Tuesday, 28 July 2015

कविता ९९. जीवन के कुछ अंग

                                                              जीवन के कुछ अंग
हम जो बात को आसानी से समज पाते जिन्दगी में नये नये पड़ाव नज़र आते पर कभी कभी हम फस जाते है बिन मतलब के क्युकी जीवन को आसानी से कहा समज पाते है
जब जब हम किसी बात में कुछ मतलब ढूढ़ते तो वही आसान राह को मुश्किल बना लेते है हम पर फिर भी हर बार जो हम जीवन को समज लेते है
तो जीवन में तरह तरह के अंगों को समज पाते तो बता सकते की कई मोड़ है उस हर अंग में हम जीवन को सचमुच में नहीं जी पाते है
जब जब उन मोड़ पर हमें दिखती है यह दुनिया तब तब हम उम्मीदों को धरे मन में आगे चले जाते है पर जब हम उस जीवन के हर अंग को ही नहीं समजे है
तो भला उस जीवन को हम क्या जी पाते है जब जब हम जीवन को नहीं समज सके है हर पल हर अंग को समज लेते तो ही हम उस जीवन में हर बार संभल पाते है
हम जो चाहते है की हर बार हमें जीत मिले तो हम समजते  है की हर अंग को हम समजले जाने क्यों हर बार हमें मुश्किलसी है
जाने क्यों हर बार जिन्दगी में दूर मंज़िल सी है पर फिर भी हम चाहते है वही जिन्दगी का रंग हमें मिलता रहे और शायद उसी में हम खुशियाँ भी पाते है
पर फिर भी जब जब हम उन अंगों को समज नहीं पाते है हर बार उन अंगों के बिन  हम जिन्दगी को गलत समज लेते है
शायद उन अंगों को समजना जिन्हे हम भुला देते है जिन्दगी के हर अंग में ही हम अपनी दुनिया पाते है जिनको हम जब जब समजे जीवन में सफल हो जाते है
हम जीत सकेंगे हर कसोटी को अगर हम अपना वक्त गवा कर उसके अंगों को जाने उसे दिल से समजे और उसे दिल से पेहचान लेते है 

No comments:

Post a Comment

कविता. ५६०८. अरमानों के एहसासों की।

                       अरमानों के एहसासों की। अरमानों के एहसासों की पुकार इरादा देकर जाती है खयालों को सपनों की कोशिश तलाश दिलाती है उजालों ...