन का जिन्दा रहना है
ईश्वर तेरे संग है अक्सर जीवन में खुशियो का हमेशा है रहना इसलिए नहीं की जीवन में तकलीफे ना हो पर इसलिए के तेरे साथ में गम भी लागे खुशियों का एक गहना ईश्वर आप बस साया बन के रहना है
हम नहीं चाहते है आप कुछ दे हमें बस आपका साथ हर पल चाहते है जो हमें आगे  बढाये चाहे तो सिर्फ आपकी छाया इस सर पर हम चाहते है
जब जब हम जीवन में हर मोड़ पर कुछ ना कुछ समजना चाहते है राहों पर जब आगे बढ़ते है उन पर वह हार भी जाये तो मन में खुशियाँ चाहते है
वही खुशियाँ मन में अक्सर आ जाती है जब आप होते हो ईश्वर तो गम के अंदर तरह तरह की उम्मीद जगाते है सारे गम छोड़ कर हम आपके सोच में खुश ही रहने लग जाते है
जब जब अपना साया बनके ईश्वर आ जाये किसी गम से हम नहीं डरते क्युकी आप हमें कुछ दे या ना दे पाये आप हमारे साथ तो चलते रहते है
आपकी हर पुकार पर हमें हाजीर होना है आप  मालिक हो हम बस गुलाम है पर फिर मालिक साथ रहे यह गुलाम का कहना है
क्युकी शायद  कभी कभी आप इस गुलाम  का काम महसूस ही नहीं करते है और खुद ही चल देते है और हमें बुलाना ही शायद आप भुला ही देते है 

कविता १०१. राह और सोच

                                                                     राह और सोच
जीवन के हर दो राहों पर हर बार हम कुछ ना कुछ तो चुनते है कभी कभी हम उस सोच को जीवन में समजते है पर कभी कभी बिना सोचे समजे ही कुछ चुनते है
पर हर बार वह सही नहीं होता जो होशियार होते है वह उस बात को समजते है जीवन के हर मोड़ पर हम तरह तरह की सोच देखते रहते है
उन राहों पर जिन पर हमें सोच मिले उन्हें हर बार हम नहीं समजते है सोच समज कर राह को चुनना अक्सर लोग कहते है
पर जब उस विधाता ने ही चुनी है राह हमारी तो उस पर हम क्या कर सकते है चाहे जितना भी सोचे पर राह पर तो उसी चलते है
तो कभी कभी हम सोचते है की इस सोच पर हम जो सोचे तो खयालों पर असर भी होते है अगर बस वही राह है हमारे लिए तो हम उतना क्यों सोचा करते है
जहाँ मुश्किल तो मौजूद नहीं वहाँ हम मुश्किलें भी ढूढ़ लेते है तरह तरह की सोच जिसके अंदर हम नयी दुनिया को हासिल कर लेते है
पर अगर वह सोच हमारे लिए हासिल ही नहीं है तो फिर हम क्यों उस सोच को समजने की हर बार कोशिश करते रहते है
हमें जो हासिल है वही सोच के अंदर हम नये नये किनारे ढूढ़ते रहते है जब हम ऐसा करते है तो ही हम नयी सोच को हासिल कर लेते है
चारों ओर जो सोच बसी है उसे हम कई बार समज नहीं सकते है पर फिर भी हम अपनी सोच को अपने पास रख कर उसी राह पर चलते है
जो हम दुनिया में हासिल करते है क्युकी राह तो तय है बस एक हमारी सोच है जिस को जीवन में हम सही कर सकते है 

Tuesday 28 July 2015

कविता १००. जीवन में असर कर जाती है

                                                     जीवन में असर कर जाती है
सोचो तो जीवन में बस हर बार सुबह होगी चाहो तो जीवन में हर बार नयी सोच जिन्दा होगी  अगर जीवन में तरह तरह के असर होगे तो ही जीवन में अच्छी खुशियाँ होगी
नयी नयी सोच जो मन पर अच्छा असर करती है हम यही सोच जिस पर कोई ना कोई प्यारासा असर करती है पर जीवन को अजीब असर कर देती है
सारे तरह के असर जो अजीब है वह भी प्यारे असर कर देती हर जीवन हमें लगता है वह अजीब चीज़ है जो जीवन पर असर कर देती
अचानक नयी सोच जो जीवन पर असर कर देती हर सोच के अंदर नयी तरह उम्मीद हमें दिखती है जब जब हम आगे बढ़ जाते है उम्मीद उसे दे देती
हर बार जब जब हम आगे बढ़ जाते है उम्मीदों में नयी शुरुवात कर देती है सारी सोच जिसके अंदर नये नये ख़याल लाती है
जब जब हम आगे चलते है हर बार हमें वह समजाती है सोच के अंदर रोज रोज जो अच्छे खयाल हम लाते है सारी सोच जो मन पर असर देती है
पर उसी सोच के अंदर नये ख़याल अगर मन में लाती है और मन के  भीतर कोई तो असर वह कर जाती है जीवन में ऐसा उज्जियारा लाती है
जब जब मन के हम सोचे उम्मीद ही कोई ना कोई असर दिखलाती है तब जब हम आगे बढ़ जाते है उम्मीदों के सहारे ही दुनिया बहार लाती है
जीवन के अंदर जो सोच हम पर असर कर जाती है वही असर आगे जाकर जीवन में उम्मीदों के कई किनारे दे जाती है
जीवन तो सोच पर निर्भर है वह हर बार राह दिखाती  है उम्मीदों के सहारे जीनेवालो को ही अच्छा पल हासिल हो जाता है ho

कविता ९९. जीवन के कुछ अंग

                                                              जीवन के कुछ अंग
हम जो बात को आसानी से समज पाते जिन्दगी में नये नये पड़ाव नज़र आते पर कभी कभी हम फस जाते है बिन मतलब के क्युकी जीवन को आसानी से कहा समज पाते है
जब जब हम किसी बात में कुछ मतलब ढूढ़ते तो वही आसान राह को मुश्किल बना लेते है हम पर फिर भी हर बार जो हम जीवन को समज लेते है
तो जीवन में तरह तरह के अंगों को समज पाते तो बता सकते की कई मोड़ है उस हर अंग में हम जीवन को सचमुच में नहीं जी पाते है
जब जब उन मोड़ पर हमें दिखती है यह दुनिया तब तब हम उम्मीदों को धरे मन में आगे चले जाते है पर जब हम उस जीवन के हर अंग को ही नहीं समजे है
तो भला उस जीवन को हम क्या जी पाते है जब जब हम जीवन को नहीं समज सके है हर पल हर अंग को समज लेते तो ही हम उस जीवन में हर बार संभल पाते है
हम जो चाहते है की हर बार हमें जीत मिले तो हम समजते  है की हर अंग को हम समजले जाने क्यों हर बार हमें मुश्किलसी है
जाने क्यों हर बार जिन्दगी में दूर मंज़िल सी है पर फिर भी हम चाहते है वही जिन्दगी का रंग हमें मिलता रहे और शायद उसी में हम खुशियाँ भी पाते है
पर फिर भी जब जब हम उन अंगों को समज नहीं पाते है हर बार उन अंगों के बिन  हम जिन्दगी को गलत समज लेते है
शायद उन अंगों को समजना जिन्हे हम भुला देते है जिन्दगी के हर अंग में ही हम अपनी दुनिया पाते है जिनको हम जब जब समजे जीवन में सफल हो जाते है
हम जीत सकेंगे हर कसोटी को अगर हम अपना वक्त गवा कर उसके अंगों को जाने उसे दिल से समजे और उसे दिल से पेहचान लेते है 

Monday 27 July 2015

कविता ९८. एक प्यास

                                                                       एक प्यास
एक प्यास तो मन में होती है जो हमें उम्मीद देती है मन के अंदर प्यास ही है जो हमें जीवन देती है हर बार जब कोई प्यास हमें छू लेती है
उस प्यास के अंदर रोज रोज नयी सोच जो जिन्दा होती है उसे समज कर हर बार उम्मीद तो प्यास के रूप में पैदा होती है
प्यास तो भीतर से हर रोज कोई ना कोई तो समज दे जाती है वह समजाती है मन को उम्मीदों से भी भर देती है पर बस वही प्यास अगर गलत हो तो आँसू भी दे देती है
वह प्यास जिसके अंदर पूरा जीवन भर जाता है वही जिन्दा रखती है उम्मीदों को और वही उन उम्मीदों को तोड़ भी सकती है
प्यास तो वह चीज़ है जो जीवन में जब आती है इन्सान को ऐसी मदहोशी छा जाती है की सही जगह वह जग जाये तो दुनिया बदल देती है
और गलत जगह आ जाये तो बगीया उजड़ भी सकती है बस प्यास तो वही है जिसमे जीवन को नयी उम्मीद भी दे देती है
हर बार जब प्यास मन को छू ले दुनिया के रंग बदलती है प्यास तो वह चीज़ है जो दुनिया को नया रंग दे देती है जब जब प्यास को महसूस करते है
तब जाने क्यों अपनाते ही नहीं की प्यास तो हमारे मन के भीतर नया उम्मंग भर देती है पर अगर प्यास गलत हो तो मन में कई भरम भर देती है
प्यास तो एक वही कशिश है जो हमारे सर चढ़ कर ही दम लेती है समजो और समजाओ तो ही प्यास संभलकर चलती है
अगर एक बार प्यास जग जाये तो उसे समजकर आगे बढ़ाये तो वह जन्नत देती है नहीं तो वही हमारी और हमारे अपनों की कबर भी बन सकती है
तो प्यास को समजो और खुद को समजो क्यों प्यास सही ले जाती है और अगर वह सही है तो वह ईश्वर के कदमों में जीवन को ले जाती है और जिन्दगी मौत से भी नहीं कतराती है 

कविता ९७. कोई सोच

                                                                  कोई सोच
जब जब मन को कोई सोच छू जाती है हर बार जीवन में कोई ना कोई ख़याल मन में जगाती है तब तब मन को सोच जो हर बार बताती है
उस सोच को जिस के अंदर कोई नये तरह के खयाल लाती है उस ख़याल में अक्सर हमें कोई तो उम्मीद नज़र आती है
पर जब सोच ही गलत पुरानी हो जाती है वह हर बार उम्मीदों के उपर कोई असर तो मन में पैदा कर जाती है सोच के अंदर नयी दुनिया जिन्दा हो जाती है
जब जब सोच को हम समजे तब तब जीवन पर कोई तो असर कर जाती है बार बार इस सोच में हम अपनी दुनिया जगाते है
हर बार हम उम्मीदों के संग आगे बढ़ जाते है सोच के अंदर जो भी हम लाये वही हर बार हमें आगे ले जाये हम तो मन चाहते है
की सोच को हम समज पाये पर हर सोच इतनी अलग होती है की वह हम पर हर बार कोई ना कोई असर तो जरूर कर जाती है
सोच के अंदर हम हर बार कुछ तो समज लेते है सोच भी हमें साथ में उम्मीद दे जाती है हर किसम की सोच के अंदर नये ख़याल आते है
हर सोच के भीतर में हम नयी उम्मीद लाते है जब जब हम सोच के अंदर खुशियाँ  लाते है सोच के अंदर हर तरह के नये ख़याल लाते है
सोच में सारी बाते जो मन को समजा देती है वही बाते हर बार जो सोच दिखाती है उनको समजो तो दुनिया जन्नत बन जाती है
पर अफ़सोस तो यह है की गलत सोच भी इन्सानो में होती है जो हर बनती है और उम्मीदों को  बरबाद कर देती है 

Sunday 26 July 2015

कविता ९६. मुस्कान हमेशा कम होगी

                                                        मुस्कान हमेशा कम होगी
हर मोड़ पे आसानीसे समजे जीवन वह गीत नहीं पर सही राह छोड़ कर चले तो जीवन में जीत नहीं जो इस बात को समज चुका हो उसके लिए मुश्किल जीवन की कोई रीत नहीं
हर बार जब जब हम दुनिया को समजे उसमे नयी नयी सी सोच देखी है पर जो सब के संग हसकर रहना सिखाये उससे बेहतर कोई रीत नहीं है
जब आगे बढ़ जाये मुस्कान से बेहतर जीवन कोई प्रीत नहीं मुस्कान ही जो हमें बनाये बाकी सब बातों से उठकर आगे बढ़ जाने की उसकी रीत रही है
मुस्कान ही है जो जीवन देती है हर मोड़ पर हमें खुशियाँ चुपके से दे देती है हम जब आगे बढ़ जाते है मुस्कान ही दुनिया देती है
चाहे कोई कुछ भी कह दे मुस्कान ही हर बार सही होती है जो दुनिया को मुस्कान दे वही दुनिया में सही होता है आखिर वह दौलत जिसके पीछे हम भागे वह मुस्कान ही तो हमें देती है
जब जब जीवन में रंग बदलते है तब तब मुस्कान ही तो हमारा साथी बनती है लोग कुछ भी चाहे दुनिया में पर हमारे लिए तो सब कुछ मुस्कान ही होती है
जो माँगे उस खुदा से वह अपने लिए मुस्कान ही थी पर आज कल नहीं माँगते है वह क्युकी उसने तो वह कब की दे दि थी पर अब वह खोयी है
तो हमें ही तो वह ढुढ़नी थी कभी किसीसे पूछे कहा है तो वह सोचते है वह एक लड़की थी तो कोई ना समजे उस मुस्कान को मन को छू लेती थी
हर कोई जो समज सके काश मुस्कान को दुनिया में उतनी किंमत होती पर कोई कोई समजे या ना समजे दुनिया में  मुस्कान हमेशा अहम ही होगी
पर फिर भी अफ़सोस है लोगों में वह कम होगी क्युकी जो थोड़ी थोड़ी उसे देंगे उनके लिए तो मुस्कान हमेशा कम ही होगी 

कविता ९५. अपने दम पर

                                                                 अपने दम पर
जाने क्यों हम दूसरो को ढूढ़ते है उम्मीदों के साये हमें हर पल बस यही लगता है की दुसरे ही हमारे लिए लायेंगे उम्मीदों के साये
जब  हर एक मोड़ पर हम ही काफी होते है वह करने के लिए जो हम चाहे अपने साथ जो चलते है वह भी बड़े मुश्किलों से ही ढुढेगे वह साये
बाकी जो बाते करते है वह तो बस बातों में ही रहेंगे वह हमें उम्मीद कहा दे पाये अपना सहारा हम खुद है यह जो समजे वही किनारा पाये
अनजानों से क्या मिलेगा जब जाने पहचाने भी कभी कभी देने से कतराये जो हम आज तक चल सके है आसानी से तो क्यों अचानक हम दूसरों से मांगे वह उम्मीदों के साये
जब जब हम आगे बढ़ते है उम्मीदों पर ग्रहण पाते है तब ईश्वर हम से अपने दम चलने की सोच ही हमें दे जाये
तो फिर क्यों उसे ठुकराकर हम आगे बढ़ते जाये
हम ही अपनी कश्ती है और हम ही अपना किनारा है यह जो जीवन में समज जाये वही जाने अहमीयत इस जीवन की बाकी कुछ भी ना समज पाये
जब जब आगे बढ़ते है हमे  तभी मिलते है  अंधियारों के साये कोई साथी मिल भी जाये और मदद्त कर भी दे तो क्या आखिर कब तक हम वह मदद्त पाये
आखिर हम भी तो एक चट्टान है जिससे कई लोग लगाये हुए है उम्मीदों के साये शायद हम यह समज नहीं पाते है पर हम भी दोस्तों के लिए है उम्मीदों के साये
बिन सोचे बस जो यह कह दे की अपनी मुसीबत वह अपने दम पर पार कर के जाये उसे ही तो खुदा देगा वह उम्मीद जिसके लिए हर तरस जाये
मत माँगो मदद्त उससे क्युकी कितना भी वह दे वह काफी ना हो पाये जीवन हर बार नयी मुसीबतों संग हमें नयी राहे दिखाये 

