Saturday, 10 August 2024

कविता. ५२३०. दास्तान किसी नजारे संग।

                             दास्तान किसी नजारे संग।

दास्तान किसी नजारे संग उम्मीद की कहानी सुनाती है जज्बातों को अल्फाजों की लहर सरगम देकर जाती है किनारों को उजालों की सुबह दिलाती है।

दास्तान किसी नजारे संग आवाज की पुकार सुनाती है अरमानों को दिशाओं की कोशिश अहमियत देकर जाती है अदाओं को तरानों की सुबह दिलाती है।

दास्तान किसी नजारे संग रोशनी की तलाश सुनाती है लम्हों को खयालों की पहचान अफसाना देकर जाती है कदमों को इशारों की सुबह दिलाती है।

दास्तान किसी नजारे संग कोशिश की उम्मीद सुनाती है राहों को अल्फाजों की परख खयाल देकर जाती है लहरों को एहसासों की सुबह दिलाती है।

दास्तान किसी नजारे संग आस की पहचान सुनाती है लहरों को आशाओं की कोशिश सहारा देकर जाती है अफसानों को राहों की सुबह दिलाती है।

दास्तान किसी नजारे संग मुस्कान की सौगात सुनाती है अदाओं को तरानों की आस बदलाव देकर जाती है अंदाजों को इरादों की सुबह दिलाती है।

दास्तान किसी नजारे संग सरगम की कोशिश सुनाती है उम्मीदों को कदमों की अहमियत सहारा देकर जाती है आवाजों को अदाओं की सुबह दिलाती है।

दास्तान किसी नजारे संग अंदाज की परख सुनाती है उजालों को किनारों की पुकार अफसाना देकर जाती है लहरों को अरमानों की सुबह दिलाती है।

दास्तान किसी नजारे संग समझ की आस सुनाती है इरादों को आवाजों की धून मुस्कान देकर जाती है बदलावों को लम्हों की सुबह दिलाती है।

दास्तान किसी नजारे संग सोच की आहट सुनाती है अल्फाजों को जज्बातों की सरगम लहर देकर जाती है आशाओं को दिशाओं की सुबह दिलाती है।

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