Thursday, 21 April 2016

कविता ६३४. जीवन कि बात बन जाना

                                      जीवन कि बात बन जाना
किसी बात को बढाकर ही तो जीवन कि बात बन पाती है जीवन कि हर बात को समझकर लेनी जरुरत होती ही है
जब बात को मतलब मिल जाये तो ही  कहानी बन पाती है पर कई बार कई बातों कि कहानियाँ बदल देती है तो कुछ कहानी बिना मतलब ही होती है
हर पल कई किसम कि कहानी जीवन को होश देकर आगे बढती चली जाती है जीवन को हर पल हर लम्हा समझ लेने कि जरुरत नही होती है
किसी कहानी को बिना समझे ही दुनिया हर मोड पर बदल जाती है कहानीयों मे ही जीवन कि साँसे दिख जाती है जो मतलब दे आगे आती है
जीवन कि कहानी हार और जीत का दोनों रंगों मे प्यारी नजर आती है क्योंकि जीवन कि कहानी हर बार हमारी चाहत बनकर आगे जाती है
कहानियों के अंदर जीवन कि कई कथाये छुपी रहती है जो जीवन को साँसे दे जाने कि चाहत हर बार रख जाती है खुशियाँ देती है
जीवन को कई रंगों मे समझ लेने कि जरुरत हर दिशा मे हर पल हमे आगे लेकर जाती है जिसे समझ लेने कि अहमियत हर बार जीवन को होती ही है
पर फिर भी कभी कभी बिना समझे ही कहानी आगे बढती हुई नजर आती है जीवन कि ताकद बन जाती है जिसे बिना परखे ही जीवन को मकसद मिल जाता है
बात के अंदर ही तो कहानी कि सच्चाई हर बार होती है जो जीवन को पल पल बदलती जाती है जीवन कि दिशाए बदलकर जाती है
जीवन कि कहानी बडी अजीब होती है जो जीवन कि धारा को एक मोड देती है जिसे पाने मे किसी कि उमर चली जाती है तो किसी के मुठ्ठी मे बिजली यूही आ जाती है

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