Monday, 17 February 2025

कविता. ५४२१. किनारों संग रोशनी अक्सर।

                          किनारों संग रोशनी अक्सर।

किनारों संग रोशनी अक्सर आशाओं की सरगम सुनाती है अफसानों को दिशाओं की पहचान अक्सर एहसासों की आस सुनाती है।

किनारों संग रोशनी अक्सर आवाजों की पुकार सुनाती है अरमानों को लम्हों की अहमियत अक्सर खयालों की आस सुनाती है।

किनारों संग रोशनी अक्सर अंदाजों की जज्बात सुनाती है तरानों को इशारों की आहट अक्सर नजारों की आस सुनाती है।

किनारों संग रोशनी अक्सर कदमों की आहट सुनाती है सपनों को राहों की सौगात अक्सर अफसानों की आस सुनाती है।

किनारों संग रोशनी अक्सर दास्तानों की उमंग सुनाती है खयालों को दिशाओं की सरगम अक्सर इरादों की आस सुनाती है।

किनारों संग रोशनी अक्सर अदाओं की पहचान सुनाती है आशाओं को बदलावों की पुकार अक्सर अंदाजों की आस सुनाती है।

किनारों संग रोशनी अक्सर उम्मीदों की तरंग सुनाती है जज्बातों को लहरों की सौगात अक्सर अल्फाजों की आस सुनाती है।

किनारों संग रोशनी अक्सर तरानों की आहट सुनाती है एहसासों को कदमों की धारा अक्सर नजारों की आस सुनाती है।

किनारों संग रोशनी अक्सर दास्तानों की धून सुनाती है अरमानों को लम्हों की अहमियत अक्सर सपनों की आस सुनाती है।

किनारों संग रोशनी अक्सर उजालों की सुबह सुनाती है खयालों को राहों की कोशिश अक्सर इशारों की आस सुनाती है।

No comments:

Post a Comment

कविता. ५५५४. आशाओं की सरगम संग।

                          आशाओं की सरगम संग। आशाओं की सरगम संग खयालों की पहचान इशारा सुनाती है कदमों की सौगात अक्सर लम्हों की महफिल देकर जात...