Saturday 25 July 2015

कविता ९४. एक ही किंमत में कई खेल

                                                         एक ही किंमत में कई खेल 
जब जब हम संभल जाये कुछ नया ही होता है बुरा नहीं पर मन को वह अलग जरूर लगता है शायद जिन्दगी को वह खेल बहुत भाता है
जिसमे हर बार कोई कोई नया मौका जरूर जिन्दगी में मिलता है हर बार हर खेल में मन को जीवन अलग नजर आता है और हर खेल को वह समज पाता है 
जब जब हम दुनिया को समजे वह हमें फिर से समजाता है की कुछ अलग ही चीज़ है जिसे समजना अक्सर रह जाता है 
क्युकी जिन्दगी के हर मोड़ पर हम कुछ तो समज पाते है जो पहले नहीं समज पाये है हर बार खेल के अंदर कुछ ना कुछ हम जरूर समज पाते है 
बार बार जीवन को जो हम समज तो पाते है जिन्दगी के कई असर नज़र आते है हम तो बस यही सोचते है हर पल जब भी हम आगे बढ़ जाते है 
जिन्दगी के अंदर तरह तरह की चीज़े होती है जिनके नतीजे तो हर बार हमें नज़र आते है जिन्दगी के अंदर जो भी असर लाते है 
पर हम हर बार यह सोचते रहते है क्युकी जिन्दगी में मन को कई बाते छू जाती है जो जीवन पर हर बार असर लाती है 
जब जब हम आगे बढ़ते है शायद जीवन के हिस्से हर बार कुछ नया सुनाते है हम अगर जीवन को नयी बात  बताते है 
जीवन में नये मोड़ हमेशा नज़र आते है काश उन मोड़ों को एक बार में ही समज पाते हम क्युकी इस तरह से तो जिन्दगी हर बार नया नया इम्तिहान लेती है 
जिन्दगी को अगर हर हिस्से में समज पाये हम तो जिन्दगी हमें नये नये मोड़ दिखाती है तो शायद यह जिद्द ही गलत है
जो हम सोचते है जिन्दगी को एक ही बार में समजले हम क्युकी एक ही जीवन में यह जिन्दगी हमें कई रंग दिखा देती है एक ही किंमत के कई खेल दिखा देती है 

कविता ९३. जूठ की जीत

                                                                    जूठ की जीत
जूठ कितना भी जीत जाये पर आखिर में सच्चाई की जीत होती है क्युकी सच्चाई तो हसती है और रोने के ही लिए जूठ की उमर होती है
जूठ कितना भी आगे बढ़ जाये वह खुशियाँ नहीं पाता है क्युकी खुशियों में तो  मन की अच्छाई  जरुरी होती है जो जूठ कितना भी हस ले वह मुस्कुरा नहीं पाता है
क्युकी मुस्कान तो सच्चाई की देन होती है जब जब हम सोचे जूठ के जीत के बार में तो लगता है जैसे उस जीत से अच्छी तो हमारी हार होती है
क्युकी जो जीत कर भी खुश नहीं है वह क्या जीत होती है जूठ इन्सान को इन्सान नहीं रखता जूठ तो अपना मुक्कदर बदलता है
क्युकी जूठ से ही बरबादी इन्सान को है मिलती पर  जब तक  सच सामने न आये जूठ की दुनिया हमेशा आगे दिखती है
पर सच्च तो आता ही है उसमे जाने क्यों लोग को शक होता है पर सच का आना मुकदर का अहम फैसला होता है
पर जाने क्यों लोगों को उसमे भी सच्चाई नही दिखती इसीलिए तो हमेशा जूठ की उमर है बढ़ती तो जूठ की उम्मीद पर हम आगे बढ़ते है
तब जिन्दगी में अपनी किस्मत है बिगड़ती हर बार जब हम आगे बढे तो बस जूठ के दम पर तो दुनिया है बिघडती सच्चाई के दम पर ही किस्मत चमकती है
पर जब तक यह दिखता नहीं तब तक दुनिया नहीं समजती की जूठ की उमर छोटी होती है और जूठ के साथ कभी दुनिया नहीं सवरती है
तो जूठ को भी लोगों को मौका देने दो ताकी बाद में ना कह दे की जूठ के ही दम पर उनकी दुनिया तो संभलती क्युकी दुनिया कभी भी जूठ से नहीं आगे बढ़ती है 

Friday 24 July 2015

कविता ९२. खुशियाँ और गम

                                                                खुशियाँ और गम
खूबसूरत सी बात कोई जिन्दगी में कभी होती है तो जीवन के डगर में बस खुशियों की बरसात होती है उन खुशियों क़ो एक पल ना जुदा होने दे हम खुशियों के साथ हर बार यही बात होती है
खुशियाँ तो मन को छू लेती है क्युकी हर बार उन खुशियों को समज लेते है हम पर खुशियों से जुदा नहीं होना चाहते है पर भी खुशियों की जन्नत से पता नहीं कभी कभी मायूसी भी पाते है
खुशियाँ तो जिन्दगी की वह डगर है जिस पर ही हम जीना चाहते है पर जाने क्यों गम भी हमारे साथी बनने की ख्वाईश अक्सर रख के हमारे साथ चलते है
हर मोड़ पर हमें खुशियों की तलाश सही है पर आजकल हम ग़मों से भी दोस्ती का सोचते है क्युकी शायद उन्ही के पास है हमारी खुशियों की चाबी जाने क्यों भगवानजी ऐसा करते है
जो अच्छी चीज़ों को काटो के बीच में ही रखते है पर कभी कभी लगता है वह काटे भी तो अच्छे ही है अगर वह हमें ना चुभते है
क्युकी उनके बीच से खुशियाँ मिलती है तभी तो हम जिन्दगी में जीता करते है खुशियाँ तो बहोत जरुरी है पर क्या उनके लिए काटे भी जरुरी है
यह सवाल तो मन में आता है पर जब गुलाब को देखते है तो लगता है काटे जैसे एक बड़ी अहम चीज़ है जो जरुरी है किसी चीज़ को आसानी से हासिल करते है
तो हम कहा उसके लायक बन पाते है सिर्फ मागते रहते है खुशियाँ उनको कैसे संभलकर रखे यह तो गम ही हमें सीखते है
तो खुशियों के चारों ओर जो गम है बसे वही हमें समजाते है की खुशियों में क्या करे हम क्युकी हमारे गम ही तो हमें दूसरों के गम समजाते है
तो खुशियाँ ही नहीं साथ में गम भी तो आते है तो उन गमो से कह दो कोई की वह भूले नहीं  की वह खुशियों का वादा साथ लाते है 

कविता ९१. कहना अभी बाकी है

                                                       कहना अभी बाकी है
कुछ लोग कहते रहते है की कहने को कुछ बाकी है कोई समजाये के हम इतना सुन चुके है की उन्हें सुनाने के लिए ही बस हर बार बाकी है
कुछ लोग जो खुद पे आते ही गम में दिखते है समजाये उन्हें कोई के बस उनका अब  खुदके ग़मों में रोना ही हमारी नज़र में बाकी है
जबान इस लिए होती है हम समजे और समजाये उन्होंने जबान सिर्फ इसलिए थी चलायी की हम हर बार चोट खाये पर शायद उस खुदा ने कहा इन्साफ अभी बाकी है
हम उसके बेहतरीन बद्दो में से नहीं पर हम जो कुछ भी है उसकी नज़र में इन्साफ के लिए काफी है तो जब उस खुदा ने कह दिया है तो अब भला क्या सुनना बाकी है
हमने जो सुना था और आपने सुनाया वही आपको समजने के लिए काफी है उसे फिर से एक बार सुन ले तो आप भी समज जायेंगे की अभी कुछ नहीं बाकी है
कुछ लोग तो बस यही कहते रहते है मौकों पे मौक़ों को माँगते रहते है पर हर बार हम उन्हें मौके देते जाते है शायद उनसे हमारा यही कहना अभी बाकी है
हर बार लोग कुछ समजते रहते है पर सोचना अभी बाकी है हर बार हमें लगता है की हम बस सुनते रहते है शायद समजना अभी बाकी है
पर कुछ लोगों को समजना जरुरी नहीं क्युकी उन्हें काफी समज चुके है अब हम और उन्हें समजाने की तो जरूरत ही नहीं है क्युकी उनका समजना काफी है
तो चाहे कितना भी कहे वह लोग हमें की उनका कहना बाकी है हम तो कहते है सच को इजाजत की जरूरत ही नहीं क्युकी सच का मरना अभी बाकी है
और वह होना मुमकिन ही नहीं क्युकी खुदा की मेहरबानी से इस दुनिया में अभी भी सच्चाई की किंमत है और बुराई की थोडीसी ही जीत हमारे नज़र में काफी है 

Thursday 23 July 2015

कविता ९०. तरीकों को बदलना

                                                           तरीकों को बदलना
पानी के छूने से जीवन पावन सा हो जाता है पर हर बार पानी हर चीज़ को तो नहीं बदल पाता है तो हर बार पानी जो सबकुछ धो लेता है
वह हर चीज़ साफ रखने के काम हर बार पानी आता है पर हर चीज़ ऐसी नहीं होती जिस पर पानी ही काम आता है आग पे उसको डालो तो वह मुसीबत बन जाता है
दुनिया हर चीज़ एक ही चीज सही नहीं होती चीज़ों को समजना मन को अहम सा लग जाता है पानी सी वह चीज़ आसान नहीं होती है
क्युकी हर चीज़ में अलग मतलब मन को  नज़र आता है हर वही सीधीसी राह नहीं होती जो काटो पर चलती है दर्द भी देती है ऐसी आग हर बार मिटानी नहीं होती है
क्युकी वही आग कभी चुल्हा जलाती है वही आग कभी सर्दी से बचाती है हर बार जीवन में वही कहानी नहीं होती है जिस मोड़ को ना समजे हम वह खुशिया बेईमानी नहीं होती है
क्युकी हम समजे या ना समजे उन खुशियों को हमारी किस्मत में तो लिखा है उन्हें पाना हक्क हमारा होता है तो आग को हम ना मिटाये यही हमारी खुद पे मेहेरबानी होती है
हर बार एक ही बात दोहराने से अच्छा है नयी बात को समजना भी जीवन में कभी कभी जरुरी होता है क्युकी हर बार पुरानी बात काफी नहीं होती है
आगे बढ़ जाओ जीवन में नयी चीज़ों के साथ यह बहुत जरुरी होता है क्युकी कभी कभी पुराने रास्त्तो में भी मुसीबतों का न्यौता होता है
हर बार चीज़े वही नहीं होती कभी कभी फरक को समजो यह भी हर बार जीवन में बातो को समजना जरुरी होता है और वह बाते बदलती रहती है
हर बार चीज़े वही नहीं होती है चीज़े बदलती है उनके साथ बदलना भी हर बार अहम और जरुरी होता है तो चीज़ों को समजना भी जरुरी होता है तरीको को बदलना भी जरुरी होता है 

कविता ८९. दुःख की जगह खुशियाँ

                                                       दुःख की जगह खुशियाँ
काश हर कोई हमें समज लेता पर जिदंगी में ऐसा नहीं होता अगर यह नहीं हो सकता तो काश हम ही दूसरों के मन का समज लेते काश उन्हों ने आसान इशारे कर दिये होते
पर मान लो अगर वह आसान इशारे भी करते तो भी क्या हम चीज़ को समजते माना की ज़िन्दगी में नये नये किनारे भी मिलते पर अफ़सोस तो इस बात का होता है की वह इशारे ना समज पाते
मन में हर बार नये किनारे भी होते पर जिन किनारों को समजे वही अफ़साने हमें दुःख देते और हम किनारों को अपना ही नहीं पाते
हम जानते है की सच को जानकर भी हम अनजान बने थे हमारे जिन्दगी में इसी बजह से कई फ़साने बने होगे जिन्दगी में भी उम्मीदों के सहारे पहले ही बने होते
जो हमारे सच को तभी समज चुके होते कभी कभी लोग आगे बढ़ जाते है वह लोग हमें समज ही नहीं आते है क्युकी हम तो सिर्फ पुराने अफ़साने है जीते
कई कई बार इशारे समजे हुए होते है पर हम उन्हें मन से बस समजना नहीं चाहते हर बार जो हम सोचते है वह अफ़साने भी जिन्दा ना होते
पर काश के उन फसानों में हम जीये होते तो जिन्दगी अंदर कई किसम के दुःखों के तराने नहीं बने होते फिर भी जिन्दगी के अंदर हर रोज नये सिलसिले ना होते
काश जीवन में नयी सोच के फ़साने मन में ना होते अगर हम दुसरे के मन को समज लेते और उसकी बात को मान लेते
तो शायद मन में कितनी तरह के दुःख की जगह हम खुशियों को रखते मन को हर बार हम रोज अपने  खुश रख पाते
खुशियों को हर बार जब हम दुनिया में महसूस कर लेते है तो लगता है की काश उसी वक्त हम हालात को भी समज लेते
और आसानी से उन्हें जीवन में अपनाते ताकि हर बार हम हस के आगे बढ़ लेते और जिन्दगी के हर मोड़ पर है के जी लेते

