Monday, 21 April 2025

कविता. ५४८४. आशाओं की महफिल चुपके से।

                     आशाओं की महफिल चुपके से।

आशाओं की महफिल चुपके से एहसास देती है कदमों को अल्फाजों की दुनिया पहचान सुनाती है तरानों की सरगम दिलाती है।

आशाओं की महफिल चुपके से अल्फाज देती है किनारों को कदमों की सौगात आवाज सुनाती है एहसासों की सरगम दिलाती है।

आशाओं की महफिल चुपके से तलाश देती है अफसानों को सपनों की आहट लहर सुनाती है जज्बातों की सरगम दिलाती है।

आशाओं की महफिल चुपके से मुस्कान देती है खयालों को नजारों की समझ पहचान सुनाती है अल्फाजों की सरगम दिलाती है।

आशाओं की महफिल चुपके से अंदाज देती है इशारों को उजालों की पुकार अहमियत सुनाती है अफसानों की सरगम दिलाती है।

आशाओं की महफिल चुपके से रोशनी देती है जज्बातों को लहरों की कहानी इरादा सुनाती है लम्हों की सरगम दिलाती है।

आशाओं की महफिल चुपके से आस देती है उम्मीदों को तरानों की उमंग दास्तान सुनाती है कदमों की सरगम दिलाती है।

आशाओं की महफिल चुपके से परख देती है राहों को दास्तानों की आवाज तराना‌ सुनाती है दिशाओं की सरगम दिलाती है।

आशाओं की महफिल चुपके से कोशिश देती है इरादों को अरमानों की सोच आस सुनाती है खयालों की सरगम दिलाती है।

आशाओं की महफिल चुपके से दास्तान देती है नजारों को दिशाओं की पहचान मुस्कान सुनाती है बदलावों की सरगम दिलाती है।

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