Wednesday, 6 July 2022

कविता ४४९४. नजारों से जुड़कर।

                                 नजारों से जुड़कर।

नजारों से जुड़कर कदमों कि आहट एहसास देती है किनारों को अंदाजों कि लहर पहचान सुनाती है खयालों को उम्मीदों कि सौगात अरमान जगाती है।

नजारों से जुड़कर किनारों कि सुबह अल्फाज देती है नजारों को अदाओं कि समझ पुकार सुनाती है जज्बातों को दिशाओं कि उमंग अरमान जगाती है।

नजारों से जुड़कर इशारों कि सोच इरादा देती है तरानों को उम्मीदों कि सौगात कोशिश सुनाती है राहों को एहसासों कि तलाश अरमान जगाती है।

नजारों से जुड़कर नजारों कि सौगात जज्बात देती है कदमों को आवाजों कि धून मुस्कान सुनाती है दिशाओं को इरादों कि सरगम अरमान जगाती है।

नजारों से जुड़कर दास्तानों कि कोशिश बदलाव देती है दिशाओं को उजालों कि परख सोच सुनाती है नजारों को अदाओं कि समझ अरमान जगाती है।

नजारों को जुड़कर लम्हों कि रोशनी इशारा देती है किनारों को आशाओं कि उम्मीद पहचान सुनाती है तरानों को कदमों कि कोशिश अरमान जगाती है।

नजारों को जुड़कर बदलावों कि उमंग सुबह देती है खयालों को तरानों कि परख सरगम सुनाती है इशारों को अफसानों कि धाराएं अरमान जगाती है।

नजारों को जुड़कर अदाओं कि परख बदलाव देती है उजालों को अल्फाजों कि उमंग आवाज सुनाती है अंदाजों को इरादों कि मुस्कान अरमान जगाती है।

नजारों को जुड़कर जज्बातों कि लहर मुस्कान देती है उम्मीदों को आवाजों कि धून एहसास सुनाती है खयालों को तरानों कि पहचान अरमान जगाती है।

नजारों को जुड़कर लम्हों कि सौगात आस देती है तरानों को दिशाओं कि सुबह अहमियत सुनाती है जज्बातों को अदाओं कि रोशनी अरमान जगाती है।

 

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