Monday 29 July 2024

कविता. ५२४८. किनारों की पुकार संग।

                               किनारों की पुकार संग।

किनारों की पुकार संग आवाजों की धून अहमियत दिलाती है लहरों को इशारों से एहसासों की कहानी पहचान सुनाती है तरानों की सुबह देकर जाती है।

किनारों की पुकार संग अरमानों की परख बदलाव दिलाती है दास्तानों को राहों से आशाओं की मुस्कान सरगम सुनाती है लम्हों की सुबह देकर जाती है।

किनारों की पुकार संग अंदाजों की सोच अफसाना दिलाती है उजालों को सपनों से खयालों की आहट अल्फाज सुनाती है उम्मीदों की सुबह देकर जाती है।

किनारों की पुकार संग कदमों की आस एहसास दिलाती है लहरों को इशारों से दिशाओं की पहचान सरगम सुनाती है इरादों की सुबह देकर जाती है।

किनारों की पुकार संग अल्फाजों की आहट बदलाव दिलाती है खयालों को अंदाजों से लहरों की आस दास्तान सुनाती है उजालों की सुबह देकर जाती है।

किनारों की पुकार संग तरानों की कोशिश उमंग दिलाती है अफसानों को नजारों से जज्बातों की कहानी सोच सुनाती है आशाओं की सुबह देकर जाती है।

किनारों की पुकार संग नजारों की रोशनी सौगात दिलाती है कदमों को एहसासों से दिशाओं की समझ परख सुनाती है अल्फाजों की सुबह देकर जाती है।

किनारों की पुकार संग दास्तानों की आवाज तलाश दिलाती है अदाओं को अरमानों से आशाओं की सोच खयाल सुनाती है राहों की सुबह देकर जाती है।

किनारों की पुकार संग जज्बातों की कहानी पहचान दिलाती है तरानों को सपनों से बदलावों की आहट लहर सुनाती है लहरों की सुबह देकर जाती है।

किनारों की पुकार संग लहरों की मुस्कान नजारा दिलाती है आशाओं को तरानों से कदमों की पुकार इशारा सुनाती है अदाओं की सुबह देकर जाती है।


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