Tuesday 8 October 2024

कविता. ५२८९. कोई मुस्कान सुनाकर।

                             कोई मुस्कान सुनाकर।

आवाज कोई मुस्कान सुनाकर चलती है एहसासों को उम्मीदों की कहानी तलाश देकर आगे बढती है उजालों को लहरों की पहचान इशारा देकर जाती है।

सुबह कोई मुस्कान सुनाकर चलती है दास्तानों को अदाओं की परख सहारा देकर आगे बढती है जज्बातों को किनारों की अहमियत इशारा देकर जाती है।

सरगम कोई मुस्कान सुनाकर चलती है तरानों को खयालों की पुकार दास्तान देकर आगे बढती है कदमों को दिशाओं की आहट इशारा देकर जाती है।

लहर कोई मुस्कान सुनाकर चलती है लम्हों को अरमानों की आस अल्फाज देकर आगे बढती है किनारों को सपनों की पुकार इशारा देकर जाती है।

कोशिश कोई मुस्कान सुनाकर चलती है अंदाजों को जज्बातों की उमंग खयाल देकर आगे बढती है लम्हों को दास्तानों की परख इशारा देकर जाती है।

उम्मीद कोई मुस्कान सुनाकर चलती है अरमानों को दिशाओं की कहानी सहारा देकर आगे बढती है राहों को अफसानों की आस इशारा देकर जाती है।

अरमान कोई मुस्कान सुनाकर चलती है नजारों को राहों की कोशिश बदलाव देकर आगे बढती है तरानों को आशाओं की कहानी इशारा देकर जाती है।

आस कोई मुस्कान सुनाकर चलती है सपनों को कदमों की सौगात तलाश देकर आगे बढती है खयालों को एहसासों की उमंग इशारा देकर जाती है।

परख कोई मुस्कान सुनाकर चलती है लहरों को आशाओं की सोच अफसाना देकर आगे बढती है अल्फाजों को सपनों की रोशनी इशारा देकर जाती है।

खयाल कोई मुस्कान सुनाकर चलती है अदाओं को तरानों की सरगम आवाज देकर आगे बढती है उम्मीदों को किनारों की अदा इशारा देकर जाती है।



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