Tuesday 22 October 2024

कविता. ५३०३. जज्बात को किसी किनारे की।

                        जज्बात को किसी किनारे की।

जज्बात को किसी किनारे की आहट एहसास दिलाती है लम्हों को किनारों की पुकार सरगम दिलाती है आवाजों को राहों की धून खयाल सुनाती है।

जज्बात को किसी किनारे की समझ उजाला दिलाती है उम्मीदों को तरानों की सोच अफसाना दिलाती है लहरों को इशारों की कहानी खयाल सुनाती है।

जज्बात को किसी किनारे की पहचान अंदाज दिलाती है सपनों को एहसासों की सौगात तलाश दिलाती है लम्हों को दास्तानों की परख खयाल सुनाती है।

जज्बात को किसी किनारे की सोच कोशिश दिलाती है नजारों को लहरों की सुबह अरमान दिलाती है उम्मीदों को आशाओं की कोशिश खयाल सुनाती है।

जज्बात को किसी किनारे की उमंग मुस्कान दिलाती है अंदाजों को अरमानों की आस अल्फाज दिलाती है अदाओं को आशाओं की मुस्कान खयाल सुनाती है।

जज्बात को किसी किनारे की रोशनी सरगम दिलाती है अफसानों को अंदाजों की समझ तलाश दिलाती है अंदाजों को इरादों की सोच खयाल सुनाती है।

जज्बात को किसी किनारे की पुकार सहारा दिलाती है बदलावों को उम्मीदों की सोच सपना दिलाती है आशाओं को लम्हों की पहचान खयाल दिलाती है।

जज्बात को किसी किनारे की आवाज उम्मीद दिलाती है दिशाओं को अल्फाजों की मुस्कान अरमान दिलाती है नजारों को अदाओं की पुकार खयाल दिलाती है।

जज्बात को किसी किनारे की आस पहचान दिलाती है आशाओं को बदलावों की परख आवाज दिलाती है एहसासों को आवाजों की सरगम खयाल दिलाती है।

जज्बात को किसी किनारे की सौगात कोशिश दिलाती है नजारों को राहों की सौगात आवाज दिलाती है अंदाजों को सपनों की आस खयाल दिलाती है।

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