Thursday, 17 July 2025

कविता. ५५७१. आवाज की कोई।

                                आवाज की कोई।

आवाज की कोई उम्मीद तराना सुनाती है इरादों को एहसासों की मुस्कान इशारा दिलाती है लम्हों की अहमियत पुकार सुनाकर जाती है।

आवाज की कोई सौगात सरगम सुनाती है जज्बातों को बदलावों की तलाश सपना दिलाती है आशाओं की महफिल पुकार सुनाकर जाती है।

आवाज की कोई समझ पहचान सुनाती है नजारों को दिशाओं की सोच बदलाव दिलाती है खयालों की आहट पुकार सुनाकर जाती है।

आवाज की कोई कोशिश मुस्कान सुनाती है अदाओं को लहरों की कहानी अफसाना दिलाती है राहों की रोशनी पुकार सुनाकर जाती है।

आवाज की कोई आहट सोच सुनाती है दिशाओं को कदमों की परख अरमान दिलाती है उजालों की सुबह पुकार सुनाकर जाती है।

आवाज की कोई उमंग एहसास सुनाती है अल्फाजों को राहों की रोशनी पहचान दिलाती है अंदाजों की सरगम पुकार सुनाकर जाती है।

आवाज की कोई परख मुस्कान सुनाती है लम्हों को दास्तानों की सौगात उम्मीद दिलाती है बदलावों की आस पुकार सुनाकर जाती है।

आवाज की कोई लहर इशारा सुनाती है अंदाजों को तरानों की आस एहसास दिलाती है किनारों की सोच पुकार सुनाकर जाती है।

आवाज की कोई आस अरमान सुनाती है खयालों को नजारों की समझ कोशिश दिलाती है लहरों की कहानी पुकार सुनाकर जाती है।

आवाज की कोई सुबह तलाश सुनाती है अरमानों को अदाओं की तलाश सोच दिलाती है अफसानों की उमंग पुकार सुनाकर जाती है।

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