Wednesday 22 July 2015

कविता ८८. गीत के अल्फ़ाज़

                                                                 गीत के अल्फ़ाज़
हर गाने में कोई मिठास भरी हुई है प्यारी सोच जो मन को छू जाते है हर गाने में हम नयी दुनिया और नयी सोच पाते है
हर गाने  के अल्फाजों में नयी उम्मीद लाते है उन अल्फाजोंके भीतर अगर भर लो तो हम पर वह असर करते है पर हर अल्फाज को धीरे धीरे से हम समजते है
पर हम कुछ गानों के अंदर नयी नयी उम्मीद दुनिया को देती है हर गाने में हम नयी सोच पाते है जब जब हम उस गाने को हम सुनते है
कभी कभी हम यही नहीं समज पाते है की सोच के भी कई असर मन पर भी होते है पर जब हम दुनिया को समजते है
गाने की मिठास हर पल मन को छू लेती है  जब जब वह मिठास दुनिया बदल देती है जब जब वह मिठास मन को छूती है
वह प्यारी संगीत की जीत होती है हर गाने को समजना बड़ा जरुरी है पर हर बार सही गीत सुने यह जरुरी है पर हम तो चाहते है
अलग अलग गीतो में ताकद होती है पर सही गीत को समजना जरुरी है कई किसम के गाने सुनना हमारे जीवन में होता जरुरी है
गीत के अंदर कई प्यारी और गलत अल्फाज मन को छू लेते है गीतों में तरह तरह की दुनिया होती है पर सब गीतों में नयी सोच दिखती है
पर फिर भी जाने क्यों दुःख भरे गीत भी मन को भा जाते है हम उन गीतों के साथ नयी उम्मीद देते है और गीत जो हमें ख़ुशी देते है
पर कभी कभी हम ख़ुशी के साथ गलत गीत भी हम पर असर करते है पर फिर भी जाने क्यों हम दुःख भरे गीत सुनकर भी रोना पसंद करते है  

कविता ८७. चीज़ों को समजना

                                                            चीज़ों को समजना
हर बार जब चीज़ों को समज लेते है उनमे से कई मोड़ तो आते है जब जब हम उम्मीदों के सहारे चलते है
हर बार नये नये तराने बदलते रहते है जिनमे नये नये अफ़साने बनते रहते है बड़े मजेदार पर होते है
वह तराने जिनके सहारे हमें किनारे हर बार मिलते रहते है चीज़ों में होती है नयी नयी दिशाये मिलती है
चीज़ों में तो हम कई बार बाते होती है हर चीज़ को समजने की जरूरत होती है पर हर बार चीज़ों को कहा समजना चाहते है
चीज़ों के अंदर हम हर बार नयी सोच तो मन को सीखते है मन के भीतर नयी नयी सोच जो हमें जगाती है उन चीज़ों में तरह हम नहीं जाना चाहते है
चीज़ जो मन को छू लेती है हर चीज़ के अंदर नयी नयी बाते जो मन को हमें कई बार छू जाती है वह छुपी हुई होती है
हर बात को हर चीज़ को जब हम समजने की कोशिश करते है वह सिर्फ वही चीज़े जिनके अंदर हर बार नयी उम्मीद होती है
कुछ चीज़े जो हमें उम्मीद नहीं देती कभी कभी हमें जिन्दगी में वह चीज़े भी सुननी पड़ती है पर जो चीज़े हमें छू लेती है
पर कुछ चीज़े जो मन को बुरी लगती है चीज़ों में नयी नयी सोच हम पाते है सारी चीज़े जो बुरी लगती है वही चीज़ हम समजते है
बुरी चीज़े भी जिन्दगी पर असर करती है पर हर बार हम यह बात नहीं समजते है हर बार हर मोड़ पर कोई असर होता है
चीज़े बुरी होती है वह बड़ी जरुरी लगती है क्युकी चीज़े बुरी होती है पर चीज़े दुनिया पर असर कर जाती है  तो हर चीज़े बुरी होती है
पर वह भी कभी कभी जरुरी होती है तो जीवन में बुरी बाते अहम और जरुरी होती है तो उन बातों से भी खुशियाँ बनती है तो बुरी बातों को समजो वह भी जरुरी है 

Tuesday 21 July 2015

कविता ८६. राह को समजना

                                                             राह को समजना
जब जब हमने देखा लोगों को समजना चाहा समज ना पाये उनको हर बार हमने मन को समजाया की अगली बारी में हम समजेंगे पर ऐसा नहीं होता
सारी बातों को समजेंगे वक्त हमें सब कुछ समजा देता है पर हर बार हम जो  समज जाये इस उम्मीद पर चलते सौ बार उठते है पर गलती से ही तो सीखेंगे पर गलती तो दुनिया में होगी
जो बात दिल से समजे वह हर बार सही नही होती जीने की कई दिशाए है पर हर राह और हर दिशा सही नहीं होती
आप देखो दुनिया में तो बात हम कह दे वह हर बार सही नहीं होती पर जब वह सही होते है और दुनिया नहीं सुनती तो दर्द की कमी नहीं होती
जो हम सच बोले मन से उसे लोग समजे और सब कुछ सही हो जाये यह मन की उम्मीद सही नहीं होती
पर दुनिया में अक्सर यह उम्मीद भी  नहीं होती क्युकी काटो पर चलनेवालों की तो कमी है पर दूसरों को काटो पर चलानेवालों की कमी नहीं होती
वह रोते है हर पल उनकी भी कमी नहीं होती पर अगर हम चले अपने दम पर तो मुश्किलों की दुनिया धीरे धीरे कम है दिखती
जब हम आगे बढ़ जाये तो ही जिन्दगी में नयी राह हमें हर बार दिखाई है देती सारे तरह की सोच हमेशा मन को है छु लेती हर बार जिसे हम समजे वह राह हमेशा  नहीं होती
जो राह हमें मासूमियत दिखा  दे वही राह हमेशा सही होगी कई सोचों को हम समजे वही राह हमेशा ख़ुशी देती है क्युकी हर राह हमेशा सही है होती
राहो पर चलते चलते हर बार तरह तरह की उम्मीद हमें जिन्दा कर देती है वही सोच जो शायद हमें सही उम्मीद है देती
अगर हम उसे सही और से देखे तो सही राह जीवन में खुशियाँ और उम्मीद देती है पर याद रखना दोस्तों वह हमेशा आसान नहीं होती

कविता ८५. आँखों की उम्मीद

                                                            आँखों की उम्मीद
हर बार उम्मीद तो होती है पर जब हमें चोट लगाती है कौन समजाये हमारे आँखों को के उम्मीद तो छुपी हुई होती है
पर फिर भी जब जब मन को दुःख देती है हर बार हम सोचते रहते है की मन को तो बहला लेंगे हम पर हर बार मुश्किल में आँखे तो रोती है
पर रोना तो गुनाह नहीं होता है हर बार जब दुनिया  हमें मन से रुलाती है हर बार हर आँसूसे चोट निकल जाती है क्युकी हर चोट तो कोई ना कोई निशान दे जाती है
हर बार  मुसीबत इतनी आसान नहीं होती है जब जब मन में चोट तो लगती है मन को समजा लेते है पर आँखे तो रोती है
क्युकी आँखे तो शायद आज के खोयी हुई चीजों के लिए रोती है जिन्दगी तो आगे सही तरह से बढ़ जाती है पर जो चीज़ खोयी वह वापस नहीं आती है
शायद उनके लिए रोना सही बात होगी क्युकी खोयी हुई चीज़ भी तो कभी जिन्दगी का हिस्सा होती है पर शायद जिन्दगी में मुसीबत मिलती है
क्युकी हर बार जब आँखोमें कई तरह की उम्मीदे रखी होती है पर कभी कभी तो वह खोयी हुई उम्मीदों पर भी रो देती है उन्हें कैसे समजाये की आगे उम्मीद होती है
जब वह आगे की जिन्दगी के लिए  नही पर पीछे की जिन्दगी के लिए रोती है उम्मीदों में अक्सर बाते छुपी होती है पर नयी सोच हमें जिन्दा कर देती है
आज की उम्मीद ही तो कल की सुबह होती है पर कभी कभी आज की उम्मीद को खो कर भी कल सुबह होती है तभी उन कोटों से नयी उम्मीद मिलती है
पर शायद पुरानी खोयी हुई उम्मीदों के लिए हमारी आँखों की दुनिया रोती है आखिर पुरानी रात भी दुःख देती है क्युकी उसीमे खोयी हुई उम्मीद भी तो दिल के करीब होती है
तो शायद आँखों के करीब होती है उसी लिए तो उन खोयी हुई उम्मीदों के लिए बिना कुछ कहे और समजे आँखे रोती है 

Monday 20 July 2015

कविता ८४. लब्जों की यह दुनिया

                                                         लब्जों की यह दुनिया
किताबों के लब्जों में नयी दुनिया दिख जाती है उन लब्जों में ही हर बार खुशियाँ तोफो में आती है और सारी तरह की खुशियाँ मन को छू जाती है
हर लब्ज में हमें कई तरह खुशियाँ जीवन के अंदर दुनिया समाती है पर जब उन लब्जों में हमें नयी दुनिया दिख जाती है
हर बार जब हमे अपनी दुनिया उस किताब में दिख जाती है सारी बाते किताबों में अच्छी नज़र आती है जीवन में भी कभी कभी जब वह खुशियाँ आती है
क्युकी दुनिया में खुशियाँ तो प्यारी लगती है पर कभी वह मुश्किलें भी आ जाती है वह किताबों में तो सिर्फ दिखती है
पर जीवन में कई राज दिखाती है हर मोड़ पर जब सीखे तो मन में नयी उम्मीदे लाती है पर किताबों में तो कई राज सीधे साधे दिख जाते है
हर बात जो मन को छू जाती है वह बाते जीवन में हमें नये नये राज बताती है हम कभी ना समज पाये जीवन में वही राज बताती है
दुनिया में हर मोड़ पर जब हम कोई सोच लाते है किताबों में कई तरह की सोच जीवन में आती है किताब में कई चीज़े मन को छू जाती है
हर बार जिन्दगी में नये नये खयालों को वह सोच जिन्दा  पाती है पर किताब और जीवन में हम अलग तरह की सोच हमेशा पाते है
जीवन में जो समज गये वह किताबों में मुश्किल से समज पाते है पर कभी कभी किताब में आसान लगनेवाली चीज़े मुश्किलें लाती है
सारी चीज़े किताब और जीवन में अलग अलग असर कर जाती है हम नहीं समज पाते क्या किताब  सही है और क्या जीवन के लिए सही कहलाती है
किताबों में लब्ज और जीवन में लब्ज असर कर जाते है लब्ज में कई तरह के असर कर जाती है क्युकी बाते तो लब्जो से होती है
तो उन्हें आगे बढ़ जाने दो पर रहना जरा संभलकर क्युकी लब्ज ही तो जीवन को अच्छा और बुरा हर बार बनाते है  

कविता ८३. काटो से दोस्ती

                                                            काटो से दोस्ती
हर बार जो हम समजे बातों में कई मोड़ आते है उस मोड़ पर चलते है जिनमे उम्मीदे पाते है हर बार जो समजे उनमे उम्मीदे नज़र आती है
हर मोड़ पर जब चलते है कोई उम्मीदें मन में हम लाते है जिनमे हम दुनिया को देखते रहते है पर उस उम्मीद के अंदर हम भगवान को पाते है
जिनमे हम सचाई का दीप जलाते है काटे तो कही होते है जो राह में चुबते है पर बस वही काटे होते है जिनमे मन को दर्द देते है
पर वह काटे हर बार दुःख की बजह तो होते है पर सच्ची राह कई बार उनकी बजह नहीं होती जब जब हम सच्ची राह से आगे बढ़ जाते है
हर दुःख पर सच्चाई की ओर उंगली दिखाते है हर बार जब चलते है कभी कभी गम भी पाते है पर सही काम कर के गम मिले जो मनको चोट दिलाते है
पर उस काम का गम या ख़ुशी पहलेसे ही तय होती है यह सोच तो मन में है पर उसे कहा हम जिन्दगी में अपनाते है
सही राह पर चलते है और जन्नत पाना चाहते है पर हमें यह बात नहीं समजती की इतनी आसानी से लोग जन्नत नहीं पाते है
सही राह पर जब चल दे काटे तो आते है वही जीतता है दुनिया में जो काटो को अपनाता है फूलों को चाहनेवाले हजारो होते है
जो काटो को अपना पाये वही दुनिया में खुशियाँ चुनते है हम सब तो सिर्फ फूलों से घिरना चाहते है और पत्तों को अपनाते है
कुछ तुलसी जैसे पत्तों को भी हमारी तरह चाहने लगते है पर काटो को जो चाहे उसका मिलना मुश्किल है उसी तरह से दुनिया का जन्नत बनना थोड़ा मुश्किल है
पर फिर भी अगर उस बात को हम समजे तो नामुमकिन कुछ भी नहीं है दुनिया में कोशिश करे तो काटो से दोस्ती भी मुश्किल नहीं है 

Sunday 19 July 2015

कविता ८२. अनजानी राह पर चलना

                                                      अनजानी राह पर चलना        
अनजानी राह पर चलना कभी कभी हम समज नहीं पाते है क्यों की सारी सोच मन में  कुछ ना कुछ असर कर के छू जाती है
जिन राहों पर चलते है हम उन पर हमारी सोच को नये नये तरीके जो राह पर हमें दिखाई देते है वह सोच हमें समजाती है
वह राह जिस पर हम कोई ना कोई सोच मन के अंदर  रखते है अनजान सोच और अनजान राह पर हर बार हम वही सोच रखते है
जिस में अनजान और अनोखी सोच हम पे असर कर देती है जब जब हम उस राह पर चलते है जिनमे  तरह तरह की सोच हम रखते है
पर एक बात जो हमें खुशियाँ देती है वह कभी कभी अनजान होती है और अनजानी चीज़े मन को हर पल डराती है जो हम सोच रहे है
उसी बात को घूमाती है क्युकी अनजानीसी सोच भी हमें हर पल खुशियाँ दे जाती है जब जब हम उससे डरते है वह सारी चीज़ पुरानी नज़र आती है
अनजानी तरह के सोच हम पर असर कर जाती है हर बार हमें नये नये सपने दिखाती है हम तो बस यही सोचते है की यह सोच हमें उम्मीद दिखाती है
पर बार बार यही सुनते है की हमें नयी उम्मीद उसी राह पर मिल जाती है पर हम जूठ क्यों बोले वह राह तो हम समज जायेगे क्युकी बिना सोचे हम वह राह अपनाते है
जिन्दगी ही है जो नियमों को बदलना सिखाती है हर बार नयी राह दिखाती है और उस राह में उम्मीद दे जाती है क्युकी वही राह तो नज़र आती है
और फिर सारी सीखी सोच पीछे रह जाती है वह सोच जो आगे बढ़ती है जो हमें रोज नये नये किनारे दिखाती है
सही सोच मन को खुशियाँ दे जाती है
अगर लोग खुशियों के लिए बदल जाते है तो हर बार हम अपनी मर्जी से चल पाते है तो क्यों किसीको कुछ कहे जब हम चल पाते है चुन लो सही राहों को क्युकी आप  चुन पाते है 

