Saturday, 13 August 2022

कविता. ४५३२. किनारा अक्सर कोई।

                                      किनारा अक्सर कोई।

किनारा अक्सर कोई इशारा देता है आशाओं को जज्बातों कि समझ कोशिश सुनाकर जाती है कदमों को अंदाजों कि सौगात खयाल दिलाती है।

किनारा अक्सर कोई कहानी देता है अरमानों को लम्हों कि रोशनी आस सुनाकर जाती है दास्तानों को बदलावों कि उमंग खयाल दिलाती है।

किनारा अक्सर कोई बदलाव देता है अंदाजों को इरादों कि तलाश अफसाना सुनाकर जाती है तरानों को उम्मीदों कि सोच खयाल दिलाती है।

किनारा अक्सर कोई पहचान देता है तरानों को उजालों कि सोच लहर सुनाकर जाती है इरादों को सरगम कि कहानी खयाल दिलाती है।

किनारा अक्सर कोई परख देता है अल्फाजों को सपनों कि सरगम तलाश सुनाकर जाती है बदलावों को इशारों कि परख खयाल दिलाती है।

किनारा अक्सर कोई उजाला देता है नजारों को आवाजों कि धून एहसास सुनाकर जाती है राहों को अरमानों कि तलाश खयाल दिलाती है।

किनारा अक्सर कोई पुकार देता है जज्बातों को दिशाओं कि उमंग अल्फाज सुनाकर जाती है आवाजों को लम्हों कि रोशनी खयाल दिलाती है।

किनारा अक्सर कोई मुस्कान देता है कदमों को दास्तानों कि कोशिश अरमान सुनाकर जाती है दिशाओं को उजालों कि राह खयाल दिलाती है।

किनारा अक्सर कोई पहचान देता है लम्हों को अल्फाजों कि धाराएं अफसाना सुनाकर जाती है दास्तानों को नजारों कि आस खयाल दिलाती है।

किनारा अक्सर कोई सरगम देता है लहरों को कदमों कि आहट बदलाव सुनाकर जाती है आवाजों को अफसानों कि पुकार खयाल दिलाती है।

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