Thursday, 17 April 2025

कविता. ५४८०. कोई आस अक्सर।

                              कोई आस अक्सर।

कोई आस अक्सर मुस्कान दिलाती है लहरों को खयालों की सरगम आवाज सुनाती है नजारों की आहट दिलाती है।

कोई आस अक्सर एहसास दिलाती है आशाओं को बदलावों की पुकार अरमान सुनाती है सपनों की आहट दिलाती है।

कोई आस अक्सर अफसाना दिलाती है लम्हों को किनारों की सुबह जज्बात सुनाती है अंदाजों की आहट दिलाती है।

कोई आस अक्सर उजाला दिलाती है उम्मीदों को तरानों की सौगात सपना सुनाती है अफसानों की आहट दिलाती है।

कोई आस अक्सर लहर दिलाती है कदमों को अंदाजों की पहचान अंदाज सुनाती है दिशाओं की आहट दिलाती है।

कोई आस अक्सर पहचान दिलाती है अल्फाजों को राहों की अहमियत इशारा सुनाती है अरमानों की आहट दिलाती है।

कोई आस अक्सर दास्तान दिलाती है इरादों को बदलावों की सोच तराना सुनाती है लम्हों की आहट दिलाती है।

कोई आस अक्सर कोशिश दिलाती है अदाओं को आवाजों की रोशनी तलाश सुनाती है किनारों की आहट दिलाती है।

कोई आस अक्सर उमंग दिलाती है अफसानों को आशाओं की महफिल सुबह दिलाती है बदलावों की आहट दिलाती है।

कोई आस अक्सर सपना दिलाती है उजालों को अफसानों की पुकार पहचान दिलाती है एहसासों की आहट दिलाती है।


No comments:

Post a Comment

कविता. ५५५४. आशाओं की सरगम संग।

                          आशाओं की सरगम संग। आशाओं की सरगम संग खयालों की पहचान इशारा सुनाती है कदमों की सौगात अक्सर लम्हों की महफिल देकर जात...