कविता ८१. बदलती सोच

                                                                   बदलती सोच
तरह तरह की सोच हमारी जो हमें बताती है नये नये खयालों में फिर से नयी दुनिया दिखती है क्युकी हर बार जब भी हम सोचे नयी सुबह लाती है
पर कुछ लोगों की सोच इतनी जल्दी बदलती है की सुबह की धुप भी उतरती नहीं उसे पहले वह सोच बदल जाती है और हर मोड़ पर हम बस यही सोच रखते है
हर बार के सुबह से श्याम तक वही सोच मन में जिन्दा हो जाती है क्यों लोग आसानी से जिन्दगी में बदल जाते है जब जब हम आगे बढ़ते है
सोच हमें समजाती है बार बार बदलना भी जिन्दगी में सही नहीं होता है हर बार जो हम समजे तो दुनिया में बदलावसा होता है
सोच को बदलते रहना भी नयी सोच लाता है हर बार जब जब हम आगे बढ़ जाते है सोच हमारे मन को खुशियाँ दे जाती है
पर हर बार जब हम उम्मीदों से सोचे जिस में नयी दिशा आती है पर जब लोग सोच बदल लेते है हर बार मुसीबतसी दिख जाती है
हम बार बार सोचते रहते है और दुनिया बदल ही जाती है पर सिर्फ हम चाहे इसलिए लोग वही सोच रखे यह जरुरी तो नहीं है
क्युकी हर बार हम अपनी सोच बदलते जाते है उस सोच को हम समजे जिस में दुनिया हम पाते है हर बार बस यही सोचते है
की सारी सोच हर बार जो बदल जाती है हमें वह चीज़ भी अपनानी पड़ती है सोच हर बार वह सोच असर कर जाती है
सो बदलती सोच हमें बार बार वही पर लाती है पर लोग अगर सोच बदले तो जिन्दगी हर बार बदल जाती है और नये तरीकों से हर बार उम्मीद लाती है
पर अगर बार बार हम उसे बदले तो हमें लगता है उस सोच को अनदेखा कर के हम अपनी सोच पर ही चले इसी में अकलमंदी नज़र आती है 

Saturday 18 July 2015

कविता ८०. रंगों के अंदर

                                                                  रंगों के अंदर
रंगों के अंदर कई मतलब छुपे होते है रंग के साथ हम हर बार दोस्ती रखते है रंग के बीच में कोई ना कोई असर होता है
रंग के अंदर नयी नयी उम्मीदे हर बार मन को छू जाती है रंग जीवन के अंदर कोई ना कोई असर हमेशा कर जाते  है
रंग तो वह सोच है जो मन को बताती है की हर बार नयी उम्मीद जिन्दगी में आती है जब जब रंग मन को भाते है पर जब रंगों के अंदर नयी सोच आती है
रंग तो तरह तरह की बातें अंदर रखते है रंग हमारे जीवन में अक्सर असर कर जाते है वही रंग जो हम चाहते है उन्हें हम अक्सर भूल भी जाते है
रंगों की इस दुनिया में बस रंगों को समजना है हर बार हम कोई ना कोई रंग हमेशा पाते है दुनिया में अक्सर हम रंगों को समज लेते है
पर अफ़सोस तो इस बात का है की हम उन रंगों को नयी जीते जिन्हे हम हर बार जीना चाहते है जब जब हम नहीं समजते है
उन रंगों को अक्सर हम मन में कतराते है रंग तरह तरह के मतलब हमें दे जाते है रंगों की तो यह दुनिया है पर फिर भी रंग अलग अलग नज़र आते है
उन रंगों में छुपे हुए से कई मतलब दुनिया में नज़र आते है चाहे कितना भी चाहे हम पर फिर भी नहीं लोगों को समजा पाते है
रंग कभी गलत नहीं होते लोग गलत होते है पर वह रंगों पर ही हर बार इल्जाम लगते है सच तो है रंग तो बस प्यारा तोहफा है
जब सबके लिए होता है पर फिर भी लोग हमेशा रंगों को किसी का बना देते है पर रंग तो आजाद होता है वह फिर से कभी ना कभी आजादी पा लेता है 

कविता ७९. बातों को समजना

                                                                बातों को समजना
हर बात को समजो कई चीज़े जो हम पर असर करती है क्युकी हर बार किसी बात के अंदर कोई ना कोई बात होती है
हर बात के अंदर कई तरह की बाते छुपी रहती है बातों के अंदर कई चीज़ों का असर होता है जिन्हे समजना हर बार है  हमें  पर कोई ना कोई राह को हम अलग तरीकेसे समजते  है
उन बातों में नयी नयी सोच बार बार हम पर असर कर देती है बातों में हमें सोच का असर दिखता है उस सोच में जिसमे इन्सान जीता है
जब जब हर मोड़ पर अलग अलग तरह की सोच हम पर कोई ना कोई नया जिन्दगी का असर कर जाती है जब जब हम नयी सोच रखते है
सोच हम पर असर कर जाती है सारी सोच जो हमें अलग अलग राहे दिखती है क्युकी राह की नयी सोच हर बार असर कर जाती है
बातों के बीच में कोई ऐसी बात हो जाती है की अक्सर जिन्दगी अलग दिखने लगती है और हर सुबह रात की गोदी में समा जाती है
हर बार जो राह हम माँगे उसे हम ना समज पाते है बातों के अंदर जो छू जाती है ऐसी भी एक बात छुपी रहती है बातों में कई मतलब है
जो हम पर असर कर जाते है उनमे हम बस यही समजते है की उन अंगारों में हम कैसे जी पाते है जब जब हम आगे बढ़ते है
बातों को ना समज पाते है उनके असर  जिन्दगी को बदल जाते  है क्युकी हम उन बातों को समज नहीं पाते है
पर अगर हम उम्मीदों को समजे तो अंधेरे में हम रोशनी पाते है बातों के अंदर हम हर बार कोई ना कोई बात समज जाते है 

Friday 17 July 2015

कविता ७८. दोस्त की खोज

                                                            दोस्त की खोज
जब हम दोस्ती का सोच काश वही हमें हमारे दोस्त मिल जाये जब हम  हसकर देखे काश उस पल उम्मीद बन जाये
पर जिन्दगी में यह होना आसान नहीं होता एक दोस्त का मिलना इतना मुश्किल है की तूफानों से जुजना आसान लग जाये
हर बार दोस्त नहीं बस मिलते है साये या फिर यही सच हो की हम दोस्त पेहचान नहीं पाये जिन्हे हम दोस्त समजते चले आये
हर बार उन्ही दोस्तों ने हमें जिन्दगी में दिये साये यह सच तो नहीं है की सही दोस्त नहीं होते पर काश कुछ दोस्त हमारी किस्मत में भी लिखवा लाये
ढूढ़ने पर अक्सर लोग मिलते है जो हर पल साथ देने का वादा करते है पर हर बार हमने यही देखा है दुःख में तो छोड़ो पर सुख में हसने के काम भी दोस्त नहीं आये
शायद चुनने पर भी हमने गलत लोग ही पाये अब तो लगता है फिर से हम चुनेंगे फिर से हम अपने मन से नये दोस्त ढूढेंगे यही मन चाहे अगर फिर से शुरू करे तो इस बार शायद सही दोस्त हम पाये
आखिर जो गलती से सीखे वही इन्सान कह लाये शायद पहले हमने रोशनी की जगह चुने बस साये तो उस बार क्यों न हम नयी उम्मीदों से ढूढे और भुला दे वह साये
यह बात नहीं है बस मेरी हर किसी के साथ बस ऐसा ही होता है उम्मीदों से ही इन्सान कुछ खोज पता है तो भूल कर वह साये
हम जब शुरुवात करे फिर से तभी तो जिन्दगी में हमारे आयेंगे नये उज्जाले और निकल जायेंगे वह अँधेरे के खौफनाक साये
दोस्त तो सही मिलेंगे पर यह आसान नहीं होगा क्युकी सही दोस्त को जाना तूफानों को पार करने से भी मुश्किल हम जरूर हर बार पाये 

कविता ७७. उम्मीदों की आहट

                                                                 उम्मीदों की आहट        
हर सोच के अंदर देखो तो एक नयी सोच छुपी होती है सन्नाटों में भी उम्मीद की आहट लिखी होती है
जब उम्मीद से देखो आप तो हर मोड़ पर एक राह खड़ी होती है जो हमें समज जाये वह उम्मीद बसी होती है
उस सोच को हम समजो तो दिल में तस्सली होती है वह राह तो सही है जिस में कई तरह की राहे तो वही है
जिनमें उम्मीद बसी होती है उन राहों को कैसे समजे जिनमें उम्मीद नहीं होती पर जिन्दगी की वही जरूरत यही होती है
जिस में हर बार कोई ना कोई आशा बसी होती है सारी उम्मीदों में नयी नयी सोच जब मन में जगा देती है
उस सोच को समजो जिसमें उम्मीद रहा करती है जब उम्मीदों को समजो तो सारी दुनिया नयी तरीके से दिखती है
पर जब हम समजो दिल को मन में वही उम्मीद रहा करती है जिसके अंदर ही दुनिया बसा करती है
पर कभी कभी वह उम्मीद नयी सोच में भी जगा करती है वह उम्मीद उन सितारों में नयी दुनिया दिखा देती है
पर जब उलटी सोच भी जगे मुसीबत दिखा करती है उस सोच में नये नये खौफ जगा करते है उसे समजते है
तो नये तराने बना करते है उस सोच के अंदर ही नये अफ़साने जगा करते है जिस सोच को हम समजे उस में नये फ़साने बना करते है
अगर गलत सोच को हम समजे तो मन में काटे चुभा करते है पर किस सोच को हम समज लेंगे यह तो बस हम तय किया करते है
पर फिर भी कभी कभी उन सायों में फसकर हम गलत सोच को ही जिया करते है जो सोच सही होती है
उसे हर बार समज लिया करते तो शायद बस उम्मीदों के किस्से कभी मन से ना खो जाया करते जो सोच हमें जन्नत दे हम बस उसमे जिया करते है
हमें लगता है बस उस पल में ही हम सचमुच जिया करते है उसके बिना तो सिर्फ अपने लिए मुसीबत किया करते है क्युकी वही सोच उम्मीदों की आहट दिया करती है 

Thursday 16 July 2015

कविता ७६. ईश्वर की सोच

                                                                   ईश्वर की  सोच
उन बातो को जिनमे हमें भगवान थे दिखते आज अचानक वह कुछ ऐसे बदली की उनमें अब तूफ़ान है दिखते
जिन राहों पर उम्मीदों के अहसास है हर पल दिखते है उन राहों ने हमें बताया भगवान वहा नहीं है रहते
शायद गलत सोच है भगवान को हम हर बार ढूढ़ते रहते उम्मीदों में घेरों में हर बार भगवान हमेशा है बसते
अगर हम सही  सोच के अंदर है बसते काश के उस खुदा को उस ईश्वर को हम समज भी पाते काश उसे दिल से अपनाते
हम उसे ढूढ़ते रहते है हर पल क्युकी अपने पास होते हुए भी हम उसको समज ना पाते काश हम उस सूरज को समजते
जो हमारे लिए रोशनी लाते हर बार जब भी हर उम्मीदों से देखते हम उस उप्परवाले पर यकीन हम रखते
भगवान हर बार हमारे लिए है कुछ लाते पर उसको हम ना समज पाते क्युकी हम बस उन्हें ढूढ़ते है पर उनकी उम्मीदों को कभी समज नहीं पाते
जो उम्मीदे हमें जिन्दा रखती है जिनसे उस ईश्वर की चाहत बनती है छोड़ चले है हम उन उम्मीदों को जो उप्परवाला हमसे रखता है उन्हें हम समज ना पाते
सिर्फ ढूढ़ते है हम हर किसी बात में समज नहीं पाते क्युकी हम शायद उसे समजना नहीं सिर्फ ढूढ़ना है चाहते
बार बार हम बस यही है सोचते रहते जिस बार हम उसकी सोच को समज लेते हर बार हम बस जीत ही पाते
क्युकी जो मन से सच्चा हो उसे हर पथ्तर में ही ईश्वर है मिल जाते और जो ना समजे उस सोच को वह कभी  उसे समज ना पाते
हर बार जब हम आगे बढ़ नहीं जाते ईश्वर हर बार बस यही सोचते है रहते की ईश्वर काश हमें मिल पाते
पर ईश्वर तो सिर्फ उस सोच में है जिस सोच को हम  समज नहीं पाते क्युकी हम तो लोगों के कहने पर हर बार ईश्वर को ही हम है ढूढ़ते 


कविता ७५. सारी चीज़े

                                                                     सारी चीज़े
सारी चीज़े जो मन को छू जाती है उन चीज़ों में हर बार नयी सोच वह लाती है जिन चीज़ों में तरह तरह की सोच जो मन को छू जाती है
चीज़े जो मन के अंदर हमें उम्मीद दिखाती है हर चीज के अंदर सौ तरह की बजह लाती है हम नहीं समज पाते है जब जब चीजे मन में खुशियाँ दे जाती है
उन चीजों को समजने की वजह यह जिन्दगी बन जाती है हर बार चीजों में जो उम्मीदे लाती है वही चीज़ मेरे मन को छू जाती है
जब जब चीज़े मन के मंदिर में रोज रोज उम्मीदों की ज्योत जगाती है हर बार उस चीज़ को जिन्दगी उम्मीद से सजाती है
शायद वह उम्मीद खो भी जाये पर वह चीज़ उसे याद दिलाती है चीज़ों के अंदर सारी तरह उम्मीद और आशाये वह लाती है
चीज़ों के अंदर उम्मीद हर बार जगाती है सारी चीज़े जो मन में समजदारी लाती है वह चीज़ अपने सपने रखती है पर हर चीज़ जो मन का साथ देती है
सारी चीज़ों में दुनिया जिन्दा होती है पर कभी कभी हम यही सोचते है की वह चीज़े क्या दे जाती है शायद वह आगे जाने की जगह पीछे ले जाती है
हम जब आगे बढ़ जाते है चीज़ो में जो बाते होती है वह हमें सिर्फ पीछे ले जाती है हर बार जो अपनी उम्मीदों को जगाती है
चीजों में बार बार नयी तरह की सोच मन में लाती है वह चीज़े सही है जो जिन्दगी में आगे ले जाती है पर यह चीज़े तो जिन्दगी में आगे लाती है
वह नयी चीज़े होती है जो पुरानी चीज़े कई बार नयी चीज़ों से नहीं जुड़ पाती है तो शायद पुरानी उम्मीदों को छोड़ने से ही नयी उम्मीदे आती है
शायद जो पुरानी चीज़े हमें प्यारी लगती है वह नयी चीज़ों से दूर रख के हमें अनजाने में बार बार तड़पाती रहती है

