Thursday, 24 April 2025

कविता.५४८७. किनारों को मुस्कान अक्सर।

                         किनारों को मुस्कान अक्सर।

किनारों को मुस्कान अक्सर इशारों की पहचान दिलाती है लम्हों की अहमियत संग आशाओं की सरगम सपना सुनाती है।

किनारों को मुस्कान अक्सर उजालों की सुबह दिलाती है तरानों की सरगम संग आवाजों की धून सपना दिलाती है।

किनारों को मुस्कान अक्सर जज्बातों की पुकार दिलाती है कदमों की सौगात संग अंदाजों की राह सपना दिलाती है।

किनारों को मुस्कान अक्सर खयालों की कोशिश दिलाती है दिशाओं की तलाश संग अफसानों की सोच सपना दिलाती है।

किनारों को मुस्कान अक्सर लम्हों की आवाज दिलाती है इशारों की पहचान संग कदमों की अहमियत सपना दिलाती है।

किनारों को मुस्कान अक्सर लहरों की सौगात दिलाती है एहसासों की आस संग जज्बातों की पुकार सपना दिलाती है।

किनारों को मुस्कान अक्सर दास्तानों की समझ दिलाती है खयालों की सरगम संग इशारों की आस सपना दिलाती है।

किनारों को मुस्कान अक्सर अफसानों की कोशिश दिलाती है उम्मीदों की पुकार संग अरमानों की कहानी सपना दिलाती है।

किनारों को मुस्कान अक्सर तरानों की सोच दिलाती है अफसानों की उमंग संग खयालों की सरगम‌ सपना दिलाती है।

किनारों को मुस्कान अक्सर उम्मीदों की अदा दिलाती है एहसासों की रोशनी संग दास्तानों की लहर सपना दिलाती है।


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कविता. ५५५४. आशाओं की सरगम संग।

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