Monday, 24 February 2025

कविता. ५४२८. किनारों संग रोशनी अक्सर।

                              किनारों संग रोशनी अक्सर।

किनारों संग रोशनी अक्सर आशाओं की पहचान दिलाती है लम्हों को अफसानों की सोच एहसास देकर जाती है।

किनारों संग रोशनी अक्सर आवाजों की धून दिलाती है खयालों को सपनों की आहट बदलाव देकर जाती है।

किनारों संग रोशनी अक्सर दास्तानों की उम्मीद दिलाती है इशारों को दिशाओं की कोशिश‌ मुस्कान देकर जाती है।

किनारों संग रोशनी अक्सर तरानों की सरगम दिलाती है दास्तानों को नजारों की अहमियत अरमान देकर‌ जाती है।

किनारों संग रोशनी अक्सर अल्फाजों की दुनिया दिलाती है उजालों को इरादों की पहचान पुकार देकर जाती है।

किनारों संग रोशनी अक्सर बदलावों की आहट दिलाती है लहरों को कदमों की सौगात जज्बात देकर जाती है।

किनारों संग रोशनी अक्सर अरमानों की सोच दिलाती है अफसानों को आशाओं की महफिल आवाज देकर जाती है।

किनारों संग रोशनी अक्सर खयालों की पहचान दिलाती है कदमों को अंदाजों की आहट अहमियत देकर जाती है।

किनारों संग रोशनी अक्सर राहों की अहमियत दिलाती है लम्हों को इशारों की सौगात खयाल देकर जाती है।

किनारों संग रोशनी अक्सर बदलावों की आस दिलाती है अल्फाजों को नजारों की पहचान उम्मीद देकर जाती है।

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कविता. ५५५४. आशाओं की सरगम संग।

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