Tuesday, 31 December 2024

कविता. ५३७३. दास्तान कोई पुकार संग।

                           दास्तान कोई पुकार संग।

दास्तान कोई पुकार संग एहसास सुहाना देती है कदमों को उजालों की पहचान इशारा देती है लहरों को खयालों की मुस्कान देती है।

दास्तान कोई पुकार संग अरमान सुहाना देती है आशाओं को अंदाजों की परख उम्मीद देती है अफसानों को अल्फाजों की मुस्कान देती है।

दास्तान कोई पुकार संग जज्बात सुहाना देती है एहसासों को राहों की कहानी सरगम देती है लम्हों को इशारों की मुस्कान देती है।

दास्तान कोई पुकार संग बदलाव सुहाना देती है उजालों को सपनों की आस कोशिश देती है अंदाजों को कदमों की मुस्कान देती है।

दास्तान कोई पुकार संग अफसाना सुहाना देती है नजारों को दिशाओं की आहट तलाश देती है आवाजों को अदाओं की मुस्कान देती है।

दास्तान कोई पुकार संग तराना सुहाना देती है धाराओं को लम्हों की अहमियत सौगात देती है किनारों को जज्बातों की मुस्कान देती है।

दास्तान कोई पुकार संग उजाला सुहाना देती है उम्मीदों को आशाओं की रोशनी किनारा देती है दिशाओं को आवाजों की मुस्कान देती है।

दास्तान कोई पुकार संग सहारा सुहाना देती है अरमानों को सपनों की सुबह पहचान देती है नजारों को बदलावों की मुस्कान देती है।

दास्तान कोई पुकार संग इशारा सुहाना देती है किनारों को अल्फाजों की रोशनी कोशिश देती है जज्बातों को अंदाजों की मुस्कान देती है।

दास्तान कोई पुकार संग इरादा सुहाना देती है खयालों को लहरों की कहानी सरगम देती है उम्मीदों को कदमों की मुस्कान देती है।

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