Wednesday 15 July 2015

कविता ७४. सारे ख्वाब

                                                                        सारे ख्वाब
सारे ख्वाबों में दिखते वह दीप जो उम्मीदों से जलते है हर बार जब हम सोचा करते है ख्वाब तो  सिर्फ ख्वाब है
पर उन ख्वाबों में तो उम्मीदों के उज्जाले होते है
हर ख्वाब भी अपनी किस्मत लाता है जीवन उजाला आता है ख्वाबो के पास ही तो हम खुशियों की चाबी रखते है हर बार जब ख्वाबों में जिन्दा रहते है उन्ही में हम अपनी दुनिया समजते है सारी ख्वाबों के अंदर हम नयी नयी दुनिया जीते है
जब जब हम आगे बढ़ते है ख्वाब ही तो अपने साथी होते है बचपन से जिनके हाथ को थामा हमने वह हर हाथ ख्वाबों में जिन्दा होते है
जिन ख्वाबों में सचाई नहीं है उन्ही ख्वाबों में हम जीना चाहते है सारे ख्वाब जिनमे हम जीते है ख्वाबों के अंदर तो हम नयी दुनिया पाते है
ख्वाब तो वह तसबीर है जिसमे हम हर बार जिन्दा रहते है पर उन ख्वाबों में जिनमे हम जीते है उनमें हम नयी दुनिया देखते है
पर जो ख्वाब जो जिन्दा रह ना पाते है उनके अंदर नये तरह के ख्वाब हमें दिखते है हम जीते है हर ख्वाबों में हम अपनी दुनिया जीते है
ख्वाब तो अक्सर वह होते है जिनमे हम जिन्दा रहते है हम बार बार यही सोच रखते है की काश ख्वाब सच होते पर अगर वह ख्वाब मन में सच होते है
तो उन ख्वाबों में भी सचाई के किनारे जरुर होते है जिन्हे देखकर हम हर बार जीना सीखते है ख्वाबों के मतलब को भी हम काश समज लेते है
तो ही वह सारे ख्वाब हमारे जीवन में सच होते है तो ख्वाबों को जी लेते है हम तो क्यू उन्हें ना सच कहे हम आखिर दोनों ख्वाब तो सच ही होते है 

कविता ७३. वक्त को समजना

                                                              वक्त को समजना
कुछ बाते ऐसी होती है जो हम समजना पाते है पर सिर्फ उस वक्त को थोड़ा मौका दो वक्त हमें समजता है
पर हम उनको समजना पाते है क्युकी हम वक्तके आगे जाना चाहते है वक्त तो सब सुलजाता है पर हम जाने क्यों उसे उलजाते है
वक्त को एक मौका दे तो वक्त सब कुछ समजता है वक्त तो एक ऐसी चीज़ है जिसमें हर बार नया मोड़ आता है
हम जब जब उसको समजेंगे हर बारी हम जीतेंगे हमें मन से यह समजना जरुरी है की वक्त सब कुछ सुलजाता है
पर जब जब हम वक्तके आगे भागे है राहों में बस काटे है हर बार हमें जब वक्त उम्मीद देता है सारी दुनिया में वक्त ही बस अहम लगता है
पर वक्त के हाथ में जाने क्यू हम जीवन देने से कतराते है सच तो बस यही है हर बार हम कुछ चाहते है बार बार जब हम जीतना चाहते है
तो जाने क्यों आगे बढ़ने से कतराते है वक्त के हाथ में अपने जीवन की डोरी ना देना चाहते है वक्त सब कुछ सही करता है पर हम उसी वक्त से ही जाने क्यू कतराते है
वक्त  को एक मौका दे कर देखे तो वक्त सब कुछ सही कर देता है पर इसी वक्त के अंदर कई चीज़ों का लेखा जोखा है
अगर हम वक्त को समज लेते है तो जिन्दगी को सुलजा पाते है वक्त तो वह ताकद है जिसमे हम हर रोज नयी दुनिया पाते है
वक्त तो वह चीज़ है जिसमे उम्मीदों के तराने है वक्त को बस एक मौका दे तो वक्त में  कई अफ़साने है पर हम हर बार खुद को वक्त ही नहीं देते है
तो वक्त हमें क्या दे पायेगा जो वक्त के साथ भागता है वक्त को समज कैसे पायेगा जब हम भागे उस पल हम इधर उधर ही नहीं देख पाते है
समज पाते है की हम उसी वक्त को सिर्फ दौड़ लगाते है काश के हम कुछ वक्त दे खुद को और वक्त को समज पाते पर फिर लगता है
की सब कुछ ठीक है वक्त को समजे नहीं तो क्या वक्त तो हमे समज कर हमारी उलजन सुलजाता है 

Tuesday 14 July 2015

कविता ७२. अँधियारो में छुपे उजियाले

                                                         अँधियारो में छुपे उजियाले
रात के अँधियारो में भी रोशनी के किनारे है हर बार जब हम मूड के देखे उम्मीदों के सहारे है जब हम सोचते है
अँधियारो के अंदर हम ढूढ़ने रहे उज्जाले के किनारे है जब जब अंधेरे में कई तरह के उज्जाले है पर फिर भी है
काली काली रातों के अंदर कई किसम के सुंदर उज्जाले है काले काले रातों में हमने देखे उज्जियाले है
जो मन को ख़ुशी दे देते है और हर बार मन जगे हुए अँधियारो के किनारे है जब हम आगे बढ़ जाते है
तब भी रोशनी के अंदर कई तरह के उम्मीदों के हर बार सहारे है काली काली रातों के अंदर छुपे उज्जाले है
रोशनी के अंदर सारी उम्मीदे हर बार बसी हुई है उन अँधियारो में भी छुपे हुए कई तरह के सहारे है बस जो उनको ढूढ़ले वही पाता अपने किनारे है
जब जब हम अँधियारो से गुजरे हर बार हमने देखे कई तरह के सहारे है जिनके उम्मीदों में जगे सारे सहारे है
हम हर बार  उस सोच पर रहते है की रोज जिन्दगी में दिखते कई सहारे है पर कभी नहीं सोचा है हमने अँधियारो के पार कई तरह के किनारे है
जब अंधेरे में हर बार दिखते छुपे हुए उजियाले है हम हर पल उनको ढूढ रहे है पर हम कभी समज ना पाये ऐसे ही यह सारे सोच के सहारे है
जब जब अँधियारो से गुजरे मिलते है कई किनारे है उन सारे अँधियारो में मिलते कितने तरह के किनारे है
जब हम सोच रहे है हर बार उसी सोच में दिखते कई तरह के किनारे है हम हर बार चलते है तब हम यही समजते है की अँधियारो में ढूढ़ने हमें उज्जाले है
शायद हम यही सोच रखते है जिस में दिखते कई उज्जाले है सारे तरह के अँधियारो में कई कई तो छुपे हुए उजियाले है
जब हम उनको ढूढेंगे तब मिल जायेगे कई तरह के उज्जाले पर सवाल बस यह होता है उस अँधियारो में कैसे ढूढे वह उज्जाले जो छुपे हुए है 

कविता ७१. चेहरे के मुताबिक

                                                                चेहरे के मुताबिक
कभी कभी हम पहचान लेते है लोगों को हजारों में कभी कभी पहचान ही नहीं पाते है उन्हें दो चार लोगों में
चेहरे के मुताबिक तो हम चलते है हर बार पर नहीं समज पाते है उन चेहरों को हजारों में समज ना पाते है
पर कभी कभी उन्हें समज लेते है दो पलों में पर एक बात तो सच है दोस्तों वही समजदारी होगी दुनिया में
की मान ले  हम नहीं समज पाये उन चेहरों को कभी इशारों में हर बार तो कहते है की समजे है उन्हें फ़साने में
पर हर बार नहीं समज पाये इस धड़कन को पर बार बार यही कहते आये है की हम समज पाते है इन्सान को
दिल से हर मोड़ में
पर सच तो यह है की इन्सानों को समजना मुमकिन नहीं होता हर बार हम जब कुछ ना कुछ सोच मन में
हर बार जागती है हर बार मन को कोई ना कोई उम्मीद दिखती है सारी सोच जो मन को उम्मीद दे जाती है उस में
हर बार सोच मन को दुःख दे देती है जब जब मन में कोई सोच जो मन के अंदर विश्वास जगा देती  हैं हर बार
चेहरेके अंदर की वह सोच नयी मिसाल बनती है जब जब हम आगे बढ़ते है कुछ और ही विश्वास मन में जगाती है
मन में सारे ख़याल जिन्दा कर जाती है वह सारे चेहरे जिनमे जिन्दगी जिन्दा हो जाती है हर बार बस वही सोच मन में खुशियाँ मन में दे जाती है
पर हर चेहरे के अंदर नयी सोच आती है हर सोच जिसके अंदर अलग अलग तरीके से सुबह आती है हम नहीं पेहचान पाते है
चेहरे के अंदर की सोच को पर वही वही नये तरह के ख़याल मन में दे जाती है हम सोचते है बस वही बात जो मन को छू जाती है
चेहरे पर जो भी दिखता है हर बार वही सोच रही समज मन में आती है चेहरे के अंदर नया नया दिखावा मन में  लाती है
चेहरे के अंदर जो सोच है वही हमारे  मनको छू जाती है पर कभी हम जो सोचते है वही सोच मन को बेहतर बनती है 

Monday 13 July 2015

कविता ७०. अहम चीज़

                                                               अहम चीज़
हवा जो हमें छू जाये तो बहार की ही उम्मीद लगाती है हवा ही तो है जो सन्नाटे में भी उम्मीद लाती है
पर उस खुदाने हवाओं को बनाया है कुछ इस तरह से तो उनकी किंमत हम नहीं भरते है शायद उसी लिए हम उनकी किंमत भी नहीं करते है
जो सन्नाटे में भी साथ दे हमारा उसे भी हम समज नहीं पाते है हर बार आगे बढ़ जाते है शायद उन उम्मीदों पर हर बार खरे नहीं उतर पाते है
हवा तो हर बार हमारा साथ देती है वह भी हमें उम्मीद नहीं लग पाती है हम चाहते उन चीज़ों को जिनमे खुशियाँ हम पाते है
जिनमे सिर्फ चीज़े छू जाती है पर हर बार जब हवा हमें छू जाती है हवा जो हमें प्यारी लगाती है जो सारी मासूम चीज़े जो हम जिन्दगी में पाते है
पर हवा जब हमें छू जाती है वही सोच मन में पाती है जो हम हर बार सोच रहे है हम सिर्फ यही सोचते रहते है
हम बड़ी चीज़ों के पिछे सीधी खुशियाँ खो देते है
हर बार हम बस यही सोचते है की सारी अच्छी चीज़े दुकानों में ही पायी जाती है हवा को छोड़ो मुस्कान भी हमें किंमती है
इसी लिए हर बार हम कुछ चाहते है पर हर बार हम सब कुछ खो देते है हर बार जो हमें पसंद होती है वह सीधी साधी चीज़े प्यारी लगाती है
पर हम जब मुस्कान दुकानो में ढूढ़ते है तो वह मुस्कान हमें प्यारी लगाती है वह मुस्कान और हवा सारी अच्छी चीज़े आसानी से मिल जाती है
अगर हम उन्हें माँगे और उसकी कदर करे तो सीधी साधी चीज़े मन को प्यारी है तो उन चीज़ों की कदर करो जो प्यारी है
किंमत से ज्यादा वह चीज़ चुने जो जिंदगी में अहम और जरुरी लगाती है क्युकी वही चीज़ तो जिन्दगी में सब से अहम है 

कविता ६९. फूल और काटे

                                                           फूल और काटे
जब फूलों ने समजाया मन काटो से कटता है हमें अपना समजो मन से मन पानी के बूंदों से शीतल हो जाता है
पर फूलों को अपना समज पाना आसान नहीं होता क्युकी वह फूल जो दिखते है जिन में खुशबू होती है
हर बार उन फूलों में नयी दुनिया ही दिखती है पर कभी कभी फूलों में भी जहर मिल जाता उस जहर से तो हमे कभी कभी काटो का चुभना ही रास आता है
जब जब हम आगे बढ़ते है चारों ओर काटे चुभते है उन काटो का चुभना कुछ नहीं लगता है पर जब फूलों में ही जहर मिलता है
तब मन के उस अंधियारे में कोई उम्मीद का साया नहीं दिखता है तो सिर्फ फूल इस लिए हम चुनले यह ना मन को काफी लगता है
कभी कभी तो फूलों से दूर ही रहना सही दिखता है जब जब हम आगे बढ़ जाये सिर्फ उम्मीदों के सहारे आगे बढ़ जाते है
कुछ फूलो में खुशबू है तो कुछ में जहर भरा है सारे फूलों में वही खुशबू जगह है वह खुशबू जो मन को छू लेती है पर उसमे जहर भरा होता है
काटो में भी  कभी कभी खुशबू मन को छू लेती है हर बार जब हम आगे बढ़ जाते है काटो के आगे भी कई तरह ही मंजिले होती है
फूलों में खुशबू है कभी अच्छी और कभी बुरी चीज़ जिन्दगी में हर बार हासिल होती है हम हर बार जब कुछ समज लेते है
पर फिर सारी सोची समजी चीज़े ही बदल जाती है जिन्दगी को नयी सोच फिर रास आती है तो काटो में खतरा है फूलों में नहीं यह भी नहीं कह पाते है
जब जब हम आगे बढ़ जाते है जिन्दगी में नयी नयी दिशाओं में जाते है तब हम समजते है की काटो में भी फूल होते है और कभी कभी फूलों में काटे मिल जाते है  

Sunday 12 July 2015

कविता ६८. रिश्ता

                                                                    रिश्ता
हर बार जो कुछ कहते है आप कुछ सुनते है कुछ नहीं सुनते जिन्दगी में हमेशा ऐसे ही रिश्ते होते है
जिनमे कभी लोग सुनते है कभी अनदेखा कर देते है जो बात वह सुनते है उसे सोच के हम खुश हो  लेते है
पर जो बात  वो नहीं सुनते उनसे अफ़साने बनते है हर बार तो यह मुमकिन नहीं की हम हमेशा सही होते है
कभी हम गलत होते है कभी हम सही होते है पर रिश्ते तो बस वही सही लगते है जिनमे अगर हम गलत हो तो वह हमें समज जाये और उनकी गलती पे हम समज लेते है
हर मोड़ पर अक्सर नये नये मौके तो आते होगे जब हम आगे बढ़ जाते है तो उन मौकों को अक्सर हम नहीं समज पाते है
पर खोते हुए मौको  के संग रिश्तों को तो ना खो दे यह काश कभी कुछ मोड़ पर तो हम कर पाते पर आसानी से आगे तो हम हर बार चल पड़ते है
सारी मोड़ पर जब भी हम उम्मीद से आगे बढ़ जाते है कई बातों को तो पिछे छोड़ जाते है पर कभी कभी वह रिश्ते भी होते है
जिने जाने कब हम पिछे छोड़ जाते है हमें लगता नहीं के हम यह कर चुके है पर उस अहसास से पहले ही छोड़ जाते है
हम कहते है अक्सर हमने तो निभाया था रिश्ता पर हर बार जिन्दगी में आगे बढते हुए हम कई रिश्तों को खो देते है क्युकी शायद हमें सोचने ही नहीं देते है
वक्त ना दे तो चल जाता है सोच ही तो रिश्ता अपनाता है वक्त कम भी मिले तो क्या है एक सोच से ही रिश्ता चल पाता है
पर जिस पल सोच जुदा हो जाये रिश्ते को क्या वह सिर्फ एक दिखावा है सही गलत तो हर पल बदलता है पर रिश्ता वही सही है
जो एक ही सोच को अपनाता है वरना दुनिया में ऐसा लगता है वह रिश्ता ही बस एक बड़ी उलझन बन जाता है 

