Tuesday, 16 December 2025

कविता. ५७२३. आशाओं की महफिल संग।

                      आशाओं की महफिल संग।

आशाओं की महफिल संग आवाजों की धून एहसास दिलाती है लहरों को खयालों की अहमियत मुस्कान देकर आगे बढती है।

आशाओं की महफिल संग बदलावों की पुकार रोशनी दिलाती है धाराओं को उम्मीदों की सरगम मुस्कान देकर आगे बढती है।

आशाओं की महफिल संग अंदाजों की सौगात तलाश दिलाती है अफसानों को कदमों की सुबह मुस्कान देकर आगे बढती है।

आशाओं की महफिल संग किनारों की आस पहचान दिलाती है धाराओं को उजालों की परख मुस्कान देकर आगे बढती है।

आशाओं की महफिल संग दास्तानों की उमंग आवाज दिलाती है तरानों को अरमानों की आस मुस्कान देकर आगे बढती है।

आशाओं की महफिल संग तरानों की समझ इरादा दिलाती है अंदाजों को नजारों की पहचान मुस्कान देकर आगे बढती है।

आशाओं की महफिल संग दिशाओं की आहट सोच दिलाती है अल्फाजों को इशारों की तलाश मुस्कान देकर आगे बढती है।

आशाओं की महफिल संग लहरों की सरगम परख दिलाती है उम्मीदों को तरानों की कोशिश मुस्कान देकर आगे बढती है।

आशाओं की महफिल संग राहों की सौगात तलाश दिलाती है दास्तानों को कदमों की राह मुस्कान देकर आगे बढती है।

आशाओं की महफिल संग लम्हों की कहानी अरमान दिलाती है उजालों को सपनों की सरगम मुस्कान देकर आगे बढती है।

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