Saturday 19 October 2024

कविता. ५३००. हवाओं संग कोई पुकार।

                              हवाओं संग कोई पुकार।

हवाओं संग कोई पुकार इशारा देकर जाती है लम्हों की कहानी तराना देकर जाती है जज्बातों को कदमों की आहट अफसाना देकर एहसास सुनाती है।

हवाओं संग कोई पुकार मुस्कान देकर जाती है जज्बातों की राह कोशिश देकर जाती है तरानों को अरमानों की सोच आस देकर एहसास सुनाती है।

हवाओं संग कोई पुकार आवाज देकर जाती है इशारों की समझ तलाश देकर जाती है सपनों को नजारों की कहानी सुबह देकर एहसास सुनाती है।

हवाओं संग कोई पुकार अंदाज देकर जाती है आशाओं की सोच बदलाव देकर जाती है किनारों को अंदाजों की पहचान इरादा देकर एहसास सुनाती है।

हवाओं संग कोई पुकार पहचान देकर जाती है कदमों की आस खयाल देकर जाती है उजालों को बदलावों की समझ सरगम देकर एहसास सुनाती है।

हवाओं संग कोई पुकार अरमान देकर जाती है किनारों की परख उमंग देकर जाती है अदाओं को इशारों की सोच आवाज देकर एहसास सुनाती है।

हवाओं संग कोई पुकार दास्तान देकर जाती है उम्मीदों की कहानी सौगात देकर जाती है दिशाओं को तरानों की रोशनी धून देकर एहसास सुनाती है।

हवाओं संग कोई पुकार अल्फाज देकर जाती है खयालों की आहट नजारा देकर जाती है आवाजों को बदलावों की धारा अल्फाज देकर एहसास सुनाती है।

हवाओं संग कोई पुकार कोशिश देकर जाती है सपनों की सुबह अफसाना देकर जाती है लहरों को नजारों की अहमियत उमंग देकर एहसास सुनाती है।

हवाओं संग कोई पुकार तलाश देकर जाती है अंदाजों की सरगम आस देकर जाती है अफसानों को लहरों की कहानी सपना देकर एहसास सुनाती है।


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