Sunday, 15 June 2025

कविता. ५५३९. दास्तान की पुकार संग।

                           दास्तान की पुकार संग।

दास्तान की पुकार संग आशाओं की पहचान अरमान जगाती है जज्बातों की रोशनी अक्सर मुस्कान का अफसाना दिलाती है।

दास्तान की पुकार संग अंदाजों की समझ सरगम जगाती है तरानों की सुबह अक्सर आवाज का अफसाना दिलाती है।

दास्तान की पुकार संग दिशाओं की सोच बदलाव जगाती है राहों की कोशिश अक्सर उम्मीद का अफसाना दिलाती है।

दास्तान की पुकार संग नजारों की कोशिश आवाज जगाती है अदाओं की धून अक्सर तलाश का अफसाना दिलाती है।

दास्तान की पुकार संग लहरों की सौगात तराना जगाती है इशारों की आहट अक्सर आस का अफसाना दिलाती है।

दास्तान की पुकार संग कदमों की पहचान इरादा जगाती है किनारों की सोच अक्सर राह का अफसाना दिलाती है।

दास्तान की पुकार संग जज्बातों की आहट एहसास जगाती है लम्हों की अहमियत अक्सर उमंग का अफसाना दिलाती है।

दास्तान की पुकार संग अल्फाजों की दुनिया उजाला जगाती है कदमों की सरगम अक्सर जज्बात का अफसाना दिलाती है।

दास्तान की पुकार संग खयालों की धून बदलाव जगाती है सपनों की कोशिश अक्सर अंदाज का अफसाना दिलाती है।

दास्तान की पुकार संग किनारों की रोशनी कोशिश जगाती है लम्हों की अहमियत अक्सर सोच का अफसाना दिलाती है।

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कविता. ५५५४. आशाओं की सरगम संग।

                          आशाओं की सरगम संग। आशाओं की सरगम संग खयालों की पहचान इशारा सुनाती है कदमों की सौगात अक्सर लम्हों की महफिल देकर जात...