Sunday, 7 December 2025

कविता. ५७१४. दिशाओं को किनारों से।

                          दिशाओं को किनारों से।

दिशाओं को किनारों से जुडकर अंदाजों की पुकार एहसास दिलाती है धाराओं को नजारों की आहट सरगम सुनाती है।

दिशाओं को किनारों से जुडकर उजालों की परख अल्फाज दिलाती है राहों को जज्बातों की पुकार सरगम सुनाती है।

दिशाओं को किनारों से जुडकर लहरों की कोशिश खयाल दिलाती है तरानों को बदलावों की कहानी सरगम सुनाती है।

दिशाओं को किनारों से जुडकर आशाओं की कहानी अरमान दिलाती है दास्तानों को अल्फाजों की समझ सरगम सुनाती है।

दिशाओं को किनारों से जुडकर राहों की अहमियत तलाश दिलाती है अरमानों को आशाओं की उमंग सरगम दिलाती है।

दिशाओं को किनारों से जुडकर अदाओं की आवाज सपना दिलाती है अंदाजों को एहसासों की रोशनी सरगम दिलाती है।

दिशाओं को किनारों से जुडकर कदमों की आस इरादा‌ दिलाती है खयालों को लम्हों की अहमियत सरगम दिलाती है।

दिशाओं को किनारों से जुडकर उम्मीदों की तलाश सोच दिलाती है अल्फाजों को इशारों की आवाज सरगम दिलाती है।

दिशाओं को किनारों से जुडकर जज्बातों की रोशनी सुबह दिलाती है कदमों को अफसानों की कोशिश सरगम दिलाती है।

दिशाओं को किनारों से जुडकर तरानों की लहर बदलाव दिलाती है उजालों को दास्तानों की आस सरगम दिलाती है।

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कविता. ५७१४. दिशाओं को किनारों से।

                          दिशाओं को किनारों से। दिशाओं को किनारों से जुडकर अंदाजों की पुकार एहसास दिलाती है धाराओं को नजारों की आहट सरगम सुन...