Saturday, 14 June 2025

कविता. ५५३८. किनारों की मुस्कान अक्सर।

                         किनारों की मुस्कान अक्सर।

किनारों की मुस्कान अक्सर अरमानों की उमंग सुनाती है अफसानों को दास्तानों की समझ एहसास दिलाती है नजारों की आस सुनाती है।

किनारों की मुस्कान अक्सर अंदाजों की पुकार सुनाती है अदाओं को सपनों की आहट बदलाव दिलाती है जज्बातों की आस सुनाती है।

किनारों की मुस्कान अक्सर आशाओं की परख सुनाती है एहसासों को कदमों की सुबह आवाज दिलाती है लम्हों की आस सुनाती है।

किनारों की मुस्कान अक्सर अल्फाजों की दुनिया सुनाती है आवाजों को धाराओं की धून कोशिश दिलाती है राहों की आस सुनाती है।

किनारों की मुस्कान अक्सर दिशाओं की समझ सुनाती है सपनों को तरानों की उम्मीद तलाश दिलाती है अफसानों की आस सुनाती है।

किनारों की मुस्कान अक्सर इशारों की आहट सुनाती है अरमानों को लहरों की कहानी सरगम दिलाती है दास्तानों की आस सुनाती है।

किनारों की मुस्कान अक्सर दास्तानों की रोशनी सुनाती है खयालों को अदाओं की सोच अल्फाज दिलाती है इरादों की आस सुनाती है।

किनारों की मुस्कान अक्सर आवाजों की धून सुनाती है अरमानों को उजालों की सुबह नजारा दिलाती है कदमों की आस सुनाती है।

किनारों की मुस्कान अक्सर उम्मीदों की सुबह सुनाती है अफसानों को आशाओं की सोच तराना दिलाती है सपनों की आस सुनाती है।

किनारों की मुस्कान अक्सर एहसासों की सौगात सुनाती है इशारों को कदमों की सरगम तलाश दिलाती है तरानों की आस सुनाती है।

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