कविता ६७. पत्तों की कहानी

                                                             पत्तों की कहानी
उन पौधोंने जो बात कही वह दिल ने आज दोहराई है मन के उस अंधियारे में उम्मीद की ज्योत जगायी है
मन  खुशियों  से भरा हुआ हो या कोई चीज़ खोया हुआ हो फिर भी उस मन में एक किनारे में  कोई खुशियाँ समायी थी
उस पौधे ने मन के उसी मंदिर में ज्योत जगायी है मन तो विधाताका वह मंदिर है जिस में पावन सोच ही समायी है
वह तो अपनी अपनी गलत सोच है जो मन को मैला कर जाती है पर जब एक पौधा छू लेता है ऐसा लगता है
उसने छू लिया है
हर पल मन के अंदर अक्सर नयी सोच जगाई गयी है उन अँधियारो से बचकर मन में उजियाले की उम्मीद हर पल आयी हुई है
हम जब जब भी सोचे मन मंदिर में एक नयी सोच जिन्दगी में समायी हुई है हर एक फूल को चाहा हमने पर अभी पत्तोने भी हमसे प्यार की उम्मीद जगाई है
फिर से जिन्दगी ने हमे काटों से दोस्ती की कहानी सिखाई है जब फूलों को इतना प्यार मिला तो पत्तों ने भी अपनी कहानी सुनाई है
क्या हम बस फूलों को चाहते है यह वह बिन फूलों की डाली पूछ रही है जब उसकी और नज़र घुमाई तो इन्कार करने से नज़र कतरा रही है
सारे तरह के पत्तों में से कुछ पत्तों ने हिम्मत दिखाई है वह पास आकर पूछ रहे है क्या हमारा प्यार सिर्फ फूलों  के लिए है और उनके लिए सिर्फ तनहाई है
जब मन के उसे कोने में जिस में हमने अपनी चाहत छुपायी है उसने आवाज दे कर कहा है की प्यार तो सबके लिए है
क्युकी प्यार तो ईश्वर की दुआ है जिस में कोई अपना नहीं और ना हो कोई पराया है तो उस प्यार के मंदिर में फूल, पत्ते और काटे सबकुछ समाया है 

Saturday 11 July 2015

कविता ६६. बुराई को धो देते तो

                                                          बुराई को धो देते तो
नयी तरह की हवाओँ को बारिश जब छू लेती है उस हवा में हम कोई ना कोई नयी ख़ुशी जरूर पाते है
हर बार जब हवा मन को खुशियाँ दे जाती है क्युकी हर बार वह हवा हमें नयापन दे देती है और उस हवा का प्यारा स्पर्श हमें ख़ुशी देता है
नये नये तरीकों से बारिश हमें खुशियाँ देती है पर हर बार जब हम जिन्दगी में आगे बढ़ते है तो सारी दुनिया से बुराई धो देते है
सिर्फ बारिश नहीं ओर सारी नदियाँ और कई तरह के रूप में पानी हर बार उन्हें धो लेते है बुराई को मन से धोने में लिए काश पानी ही कही हो जाता यह ख़याल ही मन को भाता है
बाकि सारी चीज़ों  को भी हम आसानी से समज पाते पर मन की बुराई को काश की हम खत्म कर पाते पर ऐसा होता नहीं है
मन का मैल निकल जाता नहीं है हर बार जब हम कोई सोच जो सही और बराबर होती है तो जब गलत चीज़ को रखते है
और हर बार गलत सोच को रोकने है के लिए हम बार सोचते रहे है सभी सोच जो नये नये तरीकों से दुनिया को छू लेती है
हर बार बुरी सोच को धोना बहुत मुश्किलसा लगता है क्युकी हर राह पर हम अलग अलग सोच रखते रहते है
पर कोई सोच उस तरह से नहीं धुलती है जैसे पानी सबकुछ धोता है सोच को बदलना बड़ी मुश्किल से ही मुमकिन होता है
हर बार सही सोच जो हम राहों में पाते है उसी सोच को बार बार हम समजना चाहते है पर दूसरों को बदलना इतना आसान नहीं होता है
इसी लिए तो हम सही सोच को बार बार समजना चाहते है पर दूसरों को बदलना चाहते है पर वह सोच आसानी से नहीं बदलती है
तो हम बस अपनी सोच वही जगह पर रखना चाहते पर फिर भी हम कभी यह सोचते है की काश पानी इस को भी धो देता तो जीना कितना आसान हो जाता है 

कविता ६५. लहरो के आगे

                                                      लहरो के आगे
नयी तरह की हवाओँ को बारिश जब छू लेती है उस हवा में हम कोई ना कोई नयी ख़ुशी जरूर पाते है
हर बार जब हवा मन को खुशियाँ दे जाती है क्युकी हर बार वह हवा हमें नयापन दे देती है और उस हवा का प्यारा स्पर्श हमें ख़ुशी देता है
नये नये तरीकों से बारिश हमें खुशियाँ देती है पर हर बार जब हम जिन्दगी में आगे बढ़ते है तो सारी दुनिया से बुराई धो देते है
सिर्फ बारिश नहीं ओर सारी नदियाँ और कई तरह के रूप में पानी हर बार उन्हें धो लेते है बुराई को मन से धोने में लिए काश पानी ही कही हो जाता यह ख़याल ही मन को भाता है
बाकि सारी चीज़ों  को भी हम आसानी से समज पाते पर मन की बुराई को काश की हम खत्म कर पाते पर ऐसा होता नहीं है
मन का मैल निकल जाता नहीं है हर बार जब हम कोई सोच जो सही और बराबर होती है तो जब गलत चीज़ को रखते है
और हर बार गलत सोच को रोकने है के लिए हर बार सोचते रहे है सभी सोच जो नये नये तरीकों से दुनिया को छू लेती है
हर बार बुरी सोच  का होना बहुत मुश्किलसा लगता है क्युकी हर राह पर हम अलग अलग सोच रखते रहते है
पर कोई सोच उस तरह से नहीं धुलती है जैसे पानी सबकुछ धोता है सोच को बदलना बड़ी मुश्किल से ही मुमकिन होता है
हर बार सही सोच जो हम राहों में पाते है उसी सोच को बार बार हम समजना चाहते है पर दूसरों को बदलना इतना आसान नहीं होता है
इसी लिए तो हम अपनी सही सोच को दिल में रखते है और बार बार बस यही कहते है चाहे कुछ भी हो जाये हम वही सोचते है 

Friday 10 July 2015

कविता ६४. सागर में छुपे ख्वाब

                                                                  सागर में छुपे ख्वाब
सागर के किनारों पर जब ख्वाब कोई बुनता है उन ख्वाबों को समजना हमें अक्सर आता है वह सागर जो सिपो में मोती छिपाता है
अक्सर वही सागर अपने आँचल में हमारे ख्वाब रख जाता है उन ख्वाबों की माला में जब हम ख्वाब चुनते है हर बार बस वही सोच है
जिसमे हम कई तरह के ख्वाब हम रखते है सारे ख्वाब जो हम रखते है उनमे भी दुनिया दिखती है और हर बार जिस सोच में हम जीते है
वही सोच उस सागर की लहरों पर जुमती है उन ख्वाबों को जिनमे अक्सर यह दुनिया दिखती है हम हर बार यही सोच हमेशा रखते है
हम कभी जब यू ही सोचा करते है तब देखते है परिदों को सागर के ऊपर उड़ते हुए तब हम सोचा करते है शायद उनको उस सागर में हमारे ख्वाब भी दिखते है
उन लहरोंने जब हमें छू लिया था क्या उस पल उन्होंने वह ख्वाब भी चुने होंगे हर मोड़ पर जब पानी छू लेता है हम को क्या उस पल हमारे ख्वाब भी पानी ने सुने है
पर जब याद करते है हम उन लहरों को उम्मीद सी जग जाती है हर बार धरती और धरा तो अपना साथ निभाती है पर सागर बहकर दूर निकालकर ख्वाब साथ ले जाता है
वह सागर तो चुपके से हमारे ख्वाब भी साथ ले जाता है शायद हम भूल भी जाये पर वह सागर उन्हें नहीं भूल पाता है
शायद बस इसीलिए ख्वाबों का कारवा जिन्दगी में अक्सर आता है उन ख्वाबों में जिनमे हम अक्सर जीते है वही ख्वाब जब भूल भी जाते है
और हार भी मान लेते है पर फिर भी ख्वाब पुरे हो जाते है क्युकी ख्वाब जिन्दा रहते है सागर में कुछ ख्वाब हमेशा मेहफ़ूज़ रहते है
इसी लिए ख्वाब में प्यारी चीज़ मन को छू जाती है शायद वह सागर हमें ख़ुशी देता है सागर ही हमें ख्वाब वापस दे देते है 

कविता ६३. सही राह पर चलना

                                                           सही राह पर चलना
जब हम कहते है और लोग समज जाते है हमे लगता था वह प्यारा मंजर होगा पर आजकल देखा है हमने हर बार और समजा है
लोग हमे समजे उसे भी कुछ नहीं हासिल होगा हर बार किसी मोड़ पर जब हम मिलते है दिखते है कई मंजर जिनका जिंदगी में असर होता है
हर बार जो हम किसीको समज लेते है तो उसे समजने का भी एक मतलब होता है पर जब हम गलत को सही बना लेते है तो भी आगे क्या यही मंजर होता है
लोग सही को समज भी ले पर फिर यह समजना भी अहम होता है की आगे क्या करेंगे इस दुनिया में उसे समजना जरुरी होता है
की आगे क्या करना है यह दिल समजता ही नहीं तो अगर हम किसीको समजाना चाहे तो पहले हमे यह जानना जरुरी होता है
आगे बढ़कर हर बार हमे समजना होता है की जिन्दगी में कई मोड़ तो दिखते ही रहते है पर गलत को सही कर के नहीं चुप रहना होता है
आगे बढ़ने के कई मोड़ होते है जिन पर चलकर हमें गिरकर संभलना है पर सबसे पहले यह जरुरी है की हमे संभलना जरुरी होता है
सिर्फ गलत को सही करना काश काफी होता दोस्तों पर आगे नयी राह बनाना भी बहोत जरुरी और अहम ही होता है
पर जब गलत राह पर हम चलते है और उनसे गुजरते है उन राहों को समजना जरुरीसा लगता है क्युकी सही राह तो अहम है
पर सिर्फ उसे बताना मुनासिब नहीं होता उसे समजना और उसके साथ चलना भी पड़ता है जिन्दगी में आगे  बढ़ना सही राह पर चल के दिखाना सही होता है 

Thursday 9 July 2015

कविता ६२. मुड़ जाना

                                                                   मुड़ जाना
काश पानी की तरह हर बार हम आसानी से मुड जाते काश कोई हमे रोके तो उसे माफ़ कर के हम अपनी अलग राह आसानी से चुन पाते
पर इस तरह से दुनिया चलती नहीं अक्सर लोग रोक तो देते है पर हमे अपनी राह मुड़ने नहीं देते हर बार जो हम अलग जाना चाहते बस जा नहीं पाते
पानी की तरह साफ दिल से भी अगर मुड़ना चाहे तो भी लोग चाहते है की चुनी राह पर ही चलते रहे वह लोग हमे समज नहीं पाते
जो मोड़ हमें हर दम राह दिखाते है उन्हें जानना मुश्किल नहीं पर हम उन्हें दूसरों के कहने पर पीछे छोड़ कर हर बार है आते
जब हम उनके संग चल नहीं पाते बेहतर तो यह होगा के वह लोग हमें छोड़ ही देते पर ऐसा नहीं होता क्युकी कितना भी मूड जाये पर आखिर में लोग उस पानी को है लाते
उस तरह से ही कुछ है की जिन्दगी में लोग हमें ना साथ देते है ना हमे हमारी राह पर चलने भी नहीं देते क्युकी हम तो उनकी जरूरत है जिसे वह छोड़ नहीं पाते
पानी को नये रूप तो दिखाई देते है पर हम उस तरह से बदल तो नहीं सकते और ना भाँप बनके उड़ पाते  है हर बार हम तो कुछ इस तरह से मुड़ते है की लोग है हमे रोक पाते
हम अगर उनकी जरूरत है तो दोस्तों हम यही नहीं समज पाते है की वह हमारी सोच को अपनाते क्यों नही जिन्दगी में हम तकलीफ क्यों है पाते
काश कोई उन्हें समजाये की जिन्दगी में जिनका साथ वह चाहते है उनकी राहों को हर बार हम अपना नहीं सकते हम हर बार सही ओर से चलना चाहते है और वह हमे समज नहीं पाते
हम सही सोच से चलते है काश लोग यह समजे की हम उनकी तरह चलना नहीं चाहते पर जब वह लोग नहीं समजते हमको हम झगड़ना नहीं चाहते पर फिर भी झगड़ लेते है क्युकी वह लोग हमें नहीं समज पाते 

कविता ६१. छोटासा परिंदा

                                                                  छोटासा परिंदा
बड़ा मजा आता है जब हम कुछ सुन्दरसा परिंदा देखते है दिल सोचता है की यह छोटासा परिंदा इतना खुश है
अपनी दुनिया में तो हम क्यों नहीं है
हम क्यों माँगते है इतना सब कुछ अपनी दुनिया में हम खुश क्यों नहीं हर बार जब हम इधर उधर घूमते है जाने क्यों सारी महंगी चीज़े मांगते है
छोटा  छोटा  परिंदा भी जब हमे खुशियाँ दे सकता है हर घडी हमे जाने क्यों बड़ी चीज़ों का इतना इन्तज़ार रहता है जिन्हे दिल चाहता है
हमने  देखा है सिर्फ प्यार भरी नज़र काफी है जीने के लिए पर शायद वही नहीं मिलती इसी लिए सबको बड़ी गाड़ियों का इन्तजार रहता है
प्यार तो नहीं मिलता तो उस भूख को दौलत से मिटा ने कोशिश में है कुछ लोग तो कुछ को लगता है की दौलत से ही प्यार ख़रीदा जाता है
परिंदेने  जो समज लिया उड़ते हुए वह समजने को दिल चाहता है पर फिर भी हर बार यही सोचता है की नयी उम्मीद को पाना चाहता है
क्युकी परिदों को तो हसते हुए देखा नहीं पर हर बार बिना हसे ही वह खुश रहता है और यहाँ ऐसे हालत है अपने दोस्तों की रोज हस के भी हमे रोना आता है
छोटी छोटी खुशियों में जो जीना सिखते है उन्हें बार बार यू ही नहीं रोना आता है पर हम इन्सान बस बडी बड़ी चीज़े चाहते है कुछ इस कदर की दुनिया में मागते है
सबकुछ गलत की हमारी उम्मीद पूरी हो या ना हो हमारी किस्मत में हर बार रोना आता ही है जब हम आगे बढ़ना चाहते है  तो हमे सही रास्त्तो का ख़याल  ही नहीं रहता है
और हमारे दिल को हर बार नयी उम्मीद तो होती ही है पर काश हमे सिर्फ उन छोटे परिदों का इन्तजार होता क्युकी तब शायद  हमे उनका एतबार भी मिल जाता है 

