Saturday, 24 May 2025

कविता. ५५१७. किनारों को मुस्कान अक्सर।

                         किनारों को मुस्कान अक्सर।

किनारों को मुस्कान अक्सर अरमानों की सोच दिलाती है बदलावों को धाराओं की समझ पहचान दिलाती है अदाओं की धून सरगम सुनाती है।

किनारों को मुस्कान अक्सर अंदाजों की पुकार दिलाती है आशाओं को कदमों की आस जज्बात दिलाती है दास्तानों की सुबह सरगम सुनाती है।

किनारों को मुस्कान अक्सर उजालों की रोशनी दिलाती है लहरों को अफसानों की उमंग कोशिश दिलाती है सपनों की आहट सरगम सुनाती है।

किनारों को मुस्कान अक्सर अफसानों की उम्मीद दिलाती है आवाजों को जज्बातों की रोशनी आवाज दिलाती है तरानों की आस सरगम सुनाती है।

किनारों को मुस्कान अक्सर लम्हों की अहमियत दिलाती है अफसानों को राहों की सौगात तलाश दिलाती है खयालों की परख सरगम सुनाती है।

किनारों को मुस्कान अक्सर अल्फाजों की धून दिलाती है एहसासों को आशाओं की महफिल बदलाव दिलाती है अरमानों की कहानी सरगम सुनाती है।

किनारों को मुस्कान अक्सर नजारों की‌ पहचान दिलाती है दास्तानों को लम्हों की आहट कोशिश दिलाती है अंदाजों की सोच सरगम सुनाती है।

किनारों को मुस्कान अक्सर खयालों की रोशनी दिलाती है तरानों को अल्फाजों की दुनिया उमंग दिलाती है उजालों की आस सरगम सुनाती है।

किनारों को मुस्कान अक्सर लहरों की कोशिश दिलाती है खयालों को सपनों की अहमियत तलाश दिलाती है उम्मीदों की सौगात सरगम सुनाती है।

किनारों को मुस्कान अक्सर इशारों की दुनिया दिलाती है नजारों को अरमानों की सोच तराना दिलाती है आशाओं की महफिल सरगम सुनाती है।


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