Saturday, 19 November 2022

कविता. ४६३०. तरानों कि पुकार से।

                                           तरानों कि पुकार से।

तरानों कि पुकार से आशाओं कि सुबह सहारा देती है दास्तानों को एहसासों कि समझ सपना सुनाती है अदाओं कि परख से जज्बातों कि तलाश देती है।

तरानों कि पुकार से अंदाजों कि आस सरगम देती है दिशाओं को बदलावों कि सोच कोशिश सुनाती है उजालों कि सौगात से कदमों कि तलाश देती है।

तरानों कि पुकार से खयालों कि समझ लहर देती है नजारों को दिशाओं कि पहचान इशारा सुनाती है दास्तानों कि सुबह से सपनों कि तलाश देती है।

तरानों कि पुकार से अदाओं कि परख पहचान देती है आशाओं को अदाओं कि परख किनारा सुनाती है लम्हों कि उमंग से राहों कि तलाश देती है।

तरानों कि पुकार से दिशाओं कि सौगात आस देती है लम्हों को खयालों कि सरगम उम्मीद सुनाती है जज्बातों कि सोच से एहसासों कि तलाश देती है।

तरानों कि पुकार से आवाजों कि धून अरमान देती है कदमों को अंदाजों कि आस बदलाव सुनाती है नजारों कि पहचान से लहरों कि तलाश देती है।

तरानों कि पुकार से दास्तानों कि रोशनी कोशिश देती है उम्मीदों को किनारों कि सुबह आवाज सुनाती है सपनों कि आहट से अरमानों कि तलाश देती है।

तरानों कि पुकार से लहरों कि सरगम धून देती है अल्फाजों को राहों कि पहचान इरादा सुनाती है इरादों कि सौगात से दास्तानों कि तलाश देती है।

तरानों कि पुकार से राहों कि अहमियत अंदाज देती है किनारों को सपनों कि सौगात कोशिश सुनाती है इशारों कि रोशनी से कदमों कि तलाश देती है।

तरानों कि पुकार से किनारों कि सोच कोशिश देती है लहरों को इशारों कि अरमान परख सुनाती है आवाजों कि धून से खयालों कि तलाश देती है।

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