Wednesday 8 July 2015

कविता ६०. चेहरों को समजना

                                                           चेहरों को समजना
हमने सोचा था हमने तो उस नज़र को पहचान लिया है पर फिर चेहरे को देखकर मन में क्यों तूफ़ान उठा है
हमें तो लगता था की हजारों में भी पेहचान लेंगे हम पर नज़रों की जगह हमने चेहरे पर ही ज्यादा गौर किया है
छुपने का मजा तो अलग है पर उसमे कभी कभी अनजान समजने का खतरा भी घिरा हुआ है
जब तूफानों में नयी नयी सोच का सिलसिला है क्युकी हर बार सोच में एक मतलबसा लिखा है
काश चेहरे की जगह सोच को ही पढ़ पाते हम इस लिए उस सोच से नयी दिशाओं का नया सिलसिला है
चेहरे की नयी सोच जो हम समज पाते उसे हर बार हमे नयी उम्मीद का तो कोई किस्सा मिल पाता
जब जब हम चेहरे पढ़ते है सोच को काश पढ़ पाते हमारी नज़र तो धोका नहीं देती है पर फिर भी उस नज़र को कभी कभी ढूढ़ ही नहीं पाते है
चेहरा ही कभी कभी अहम बनता है उसका हर फरक भी नहीं समज पाते है हम क्युकी अक्सर जिसे ढूढती है
हमारी नज़र उसे ही हर मोड़ पर हम देखने लगते है
चेहरे पर कई  रखते है हम जब चलते है काश चेहरे को समज पाते हम हर मोड़ और दम क्युकी उस चेहरे को नहीं समज हम पाते है
सोच में नये नये तरीके लाती है जिन्दगी उस सोच में कई कई बार जिन्दगी के नये नये सपने देखने हम लगे है
चेहरो को हर बार समज नहीं पाते है काश नजरों की तरह चेहरों को समजना आसान होता क्युकी जरूरत पड़ने पर नज़रे छुपा लेते है
लोग अक्सर जिन्दगी में नज़रो को पड़ने नहीं देते सिर्फ चेहरे दिखते है पर उन्हें हम अक्सर नहीं पेहचान पाते है
तो काश उस मंजर को समज पाते हम जिस को अक्सर देखते है वही चेहरे भी कभी कभी अलग ही रंग दिखलाते है हमको हर मोड़ पर और हर दम 

कविता ५९. उम्मीद को समजना

                                                            उम्मीद को समजना
काश हम आप बिन कहे ही कुछ समज पाते काश हम हर मोड़ पर उम्मीदों को जिन्दा रख पाते
पर ऐसा नहीं होता है अक्सर ज़माने में हर बार कई मोड़ आते रहते है फ़साने में काश हमने भी कोई
आसान मोड़ समजा होता
पर आसान मोड़ नहीं मिलता हर बार काश के हमने उन्ही मोड़ों में से सही मोड़ को समजा होता
काश हम जमाने को समज पाते की हर बार कोई मुश्किल नहीं होती है जीने में हर किसी ना किसी फ़साने से हमे जीना सीखना नहीं पड़ता
कभी कभी बड़ी आसानसी एक बात होती है बस उसका  दिल से मुँह तक आना नहीं होता और फिर जो अफसाना बनाता है जिसे मन से समज पाना नहीं होता
काश के हम समज लेते इस दिल को काश उसमे कई मसले भी शामिल हो पर उन मसलो को जिन्दगी में समज पाना नहीं होता
उन्हें इतना उलजाते है की किसी ओर से उनको सुलजाना नहीं होता उम्मीद को समजना बड़ा मुश्किल है होता
उसे समज पाना हमे आसान नहीं लगता क्युकी हर बार समजना बातों को आसान नहीं होता
क्युकी बातों में नये नये मोड़ तो अक्सर होते है उन्हें समज पाना आसान नहीं होता जिन्हे हम हर बार जीते है उन्हें भी कई बार समजना आसान  नहीं होता
जिन्दगी में कई सोच जो रखते है उस सोच को समजना जिन्दगी के लिए आसान नहीं होता
हर हर वक्त जब हम हर मोड़ में चलते है उस मोड़ पर चलना जिन्दगी में इतना आसान नहीं होता
पर फिर भी लगता है के अगर बात आसानी से मुँह से निकल जाये तो उसे समज पाना हमारे जिन्दगी के लिए आसान हुआ होता
पर फिर भी अगर जिन्दगी इम्तिहान चुनती है तो वह इम्तिहान देना जिन्दगी के लिए  मुश्किल नहीं बड़ा आसान होता 

Tuesday 7 July 2015

कविता ५८. ख्वाब

                                                                ख्वाब
खूबसूरत सा एक ख्वाब हमें दिखता है कोई जिसे हमे हसना सिखाता है उस ख्वाब के कई मतलब होते है
जिनमे सारी सोच को समजना हमे आता है
ख्वाब में कई मोड़ दिखते रहते है तरह तरह ख्वाब में हसना हमे ख़ुशी देता रहता है उस हसने में भी हमे दिखाते है कई ख्वाब हमे उन्हें जीना अहम लगता है
कभी कभी जिन्दगी को भूल के बस उस ख्वाब में ही जीना सही लगता है ख्वाबों में कई तरह की सोच रखते है और इन ख्वाब में जिन्दा रखता है
ख्वाब में नयी नयी सोच हम समजते है दुनिया में कई ख्वाब जो हम देखते है सारे ख्वाबों में हर बार दिल में जिन्दा रहते है
ख्वाबों में नयी सोच हमें दिल में जगाती है सोते हुए लोगों को वह ख्वाब भी है रोज जगाती हर हर बार यह जिन्दगी हमें नयी सोच को भी जिन्दा रखती है
ख्वाब जो जगते है उन्हें वह होश में है लाती कुछ ख्वाब में जो ताकद है जो हमें जिन्दा है रखती है हमारी सोच को कुछ उस तरह से जगाती है
की दुनिया में बस वह सोच जिन्दा है रहती वह जीती है हर पल और हर ख्वाब को जगाती है हर मोड़ पर यह जिन्दगी उन ख्वाबों के ताकद से जीती है
वह ख्वाब जो साँस बन कर हर बार जिन्दा रखते है वह ख्वाब वह सोच है जो हमे रोज जीने हरदम देती है
बस उसी ख्वाब को हमे  नयी सोच बनायीं है जो हमे रोज जिन्दा है रखती क्युकी जिन्दगी तो वह चीज़ है जो हर पल ना चलती है ना संभलती है
जिन्दगी तो वही चीज़ है जो हर पल है जीती सिर्फ उन ख्वाबों में हर पल वह जिन्दा है रहती कुछ ख्वाब ऐसे भी
 होते है जिन में जिन्दगी हमेशा बसती है

कविता ५७. मतलब राह का

                                                             मतलब राह का
उन सारे ख्वाबों को उनमे हम जीना चाहते है वह हर ख्वाब हमें कुछ कहता  है जिस में हम जिन्दा रहते है 
पर जब  राह सोचकर ही चुनना क्युकी राह ही जिन्दगी तय करती है हर मोड़ पर हस देते है और राह ही 
नयी नयी सोच को जिन्दा करती है पर सही तो बस वही राह है जिस पर हमारी उम्मीद जिन्दा रहती है 
राह परखो या तुम समजो पर राह सही चीज दिखाती है वह चीज़ जिस में कई तरह की सोच होती है 
उसे उम्मीदों से तो बांधा करते है क्युकी वही सोच जिस में हम जीते है उसमे जिन्दगी को जिया करते है 
हर सोच बार बार यही कहती है जिन्दगी रोज नया इम्तिहान लेती है पर इसका मतलब तो यह नहीं होता है 
जिसमे सोच को गलत मोड़ में मुड़ने दे जब हम सही राह पर चलते रहे है तो हर बार हम समजने लगे है 
राह को समजना बड़ा अहम है दोस्तों क्युकी आखिर राह पर हमे नयी सोच मिलती है पर अगर रास्ते गलत है 
तो जिन्दगी को समजना इतना ना मुश्किल होगा जब सोच को ही गलत कर दो तो हर जिन्दगी का हर फैसला गलत होता है 
पर कभी कभी जब आगे सही सोच से बढ़ते है और राह का हर किस्सा गलत होता है तो समज लो इन राहों को क्युकी उस राह को चुनने का फैसला भी गलत होता है 
माना की जिन्दगी में कई मुश्किलें होगी पर गलत राह से बेहतर भी तो कोई राह होगी अगर सही इन्सान ही गलत राह चुने तो सोचो दुनिया की क्या मंजिल होती है 
सही सोच के साथ सही राह भी जरुरी होगी क्युकी उन राहों में ही जिन्दगी की कोई मंजिल होगी जब हम राह को चुनते है 
अक्सर वह जरुरी होता है क्युकी राह ही तो सही गलत का हिस्सा होती है सिर्फ सही सोच काफी नहीं है दोस्तों हमारी सही राह भी जिन्दगी का किस्सा होती है 

Monday 6 July 2015

कविता ५६. दिल को समजे

                                                                 दिल को समजे
काश हम जो समजते दिल को तो आसानी होती पर क्या हुआ अगर मुश्किल भी हो तो आखिर अपना दिल ही तो है
अगर उसके लिये हम कुछ तो पल दे ही सकते है जिसने हमे समजा है क्यों उस दिल को ही तनहा रखे यू हम उसे भी कभी वक्त देंगे हर बार यही कहते है
जिन्दगी जो हमें साथ देती है तो कभी धोका भी देती है काश उसे एक बार भी हम अपने दिल से समजा लेते है पर यह तो बड़ा मुश्किल होता है
क्युकी नयी नयी सोच में कोई ना हमारे सोच में दिल की प्यारी सोच हम पाये हर बार जब हम आगे बढ़ते है उम्मीदों में जीते है
हर बार दिल को समजने में जिन्दगी के कई दिन निकले जाये पर फिर भी आखिर यह तो वह दिल है जिस में हम कई ख्वाबों को पाते है
हर बार उसे समजे वह दिल ही हमारे लिए उम्मीद लाये सारे खयालों में दिल के हम नयी सोच हर बार पाये जब जब हम दिल में कुछ सोचते है
दिल दुनिया को नयी नयी सोच मन ले लाये हम चाहते है इस दिल को और उसके अंदर हम उम्मीद पाये हर बार सोचते है
नयी सोच में तरह तरह की सोच हम मन में पाये जो हमारे दिल को बहलाये  दिल तो जो छू लेते है हम क्युकी मन में वह सोच पाते है
दिल में कई सोच जो हम रखते है हर बार दिल को जिंदा रखते है क्युकी वह दिल उम्मीद को जिन्दा रखता जाये उन सनाटो में हस कर वही दिल राह दिखाये जिस पर हम चलते जाते है
तभी तो हम जीत पाते है शांत मन को जो तस्सली दे वह गीत सिर्फ हमारा दिल ही गाये सनाटो में हमारे आँसू पीकर हमें नयी सुबह दिखाता है
तो इसीलिए उस दिल के हर उम्मीद पर हम जिंदा रह जाये उसी दिल को समजने में क्यों ना हम कुछ  दिन रात गुजरते जाये

कविता ५५. कुदरत की बात

                                                             कुदरत की बात
छोटे से उस पौधे में हमे दुनिया के कई रंग दिखे कभी ख़ुशी कभी गमों के सारे सोच की चाहत हर ओर दिखे 
जब हम उम्मीद रखते है 
तब नयी नयी सी सोच दिखे उस आसमान में जिस के नीचे हम जीते है हर बार ख़ुशी के कई तरह के मोड़ दिखे पर जब हम दुःख से देखते है 
हमे रोज कोई उम्मीद दिखे जो हमे खुशियाँ देती है या गम हर बार हमारी सोच कई मोड़ पर कई बार हमे हर बार दिखे जब हम कोई सोच है 
जिनमे हम सोचते है नयी नयी तरह की उम्मीद दिखे पर हम सोचते है सारे आशाओ के दिप बार बार जले सारी सोच जो हम दिल में रखते है 
उन पर हम कोई ना कोई उम्मीद दिखे हर बार जो हम सोच रहे है सारी दुनिया हमारे नज़र में क्या सिर्फ हमारी सोच ही है 
क्युकी सारी सोच वही है जिसे हम रोज नहीं समजते पर सिर्फ सोच पर ही है हम चलते है कुदरत जो दिखती है वही राह हम चुनते है
पर अपनी मर्जी से नहीं कुदरत की जबरदस्ती से हम चलते है काश की कुदरत की सारी बाते हम समज जाते उन्हें बताते और जब समजते है
कुदरत तो वह चीज़ है जिसे हम हर बार पसंद करते है पर जब वह उलझन देती है कहा उसे हम अपनाते है हर मोड़ हम वही सोचते है
की शायद हम कुदरत को समज पाते है पर हम नहीं समजे उसको कुदरत हमें समजती है और हमें आँधी तूफानों से सब कुछ सिखाती है
अच्छी सोच से जब हम समजे कुदरत हमे उम्मीद है देती रोज नयी दिशाओं के संग कुदरत ही वह चीज़ है जो हमे खुशियाँ देती है 

