Friday, 18 February 2022

कविता. ४३५७. ना जाने क्यों सांस कहे एक।

                                                          ना जाने क्यों सांस कहे एक।

ना जाने क्यों सांस कहे एक पुकार जो हम ने कभी ना सुनी आज दिल ने कहा इस सुबह को हर बात उसने सुनी हर बार सुनी एहसासों कि पेहलू मे हर बात सुनी।

ना जाने क्यों सांस कहे एक पहचान जो हम ने कभी ना सुनी आज दिल ने हंसकर बोला जो है उसे कहने कि जरुरत क्यों महसूस हुई हर किसी ने हर बात सुनी।

ना जाने क्यों सांस कहे एक सपना जो हम ने कभी ना सुनी आज दिल ने समझाया इस सपने कि हर राह हमने चुनी हर बार उसी कि हर बात सुनी।

ना जाने क्यों सांस कहे एक उमंग जो हम ने कभी ना सुनी आज दिल ने बतलाया इस ओर हमारी हर आस चली हर लम्हा हमने उसकी हर बात सुनी।

ना जाने क्यों सांस कहे एक तरंग जो हम ने कभी ना सुनी आज दिल ने दिखलाया इस सौगात कि सरगम चली हर कोशिश मे हर बात सुनी।

ना जाने क्यों सांस कहे एक पुकार जो हम ने कभी ना सुनी आज दिल ने कहा इस एहसास कि सौगात चली हर लहर ने अरमानों मे हर बात सुनी।

ना जाने क्यों सांस कहे एक सरगम जो हम ने कभी ना सुनी आज दिल ने हंसकर इस कोशिश कि मुस्कान चली हर जज्बात ने इशारों मे हर बात सुनी।

ना जाने क्यों सांस कहे एक सौगात जो हम ने कभी ना सुनी आज दिल ने समझाया इस सुबह कि पुकार हमने हर वक़्त चुनी हर लम्हे मे हर बात सुनी।

ना जाने क्यों सांस कहे एक आस जो हम ने कभी ना सुनी आज दिल ने दिखलाया इस मोड़ कि सोच चली हर अफसाने संग हर बात सुनी।

ना जाने क्यों सांस कहे एक सरगम जो हम ने कभी ना सुनी आज दिल ने कहा इस आवाज कि परख चुनी हर खयाल कि धाराओं मे अक्सर हर बात सुनी।

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