Thursday, 12 May 2016

कविता ६७६. हवाओं को बिना समझे

                                              हवाओं को बिना समझे
हवाओं को समझकर अपनी दिशाए बदल लेना बात सही नही होती है हवाए तो अपने किनारे बदलती रहती है जिसे समझकर अलग सोच कहाँ बनती है
हवा को समझकर उसकी कहानी कि कहने कि जरुरत नही होती है क्योंकि हवा तो बदलती है हमे अपनी सोच बदलने कि जरुरत कभी कभी होती है
जीवन के हर पडाव पर हवा तो बदलती जाती है उस हवा को समझकर चलने कि तो जरुरत है पर उनके सामने झुकने कि जरुरत नही होती है
हवा ही तो जीवन का बदलाव दिखाती है पर हर बदलाव के साथ सही सोच को बदलने कि जरुरत नही होती है जो जीवन को रोशनी देती रहती है
हवा तो कई किनारे को हर बार समझती रहती है पर हमे सिर्फ उसे देखकर गलत बात करने कि जीवन मे इजाजत नही होती है
हवा को परखकर जीवन कि कहानी हर मोड पर बदलती है पर इसका मतलब यह नही है कि हमे जीवन मे सही दिशा को खो कर जाने कि इजाजत होती है
हवाओं को समझकर आगे जाने कि जरुरत है पर फिर भी उन्हे समझ लेने के लिए दुनिया मे कोई खास मेहनत नही पडती है
हवा तो हमे बताती है जीवन कि कहानी सीखाती है जिसे समझकर आगे जाने कि कोशिश हर बार जीवन मे अक्सर होती है
हवा को समझकर जीवन मे आगे जाने कि जरुरत नही होती है क्योंकि हवाओं के कई हिस्सों मे दुनिया हर बार अलग रंग देती है
हवाओं मे जीवन कि ताकद छुपी है उसे परखकर आगे चलने कि जरुरत हर राह को होती है जीवन मे हवाए ही तो हर बार हर पल अहम होती है 

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