Thursday, 1 May 2025

कविता. ५४९४. हर इशारा अक्सर।

                           हर इशारा अक्सर।

हर इशारा अक्सर एहसासों की कोशिश देकर चलता है दिशाओं को किनारों की सुबह संग सरगम सुनाकर आगे बढ़ता है।

हर इशारा अक्सर आवाजों की धून देकर चलता है अफसानों को कदमों की आस संग एहसास सुनाकर आगे बढ़ता है।

हर इशारा अक्सर जज्बातों की पुकार देकर चलता है आशाओं को अरमानों की सोच संग अफसाना सुनाकर आगे बढ़ता है।

हर इशारा अक्सर अदाओं की बदलाव देकर चलता है तरानों को अफसानों की सौगात संग‌ उम्मीद सुनाकर आगे बढ़ता है।

हर‌ इशारा अक्सर दास्तानों की उमंग देकर चलता है अदाओं को खयालों की आहट संग आवाज सुनाकर‌ आगे बढ़ता है।

हर इशारा अक्सर अंदाजों की पहचान देकर चलता है उजालों को जज्बातों की रोशनी संग कोशिश सुनाकर आगे बढ़ता है।

हर इशारा अक्सर अल्फाजों की राह देकर चलता है उम्मीदों को अफसानों की लहर संग सपना सुनाकर आगे बढ़ता है।

हर इशारा अक्सर लम्हों की दुनिया देकर चलता है लहरों को बदलावों की पहचान संग दास्तान सुनाकर आगे बढ़ता है।

हर इशारा अक्सर उजालों की सोच देकर चलता है आशाओं को अंदाजों की सौगात संग मुस्कान सुनाकर आगे बढ़ता है।

हर इशारा अक्सर लहरों की समझ देकर चलता है धाराओं को लम्हों की अहमियत संग आहट सुनाकर आगे बढ़ता है।

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