Wednesday, 11 November 2015

कविता ३१०. कोहरे के के पीछे

                                    कोहरे के पीछे
जब जब कोहरा  देखा राह नही दिख पायी है जीवन को समज ले तो हर मोड पर सोच अलग ही दिख पायी है जीवन के हर मोड पर सिर्फ खडी तनहाई है
पर कोहरा तो हर बार हट जाता है यही जीवन कि सच्चाई है जीवन को समज लेनी जरुरी चीज है हर बार हमने पायी है जिसे समजे तो कोहरा हर बार हट जाता है
जीवन को हर बार कोहरे के पीछे कुछ तो चीज नजर आती है कोहरे के सायों के पीछे दिखती जीवन कि अलग सच्चाई है कोहरे के पीछे अलग चीजे जीवन मे दिख जाती है
कोहरा तो हर बार हटता है और सामने आती है जीवन कि सच्चाई है तो क्यूँ छुपते है लोग कोहरे के पीछे जब कोहरा तो दो पल कि सच्चाई है कोहरे को समज लेते है
तो कोहरे के पीछे दुनिया हर बार जीवन को अलग तरीके से समज आती है कोहरे के पीछे दिखती है अलग सोच हमारे लिए जो रोशनी लाती है कोहरे के पीछे ही खुबसूरत दुनिया है फिर भी कोहरा डराता है  
कोहरे के पीछे नया एहसास छुपा रहता है जिसे समज लेने मे ही जीवन का मतलब दिखता है कोहरे के पीछे ही दुनिया छुपी रहती है जो जीवन को अलग एहसास देती है
कोहरे के पीछे ही तो खुशियाँ छुपी होती है जो जीवन को हर बार रोशनी देती है कोहरे को समज लेना तभी तो खुशियाँ मिलती है कोहरे के पार ही अपनी दुनिया बसती है
पर फिर भी जब कोहरा आता है खतम सी हमारी दुनिया लगती है पर सच को समज लेते है तो तभी हमारी दुनिया बनती है जब कोहरे को को पार करना हमारी जिन्दगी बनाता है
कोहरे के पीछे ही जीवन कि दुनिया दिखती है कोहरे के पीछे ही सारी दुनिया कि खुशियाँ होती है कोहरे के पीछे नई दुनिया दिखती है कोहरे के पीछे छुपी दुनिया खुशियाँ देती है
कोहरे को पार करो तो ही जीवन मे हर बार नई दुनिया और नई खुशियाँ छुपी होती है जो कोहरे के उस पार अलग तरह कि खुशियाँ जीवन मे हर नई उम्मीद देती है

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