Wednesday, 19 July 2023

कविता. ४८७२. किनारों की पुकार अक्सर।

                                   किनारों की पुकार अक्सर।

किनारों की पुकार अक्सर दिशाओं से अरमानों संग एहसास की पूंजी देती है तरानों को उम्मीदों की मुस्कान कोशिश देती है लम्हों को खयालों की समझ सुनाती है।

किनारों की पुकार अक्सर उजालों से आवाजों संग दास्तान की पूंजी देती है कदमों को जज्बातों की आहट अहमियत देती है आवाजों को राहों की समझ सुनाती है।

किनारों की पुकार अक्सर सपनों से अंदाजों संग उमंग की पूंजी देती है बदलावों को दिशाओं की कहानी पहचान देती है लहरों को इशारों की समझ सुनाती है।

किनारों की पुकार अक्सर जज्बातों से राहों संग आस की पूंजी देती है लहरों को नजारों की सोच बदलाव देती है कदमों को अदाओं की समझ सुनाती है।

किनारों की पुकार अक्सर अल्फाजों से इशारों संग रोशनी की पूंजी देती है आशाओं को लहरों की सुबह कोशिश देती है खयालों को अंदाजों की समझ सुनाती है।

किनारों की पुकार अक्सर नजारों से उम्मीदों संग मुस्कान की पूंजी देती है अदाओं को तरानों की आहट एहसास देती है अरमानों को आशाओं की समझ सुनाती है।

किनारों की पुकार अक्सर अफसानों से लहरों संग आस की पूंजी देती है अंदाजों को जज्बातों की पुकार सरगम देती है तरानों को उम्मीदों की समझ सुनाती है।

किनारों की पुकार अक्सर इरादों से आशाओं संग उम्मीद की पूंजी देती है दास्तानों को एहसासों की कहानी कोशिश देती है एहसासों को राहों की समझ सुनाती है।

किनारों की पुकार अक्सर एहसासों से कदमों संग तलाश की पूंजी देती है नजारों को दिशाओं की आहट पहचान देती है अल्फाजों को उजालों की समझ सुनाती है।

किनारों की पुकार अक्सर लहरों से अल्फाजों संग रोशनी की पूंजी देती है जज्बातों को राहों की आवाज पुकार देती है नजारों को दिशाओं की समझ सुनाती है।


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