Friday, 29 August 2025

कविता. ५६१४. किनारों से जुडकर।

                              किनारों से जुडकर।

किनारों से जुडकर आवाजों की धून एहसास दिलाती है कदमों को अल्फाजों की दुनिया सरगम सुनाती है सपनों की आहट सुनाती है।

किनारों से जुडकर आशाओं की सौगात तलाश दिलाती है तरानों को अफसानों की सोच कहानी सुनाती है अदाओं की आहट सुनाती है।

किनारों से जुडकर खयालों की राह अरमान दिलाती है जज्बातों को बदलावों की पुकार पहचान सुनाती है नजारों की आहट सुनाती है।

किनारों से जुडकर लहरों की तलाश कोशिश दिलाती है लम्हों को इरादों की अहमियत उमंग सुनाती है अंदाजों की आहट सुनाती है।

किनारों से जुडकर दिशाओं की महफिल उम्मीद दिलाती है उजालों को सपनों की परख तलाश सुनाती है अरमानों की आहट सुनाती है।

किनारों से जुडकर दास्तानों की समझ आवाज दिलाती है इशारों को अदाओं की सरगम आस सुनाती है इशारों की आहट सुनाती है।

किनारों से जुडकर अंदाजों की सुबह तराना दिलाती है अरमानों को अफसानों की मुस्कान दास्तान सुनाती है तरानों की आहट सुनाती है।

किनारों से जुडकर नजारों की आस अहमियत दिलाती है लहरों को एहसासों की सोच कोशिश सुनाती है अफसानों की आहट सुनाती है।

किनारों से जुडकर उजालों की कोशिश अंदाज दिलाती है उम्मीदों को तरानों की सौगात इरादा सुनाती है खयालों की आहट सुनाती है।

किनारों से जुडकर बदलावों की सोच आवाज दिलाती है आवाजों को धाराओं की पहचान जज्बात सुनाती है उम्मीदों की आहट सुनाती है।


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