Sunday, 6 March 2022

कविता. ४३७३. मुस्कान अक्सर किनारों संग।

                                                     मुस्कान अक्सर किनारों संग।

मुस्कान अक्सर किनारों संग एहसास सुनाती है अदाओं को जज्बातों कि सोच इरादा दिलाती है सपनों कि सरगम कोशिश दिलाती है।

मुस्कान अक्सर किनारों संग अरमान सुनाती है राहों को एहसासों कि तलाश खयाल दिलाती है आशाओं कि परख कोशिश दिलाती है।

मुस्कान अक्सर किनारों संग खयाल सुनाती है दास्तानों को तरानों कि रोशनी आस दिलाती है कदमों कि आहट कोशिश दिलाती है।

मुस्कान अक्सर किनारों संग आवाज सुनाती है नजारों को दिशाओं कि उमंग अरमान दिलाती है अल्फाजों कि सोच कोशिश दिलाती है।

मुस्कान अक्सर किनारों संग पुकार सुनाती है तरानों को अंदाजों कि उम्मीद आवाज दिलाती है दास्तानों कि सुबह कोशिश दिलाती है।

मुस्कान अक्सर किनारों संग आस सुनाती है जज्बातों को आशाओं कि परख पहचान दिलाती है लहरों कि पुकार कोशिश दिलाती है।

मुस्कान अक्सर किनारों संग सुबह सुनाती है कदमों को आवाजों कि धून अल्फाज दिलाती है राहों कि अहमियत कोशिश दिलाती है।

मुस्कान अक्सर किनारों संग दास्तान सुनाती है राहों को बदलावों कि उमंग खयाल दिलाती है आशाओं कि सरगम कोशिश दिलाती है।

मुस्कान अक्सर किनारों संग तलाश सुनाती है लम्हों को कदमों कि आहट अफसाना दिलाती है तरानों कि परख कोशिश दिलाती है।

मुस्कान अक्सर किनारों संग लहर सुनाती है दिशाओं को इरादों कि तलाश रोशनी दिलाती है आवाजों कि धून कोशिश दिलाती है।

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