Thursday, 21 August 2025

कविता. ५६०६. आवाज कोई किनारे संग।

                        आवाज कोई किनारे संग।

आवाज कोई किनारे संग जज्बातों की रोशनी दिलाता है अरमानों को लम्हों की अहमियत तराना‌ देकर आगे बढती जाती है।

आवाज कोई किनारे संग अंदाजों की पुकार दिलाता है नजारों को दिशाओं की महफिल पहचान देकर आगे बढती जाती है।

आवाज कोई किनारे संग अल्फाजों की उमंग दिलाता है खयालों को सपनों की आहट एहसास देकर आगे बढती जाती है।

आवाज कोई किनारे संग कदमों की तलाश दिलाता है लहरों को आशाओं की सरगम मुस्कान देकर आगे बढती जाती है।

आवाज कोई किनारे संग तरानों की समझ दिलाता है कदमों को उजालों की सुबह बदलाव देकर आगे बढती जाती है।

आवाज कोई किनारे संग खयालों की‌ आस दिलाता है जज्बातों को अफसानों की लहर इशारा देकर आगे बढती जाती है।

आवाज कोई किनारे संग इरादों की अदा दिलाता है अंदाजों को लम्हों की रोशनी दास्तान देकर आगे बढती जाती है।

आवाज कोई किनारे संग उम्मीदों की पहचान दिलाता है आशाओं को राहों की कोशिश आस देकर आगे बढती जाती है।

आवाज कोई किनारे संग नजारों की दुनिया दिलाता है अफसानों को कदमों की सौगात परख देकर आगे बढती जाती है।

आवाज कोई किनारे संग लहरों की उम्मीद दिलाता है एहसासों को धाराओं की समझ सरगम देकर आगे बढती जाती है।

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कविता. ५६०८. अरमानों के एहसासों की।

                       अरमानों के एहसासों की। अरमानों के एहसासों की पुकार इरादा देकर जाती है खयालों को सपनों की कोशिश तलाश दिलाती है उजालों ...