Monday, 19 May 2025

कविता. ५५१२. नजारों की महफिल संग।

                         नजारों की महफिल संग।

नजारों की महफिल संग रोशनी पहचान दिलाती है आवाजों को इरादों की सौगात उम्मीद दिलाती है लहरों की सरगम दिलाती है।

नजारों की महफिल संग आवाज तराना दिलाती है अरमानों को लम्हों की अहमियत एहसास दिलाती है कदमों की सरगम दिलाती है।

नजारों की महफिल संग उमंग अफसाना दिलाती है अंदाजों को सपनों की आहट बदलाव दिलाती है आशाओं की सरगम दिलाती है।

नजारों की महफिल संग तलाश मुस्कान दिलाती है लहरों को जज्बातों की रोशनी अरमान दिलाती है राहों की सरगम दिलाती है।

नजारों की महफिल संग आस कोशिश दिलाती है आवाजों को धाराओं की समझ सोच दिलाती है खयालों की सरगम दिलाती है।

नजारों की महफिल संग लहर दास्तान दिलाती है अफसानों को दिशाओं की सुबह आस दिलाती है उजालों की सरगम दिलाती है।

नजारों की महफिल संग सौगात एहसास दिलाती है इशारों को खयालों की कोशिश सपना दिलाती है किनारों की सरगम दिलाती है।

नजारों की महफिल संग परख अहमियत दिलाती है लम्हों को अल्फाजों की दुनिया इरादा दिलाती है उम्मीदों की सरगम दिलाती है।

नजारों की महफिल संग उम्मीद पुकार दिलाती है एहसासों को किनारों की सोच अंदाज दिलाती है सपनों की सरगम दिलाती है।

नजारों की महफिल संग आहट उम्मीद दिलाती है तरानों को अफसानों की उमंग बदलाव दिलाती है अदाओं की सरगम दिलाती है।

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कविता. ५५५४. आशाओं की सरगम संग।

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