Sunday, 2 August 2015

कविता ११०. खुशियाँ ठहरती है

                                                               खुशियाँ ठहरती है 
देखे हम खुशियाँ हर पल उन्हें हम नहीं समजते है खुशियोंके  अंदर हम उन्हें हमेशा मेहसूस नहीं करते हर पल जब जब हम खुशियोंको  समजे उन्हे जिन्दा रखने की कोशिश करते है
खुशियाँ तो जीवन में होती है पर उन्हें समजने में मुश्किल होती है क्युकी हम उन्हें हमेशा के लिए चाहते है उन तरीकों को ढूढ़ना नामुमकिन सा होता है 
ख़ुशी तो जीवन को दिशा देती है पर वह कायम नहीं होती है वह बनती है और वह बिगड़ भी जाती है खुशियाँ तो अलग दिशाओ में दिखती है 
खुशियाँ के अंदर तरह तरह की सोच भी जिन्दा होती है जब जब खुशियाँ जीवन में आती है वह हमें कुछ इस कदर अपना बनाती है 
की हर साँस और हर सोच में खुशियाँ जीवन दे जाती है चाहते है हम उनको और उनमे ही जीवन जी लेते है उन्हे हर पल और हर मोड़ पर हम समज लेते है 
उन खुशियों के अंदर हमारी दुनिया साथ लेती है जब जब खुशियाँ हमारे जीवन को उम्मीदे देती है हमें वह नये नये मोड़ दिख लाती है 
खुशियों के अंदर हमें दुनिया मिल जाती है हमें लगता है यह ख़ुशी अब मरते दम हमारा साथ जरूर निभाती है पर सच में यह नहीं होता है 
खुशियाँ तो कुछ पल की साथी होती है वह काफी समय तक चाहे तो रुक जाये पर आखिर में हमारा साथ छोड़ ही देती है 
और जब वह चली जाती है जीवन से तब मन को एक चोट सी लगती है हम नहीं समज पाते है की खुशियाँ क्यों हमें यू धोका देती है 
पर सच तो है वह हमें धोका नहीं देती है हम सब जानते है मन के भीतर से की खुशियाँ को बारिश की तरह आती जाती है कभी नहीं ठहर सकती है 

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