Thursday, 24 July 2025

कविता. ५५७८. पहचान को उम्मीदों की।

                         पहचान को उम्मीदों की।

पहचान को उम्मीदों की आहट इशारा देकर जाती है खयालों की सरगम अक्सर कदमों की पुकार सुनाकर जाती है।

पहचान को उम्मीदों की रोशनी तलाश देकर जाती है किनारों की मुस्कान अक्सर उजालों की अहमियत सुनाकर जाती है।

पहचान को उम्मीदों की कोशिश उमंग देकर जाती है तरानों की आहट अक्सर जज्बातों की कहानी सुनाकर जाती है।

पहचान को उम्मीदों की सोच एहसास देकर जाती है दिशाओं की महफिल अक्सर लहरों की सौगात सुनाकर जाती है।

पहचान को उम्मीदों की परख अफसाना देकर जाती है राहों की समझ अक्सर दास्तानों की कोशिश सुनाकर जाती है।

पहचान को उम्मीदों की लहर नजारा देकर जाती है लम्हों की रोशनी अक्सर अंदाजों की सुबह सुनाकर जाती है।

पहचान को उम्मीदों की तलाश दास्तान देकर जाती है कदमों की आस अक्सर बदलावों की मुस्कान सुनाकर जाती है।

पहचान को उम्मीदों की अहमियत एहसास देकर जाती है आशाओं की पुकार अक्सर लम्हों की आवाज सुनाकर जाती है।

पहचान को उम्मीदों की परख इशारा देकर जाती है इरादों की सुबह अक्सर उजालों की समझ सुनाकर जाती है।

पहचान को उम्मीदों की अदा किनारा देकर जाती है लहरों की कहानी अक्सर अफसानों की उमंग सुनाकर जाती है।

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