Sunday 5 July 2015

कविता ५४. हमारे ख़याल

                                                                    हमारे  ख़याल
हर मोड़ पर मिलते है कई सोच  खयालों में जो जीते रहते है वही खयालों को हर बार जो छूते है
वही लोग हमें जिन्दगी में कही मोड़ पर मिलते है अगर कोई सही बात भी करना चाहे जिन्दगी अक्सर देती नहीं सीधी राहे
उन राहों पर जब भी हम चलते है सभी मोड़ों पर उम्मीद ही पाते पीछे की जिन्दगी तो बस वह झरोका जिस हमे सिर्फ यादों में ही रखना होता है
सारे राहों पर हम जीते रहते है पर हम बार बार उस मोड़ पर सोचते है की सारी दिशाओं में अक्सर नयी चीज़े दिखती है
वही कभी सीधे सीधे राहों पर चलते रहते है जब कभी हम उम्मीद करते है हम यही सोचते है और राहों से गुजरते है
मोड़ों पर कई खयाल जो रखते है जिन पर हम वह उम्मीदे भी रखते है सारी राहों पर जो सपने अधूरे से रह गये है
हम उन्हें पूरी करने की कही ना कही काबलियत भी रखते है  पर कभी कभी हम दिल से यही चाहते है
की हम जीत जाये तो हम उम्मीद को जिन्दा भी रखते है पर अगर हम हार भी जाये तो भी कुछ काम तो करते है
रहो पर कोई ना कोई उम्मीद हम हर रोज तो रखते है और उम्मीद रखे तो भी क्या गलत करते है हर बार हमारी सोच दिल में रहती है
सारी सोच हमे दिल में जिंदा रहती है वही हमारी जिन्दगी है जो कभी ना बदलती है हर बार हम यह सोच को रखते है
जो हमें खुशियाँ देती है हर मोड़ पर हम जीते है खयाल हमारे बुलंद हो तो दुनिया क्या कर लेती है हर बार जो जीते वह एक सोच हमें जिंदा रखती है
हर मोड़ पर जो हमें नये ख्वाब पैदा करती है वही सोच हमे जीने पर मन में खुशियाँ देती है सोच में कभी कभी तो जीया करो क्यों की सोच ही हमे बनती है
इंतजार मत करना उम्मीद का जो हर पल जिंदा रखती है हर बार हम जब आगे बढ़ते है तब दुनिया नहीं पर यह सोच ही पहले खुशियाँ देती है  

कविता ५३. जीत

                                                                            जीत
जब कुछ पाते हो तो उसे खोना पडता है और जब उसे जीतते है उसे जिन्दगी में जीना होता है पर कोई ऐसी जीत नहीं जो हर पल रह जाती है
हर जीत जो कुछ पल रहती है वह कुछ पलों में  खो जाती है जिन्दगी कभी रूकती है वह आगे बढ़ती जाती है जो कुछ जीता है हमने वह साथ ले जाती है
बस रिश्ते ही है वह चीज़ जो हमे साथ देते है जब हम साथी ढूढे ऐसे जो हमारा साथ दे हमारी जीत का नहीं तो हम को दिल से चाहते है
जीत तो आती है और जाती है पर हर बार मुसीबत लाती है क्युकी वह जिंदगी हमें जूठे और सच्चे लोग दिखती है अगर हम सिर्फ सही होते है
जो जीत या हार कोई फरक नहीं करती अगर वह सिर्फ सही लोग को लाती है जिन्दगी में सही चीजो का मतलब वह समजती है
क्युकी जिन्दगी सचमुच में सीधी है पर जीत के बाद वह अचानक अलग रंग दिखाती  वह कहती वह तराने जिनमें हमारी जान बसती है
पर वही उस मोके में जूठे दोस्त दिखाती है हर बार जो हमे समज जाये वह जिन्दगी हमें कही ख्वाब दिखती है हम जब आगे बढ़ जाये खुशियाँ जिन्दगी ही लाती है
सारी दिशाओ में हम बस यह सोचे जिन्दगी गलत ख्वाब दिखती है पर सच तो की वह तो हमें सिर्फ सही राह दिखती है
सक्त सही पर जिन्दगी को ताकद है जो हमे सही तरीके से जीना सिखाती है हर बार और हर मोड़ पर बस यह सोचे जिन्दगी हमें बता नहीं क्या क्या दे जाती है
जिन्दगी है वही चीज़ जो हर बार सही सोच दिखाती है हर मोड़ पर जब हम चलते है वही सही राह हमें दुनिया दिखाती है हर बार जब हम आगे बढ़ते है हमे हरा के असली दोस्त दिखाती है
माना की रुलाती है हमें जिन्दगी पर वही साथ निभाती है सही ख्वाबों को जीत देकर सही राह हर बार हमें दिखाती है 

Saturday 4 July 2015

कविता ५२. कुदरत

                                                                      कुदरत
फलों में जो खुशबू वह हर बार सुनाती है कुदरत ही है वह करिश्मा जो हमें हर बार आगे बढ़ना सिखाती है
वह सारी खुशबू जो हमे खुशियाँ ले जाती है फलों को जो ताकद होती है जो मन को खुशियाँ दे जाती है
पर हर बार कुदरत जो देती है वह खुशियाँ हमारी जिन्दगी में लाती है हमे वह ताकद जो कुदरत देती है
वह हमारी मन को भाती है कुदरत जो हर बार कुछ हमें कहती है हम उस कुदरत को हमेशा समज पाते है
पर कभी कभी उसकी और देखना ही भूल जाते कितनी बार हम कामों में खुशियों को भुला देते है
और हर बार हम बस यही सोचते रहते है की काश कुदरत भी हमारा साथ देती पर हम  जिसके साथ नहीं है
कैसे वह हमारा साथ देती फिर भी यह कुदरत ही है जो हर मोड़ पर हमारे पास ही रहती है जब जब हम उठते है
कुदरत जो ताकद रखती है हर बार हमे खुशियाँ देती है बार बार हम जब सोचे की हम हार चुके है
बारिश बन के पानी देती है कोई ना बता सके है उसे नूर को माना की सब कहते है अनजाने होकर भी जानने का दम भरते है
कुदरत जो खुशियाँ देती है हर बार हमें  भाती है कुदरत में जो ताकद होती है वह हमे हर बार  कोई ना कोई खुशियाँ देती है
कुदरत में सारे रंग है जो हमें खुशियाँ देते है हर बार सारे रंग हमेशा अच्छे होते है पर जब कुछ वह गलत कर दे तो ना जाने क्यों उसी से नफरत होती है
कुदरत बड़ी अजीब चीज़ है जिसे हम चाहे और ना भी चाहे एक पल कुदरत के पीछे भागे दुसरे पल किनारा रखते है
जब वह हमे खुशियाँ देती है हम भर भर के लेते है पर उस पल कुछ ही लोग होते है जो तारीफे करते है
तो वह कुदरत ही है जिसके बिन हम कुछ भी नहीं तो उस कुदरत को क्यों भूले हम ऐसे भूले खुशियों में उसको जैसे पत्थर के सनम 

कविता ५१. राह ढूढ़ना

                                                                राह ढूढूना
उस राह पऱ कुछ और चाह थी पर हम अब समज चुके है कितनी गलत वह राह थी बचपन से हमे नये नये रास्ते तलाश ने की चाह थी 
जिसे भुल चुके थे हम पर जब फिर से सोचा तो मन में वही उमंग थी क्युकी हर एक राह पर हमे कई मोड़ दिखते है और हम समजे वही चाह थी 
राह में कई तरह की सोच हमे उसे ढूढ़ने की चाह अभी भी थी बार बार हम जो सोचते रहे नयी राह पर चलने की बाते तो फिर मन में एक चाह थी 
नयी नयी राहों की खुशबु में आँखों को एक नयी रोशनी दिखाते है हर रोज जब हम ढूढ़ते है वह राह बड़े मजे से फिर से बचपन को जीते थे
बार बार जब हम कई राहों से हम जब गुजरते है जब हम पाते है कई राहों पर हम नयी राह ढूढ़ते रहते है और  हर बार हम नयी राह समजते थे
सारी राहे हमे जिन्दगी में खुशियाँ देती है अगर हम हिम्मत जाते हर राह पर नयी सोच हम हर बार हमारी जिन्दगी पाते थे
आज भी बस वही कोशिश हमे खुशियाँ देती है तरह तरह की राहे हमें खुशकिस्मत बनती है हम हर बार यही सोचते है की बचपन की खुशियाँ सिर्फ बचपन की ही होती है
पर जब आप बड़े हो जाये तो भी हमारी जिन्दगी में वही खुशियाँ देती है तो बड़े होने पर भी राह ढूढ़ना बड़ा मजा देती है
बचपन हो या हो बुढापा वह राह हमेशा हमें भाती है जिस ढूढ़ने में हमे बहोत मेहनत देती है बचपन में तरह तरह चीजे जो हम करते है
वही चीजे हम बड़े होने पर भी करे तो हर बार हम तरह तरह की खुशियाँ अपने जिन्दगी राहे ढूढ़ने से हमारी जिन्दगी में पाते है 

Friday 3 July 2015

कविता ५०. सोच को समजना

                                                                 सोच को समजना
कुछ लोग हमे जो मिलते है हम उन्हें नहीं समज पाते है पर फिर सोचते है जाने दो हम क्या सोचे और हम
क्या समज पाये
जिन्दगी बड़ी अजीब है उस से बड़े है उनके साये सारे ओर जब हम घूमे हमारी सोच उसे आसानी से ना समज पाये
जिन्दगी के कई मोड़ हमें बार बार दिखलाए और हर मोड़ पर जब हम चले तो हर बार हम ना समज पाये
के क्या चाहते है और हम क्या पाये
जब जब हम किसी राह पर चले तो हम आसानी से समज नयी पाये की जिन्दगी में नयी सोच हम हर बार नहीं समज पाये
आसानी से जो हम समजे वह सारी बाते हम ना समज पाये क्युकी जिन्दगी में आसान चीज़ को अपनी लालच और डर के मारे बदले जाये
सोच जो हर मोड़ सही है उस सोच को भी हम नहीं समज पाये सोच में कही बाते होती है जो हम नहीं समज पाये
सोच में तरह तरह की चीज़े छुपी हुई है जिन्हे हम कभी ना समज पाये
सारी सोच जिनके अंदर हम बार बार नयी मन की निशानी दिल को समजाये हर बार जो सपनें हमने देखे उन्हें हम बार बार ना समज पाये
शायद आसान होती जिन्दगी अगर उसे हम आसानी से जी जाये पर हमने ही कुछ ज्यादा ही सोच कर उसमे बहोत मुश्किलें पायी
पर फिर भी हर वक्त हमारी रही सोच है लगातार पायी के हमने गलत चीज़ नहीं की थी जिन्दगी ने ही मुश्किलें लायी
सो हर बार जब हम आगे बढ़ते जाये कुछ इस तरह से आगे चले की अपनी मुसीबत अपने आप ना समज पाये
काश के हम समज लेते की इसी सोच से हम खुशियाँ ना पाये
हमारी मुश्किल बस यह की हम बहोत सोचते है किसी राह पर चलने से पहले की क्या हम इस राह पर कभी जीत भी पायेगे 

कविता ४९. दाता का तोहफा

                                                              दाता का तोहफा
हर फूलों में जो खुशबू है हम उसे हर बार चाहते है उस खुशबू में हम कई ख्वाब हमेशा पाते है पर वह खुशबू
जो वह जिन्दगी में चाहते है कभी पाते है कभी खोते है क्युकी कागज के भी दुनिया में कुछ फूल होते है
जिन फूलों को चाहा हमने हर बार सही नहीं होते है कुछ सोच और कुछ रिश्तों में हम बस खोते ही रहते है
खुशबू के चाहत में तरसनेवाले कई लोग दुनिया में होते है कुछ पा लेते है खुशबू को कुछ कभी नहीं पाते है
पर अफ़सोस तो उन लोगों का होता है जिन्हे हम अक्सर देखते है वह कागज के फूलों में ही अपनी दुनिया ढूढ़ते  है
जो फूल कभी ना दे वह कुछ लोगों के लिए खूबसूरत भी होते है पर जो नासमजीमे ले कर फिर भी ना समजे उन पर ही हम रोते है
जिस फूल में खुशबू भरी हुई हो उसे दुनियावाले ना जुटला सकते है वह समजते है  वह चुनेंगे पर फूल की खुशबू तो सिर्फ ईश्वर ही चुनते है
आप जो सोचो और जो समजो पर खुशबूवाले फूल ही खुशबू देते है जो खुशबू मन को भाती है वही मन को खुशियाँ देती है
लोग लाख कहे कुछ भी फिर भी आखिर में वह खुशबू को ही चुनते है दुनिया तो बनी है कई तरह की सोच से पर
आखिर में सब खुशबू को ही चुनते है
हर बार जब लोगोके मन में आता है वह उन फूलों को ठुकरा देते है आखिर वह लोग उन्ही फूलों को चुनते है
दुनिया को बस खुशबू भाती है पर हर बार काटे जब चुभते है बीन सोचे वह अक्सर कागज के फूल भी चुनते है
जब जब हम आगे बढ़ जाये हम इसी उम्मीद में जीते है कुछ हासिल करने की सोच में जीवन पथ पर चलते है
पर उन फूलों से सीखते है की हमे बस खुशबू देनी है क्युकी जब फूल खुशबु देते है तो कभी भी कुछ नहीं माँगते है
उसी लिए शायद मुरजाये फूल भी कई बार खुशबू देते है यह उस दाता का तोहफा है जो हम सब को जीवन देते है 

Thursday 2 July 2015

कविता ४८. काच के रंग

                                                                 काच के रंग
हर तरह के रंग उस काचमे कई बार दिखे है उस काच को अगर आप समजले तो हमे आसानी से समज जाते है
रंग बहोत खुब है लेकिन उन रंग में मतलब दिखता है अगर सिर्फ खूबसूरती को ना देखकर तुम जब उन रंगों को देखते है
तो वही रंग दिल को छू लेते है हर रंग को लोग सिर्फ देखते है सुंदरता को समज लेते है पर कभी कभी तो उन रंगों की सोच को देखो और जानो तो ख़ुशी देते है
रंग के अंदर हर मोड़ पर हम कुछ तो समज जाते है पर ज्यादातर लोग बस यही समजते है सारे रंग मन को छू तो लेते है
पर सिर्फ उन रंगों को हम क्या समजे जो हमको सिर्फ दिखते है रंग में कई मतलब हम लोग समजते है तो हर चीज़ जो हम करते है
वह सारे रंगों में ही होती है हर बार हर कदम जब हम चलते है पर कभी कभी ही हम उनको समजने की कोशिश करते है
हर राह पर चलते हुए जब इधर उधर हम देखते है सारे रंग तो सुंदर है पर उनमे भी हम एक तरह की समज रखते है
रंग को जब जब हम समजते है तो उनके अंदर भी कोई सोच को समजते है पर हमने अक्सर देखा है जो सिर्फ रंगों की खूबसूरती को ही देखते है
रंगों में कई तरह की सोच हम हर बार देखते है उस रंगों में पल पल हम कुछ ना कुछ तो समजने लायक रखते है
सारे रंगों में हर रंग कुछ ना कुछ बताता है पर लोग नहीं समजते है काश के रंग जो हमे समजाते है उन्हें भी समजा पाते
पर क्या करे अगर लोग नहीं समजते है तो आज कल हम सिर्फ आगे बढ़ते है कोई समजे तो बेहतर है जो ना समजे उन्हें हम भी तो नहीं समजते है
हम लोगों को नहीं पर सिर्फ उन रंगों को समजते है और जो रंगों को समज पाये है वह अक्सर बिना किसी मुश्किल के हमे समजते है

कविता. ५११५. उजालों से अरमानों की।

                             उजालों से अरमानों की। उजालों से अरमानों की परख सुबह दिलाती है नजारों को किनारों संग अंदाज सहारा देती है दिशाओं ...