Tuesday, 26 April 2016

कविता ६४५. हरीयाली कि राहे

                                                   हरीयाली कि राहे
हरीयाली कि राहों मे उम्मीदों के कई कारवे मिले कुछ खुशियाँ तो दे पाये पर कुछ तो बस गमों कि कहानी बने पर हम क्यूँ कतराये जब गम भी खुशियाँ देकर चल रहे है
जीवन कि हर राह को समझ लेने कि कोशिश मे हम दुनिया को हर पल बदलते हुए देख रहे है हम जीवन के कई मोडों को परख लेना चाहते ही है
पर किसी राह को समझ लेने के चक्कर मे हम कई बाते सीखते है तो ही तो हम दुनिया को पा सकते है जब हम दुनिया मे कुछ सीख लेते है
उम्मीदे तो कई बार हमे आगे ले जाती है पर कभी कभी जो वह ना कर पाये वह गम कर लेते है जीवन के सबसे बडे मुश्किल मे वह उम्मीदे दे कर जाते है
हरीयाली के अंदर कि अलग तरह कि सोच तो हम हर पल समझ लेते है जिसमे अलग अलग किसम कि ताकद जीवन मे हम हर पल रखते है
हरीयाली के अलावा हालाकि हम हर चीजों से कतराते है पर अक्सर वही गम भी आगे चलकर काम आते है नई दिशाए देकर जाती है
राहों को हम हर पल हर मौके पर हम समझ लेते है तो ही जीवन के किस्से बन पाते है जिन्हे गम और खुशियाँ दोनों कि कहानीयाँ ही बनाती है
हरीयाली कि राह सुंदर तब तक नही बनती है जब तक गम कि शुरुआत नही होती है जीवन के अंदर कुछ एहसास कम हो जाते है
हरीयाली कि समझ हर पल जीवन कि राह बदलकर जाती है गमों से भी ज्यादा खुशियों कि सौगाद जरुरी लगती है पर वह अक्सर गमों से ही बनती है
हरीयाली ही जीवन कि शुरुआत करती है क्योंकि बिना हरीयाली जीवन कि कोई भी सुबह नही होती है पर गमों से लढने कि जरुरत हर पल होती ही है

No comments:

Post a Comment

कविता. ५५५४. आशाओं की सरगम संग।

                          आशाओं की सरगम संग। आशाओं की सरगम संग खयालों की पहचान इशारा सुनाती है कदमों की सौगात अक्सर लम्हों की महफिल देकर जात...