Wednesday, 7 May 2025

कविता. ५५००. किनारों संग रोशनी अक्सर।

                   किनारों संग रोशनी अक्सर।

किनारों संग रोशनी अक्सर एहसास दिलाती है अदाओं को सपनों की पुकार बदलाव दिलाती है लम्हों की आहट सुबह दिलाती है।

किनारों‌ संग‌ रोशनी अक्सर अरमान दिलाती है उजालों को आशाओं की महफिल कोशिश दिलाती है कदमों की परख सुबह दिलाती है।

किनारों संग रोशनी अक्सर अल्फाज दिलाती है जज्बातों को इशारों की उमंग तलाश दिलाती है राहों की पुकार सुबह दिलाती है।

किनारों संग रोशनी अक्सर मुस्कान दिलाती है खयालों को नजारों की पहचान आवाज दिलाती है सपनों की सौगात सुबह दिलाती है।

किनारों संग रोशनी अक्सर जज्बात दिलाती है तरानों को बदलावों की कहानी नजारा दिलाती है इशारों की पहचान सुबह दिलाती है।

किनारों संग रोशनी अक्सर नजारा दिलाती है लम्हों को अल्फाजों की उमंग आवाज दिलाती है अफसानों की आहट सुबह दिलाती है।

किनारों संग रोशनी अक्सर राह दिलाती है आवाजों को धाराओं की समझ कोशिश दिलाती है अंदाजों की सोच सुबह दिलाती है।

किनारों संग रोशनी अक्सर पुकार दिलाती है नजारों को लम्हों की अहमियत लहर दिलाती है आशाओं की महफिल सुबह दिलाती है।

किनारों संग रोशनी अक्सर सौगात दिलाती है अंदाजों को दास्तानों की सोच लम्हा दिलाती है उम्मीदों की पहचान सुबह दिलाती है।

किनारों संग रोशनी अक्सर अदा दिलाती है दिशाओं को इरादों की पहचान उजाला दिलाती है जज्बातों की तलाश सुबह दिलाती है।

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कविता. ५५५४. आशाओं की सरगम संग।

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