Sunday, 20 April 2025

कविता. ५४८३. अदाओं की धून जुडकर।

                         अदाओं की धून जुडकर।

अदाओं की धून जुडकर अफसाना दिलाती है दिशाओं को लहरों की पुकार दिलाती है सपनों को राहों की अहमियत परख दिलाती है।

अदाओं की धून जुडकर बदलाव दिलाती है किनारों को अंदाजों की सोच दिलाती है एहसासों को लम्हों की पहचान परख दिलाती है।

अदाओं की धून जुडकर इरादा दिलाती है अफसानों को नजारों की सौगात दिलाती है उजालों को अंदाजों की आहट परख दिलाती है।

अदाओं की धून जुडकर आवाज दिलाती है खयालों को इरादों की उमंग दिलाती है कदमों को अल्फाजों की समझ परख दिलाती है।

अदाओं की धून जुडकर जज्बात दिलाती है आवाजों को धाराओं की कोशिश दिलाती है बदलावों को आशाओं की सरगम परख दिलाती है।

अदाओं की धून जुडकर तलाश दिलाती है इशारों को एहसासों की रोशनी दिलाती है उम्मीदों को तरानों की आवाज परख दिलाती है।

अदाओं की धून जुडकर अंदाज दिलाती है नजारों को लम्हों की अहमियत दिलाती है किनारों को अरमानों की उम्मीद परख दिलाती है।

अदाओं की धून जुडकर दास्तान दिलाती है इरादों को राहों की पहचान दिलाती है खयालों को सपनों की पुकार परख दिलाती है।

अदाओं की धून जुडकर उमंग दिलाती है अफसानों को किनारों की सरगम दिलाती है कदमों को नजारों की आहट परख दिलाती है।

अदाओं की धून जुडकर तराना दिलाती है जज्बातों को बदलावों की सौगात दिलाती है एहसासों को उजालों की कोशिश परख दिलाती है।

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