Friday, 8 August 2025

कविता. ५५९३. आवाज की सोच संग।

                         आवाज की सोच संग।

आवाज की सोच संग नजारों की पहचान इरादा देकर जाती है जज्बातों की मुस्कान अक्सर उम्मीदों की महफिल देकर जाती है।

आवाज की सोच संग अंदाजों की पुकार उजाला देकर जाती है खयालों की सरगम अक्सर दिशाओं की महफिल देकर जाती है।

आवाज की सोच संग बदलावों की आस एहसास देकर जाती है उजालों की आस अक्सर कदमों की महफिल देकर जाती है।

आवाज की सोच संग अरमानों की कोशिश उमंग देकर जाती है सपनों की आहट अक्सर लहरों की महफिल देकर जाती है।

आवाज की सोच संग दास्तानों की रोशनी इशारा देकर जाती है लम्हों की कहानी अक्सर खयालों की महफिल देकर जाती है।

आवाज की सोच संग तरानों की सुबह सरगम देकर जाती है किनारों की तलाश अक्सर उजालों की महफिल देकर जाती है।

आवाज की सोच संग अरमानों की सोच खयाल देकर जाती है आशाओं की कोशिश अक्सर राहों की महफिल देकर जाती है।

आवाज की सोच संग अल्फाजों की उमंग पुकार देकर जाती है अंदाजों की पहचान अक्सर कदमों की महफिल देकर जाती है।

आवाज की सोच संग उजालों की रोशनी बदलाव देकर जाती है दास्तानों की अदा अक्सर जज्बातों की महफिल देकर जाती है।

आवाज की सोच संग अफसानों की लहर तराना देकर जाती है एहसासों की समझ अक्सर नजारों की महफिल देकर जाती है।


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कविता. ५६०८. अरमानों के एहसासों की।

                       अरमानों के एहसासों की। अरमानों के एहसासों की पुकार इरादा देकर जाती है खयालों को सपनों की कोशिश तलाश दिलाती है उजालों ...