Sunday, 22 June 2025

कविता. ५५४६. तरानों की पुकार संग।

                          तरानों की पुकार संग।

तरानों की पुकार संग अरमानों की सरगम अल्फाज देकर जाती है दिशाओं को लम्हों की कोशिश आहट सुनाकर जाती है।

तरानों की पुकार संग आशाओं की समझ किनारा देकर जाती है जज्बातों को कदमों की सुबह आहट सुनाकर जाती है।

तरानों की पुकार संग एहसासों की उमंग उम्मीद देकर जाती है उजालों को आशाओं की महफिल आहट सुनाकर जाती है।

तरानों की पुकार संग नजारों की आस बदलाव देकर जाती है सपनों को खयालों की रोशनी आहट सुनाकर जाती है।

तरानों की पुकार संग अंदाजों की सोच अरमान देकर जाती है अफसानों को राहों की अहमियत आहट सुनाकर जाती है।

तरानों की पुकार संग दास्तानों की सौगात सहारा देकर जाती है किनारों को लहरों की आवाज आहट सुनाकर जाती है।

तरानों की पुकार संग अदाओं की तलाश आवाज देकर जाती है लम्हों को इशारों की आस आहट सुनाकर जाती है।

तरानों की पुकार संग लहरों की पहचान दास्तान देकर जाती है अल्फाजों को नजारों की सुबह आहट सुनाकर जाती है।

तरानों की पुकार संग जज्बातों की कहानी परख देकर जाती है बदलावों को धाराओं की राह आहट सुनाकर जाती है।

तरानों की पुकार संग अफसानों की सोच बदलाव देकर जाती है इरादों को किनारों की परख आहट सुनाकर जाती है।

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कविता. ५५५४. आशाओं की सरगम संग।

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