Friday, 28 April 2023

कविता. ४७९०. लम्हों को कह दे तो।

                                         लम्हों को कह दे तो।

लम्हों को कह दे तो एहसासों कि इजाजत मिलती है कदमों संग आशाएं नयी सरगम देती है सपनों कि कोशिश अक्सर आवाजों कि धून सुनाती है।

लम्हों को कह दे तो अरमानों कि पुकार मिलती है किनारों संग राहें नयी तलाश देती है कदमों कि आस अक्सर दास्तानों कि आहट सुनाती है।

लम्हों को कह दे तो अफसानों कि अंदाज मिलती है बदलावों संग दिशाएं नयी उमंग देती है किनारों कि मुस्कान अक्सर जज्बातों कि सुबह सुनाती है।

लम्हों को कह दे तो कदमों कि सोच मिलती है नजारों संग अदाएं नयी पहचान देती है उजालों कि सौगात अक्सर इरादों कि कोशिश सुनाती है।

लम्हों को कह दे तो आवाजों कि धून मिलती है इशारों संग सरगम नयी सपना देती है खयालों कि समझ अक्सर अल्फाजों कि मुस्कान सुनाती है।

लम्हों को कह दे तो दास्तानों कि सौगात मिलती है लहरों संग पहचान नयी पुकार देती है अदाओं कि परख अक्सर अरमानों कि आस सुनाती है।

लम्हों को कह दे तो अदाओं कि परख मिलती है अरमानों संग निगाहें नयी आस देती है उम्मीदों कि सौगात अक्सर किनारों कि आवाज सुनाती है।

लम्हों को कह दे तो तरानों कि सुबह मिलती है बदलावों संग उम्मीदें नयी परख देती है आवाजों कि सुबह अक्सर अफसानों कि समझ सुनाती है।

लम्हों को कह दे तो एहसासों कि पुकार मिलती है किनारों संग दास्ताने नयी कोशिश देती है इरादों कि राह अक्सर खयालों कि सुबह सुनाती है।

लम्हों को कह दे जज्बातों कि सोच मिलती है एहसासों संग किनारे नयी सपना देती है दिशाओं कि कहानी अक्सर अंदाजों कि सोच सुनाती है।


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