Tuesday, 26 November 2024

कविता. ५३३८. लम्हा किसी पुकार को।

                                लम्हा किसी पुकार को।

लम्हा किसी पुकार को उम्मीदों की कहानी देता है लहरों को आवाजों की धून संग एहसासों की निशानी देता है सपनों को अदाओं की सरगम देता है।

लम्हा किसी पुकार को जज्बातों की तलाश देता है अल्फाजों को कदमों की सोच संग दास्तानों की परख देता है तरानों को राहों की सरगम देता है।

लम्हा किसी पुकार को खयालों की उमंग देता है बदलावों को दिशाओं की कोशिश संग उजालों की रोशनी देता है दास्तानों को आशाओं की सरगम देता है।

लम्हा किसी पुकार को इरादों की सोच देता है किनारों को अरमानों की समझ संग लहरों की मुस्कान देता है अंदाजों को इरादों की सरगम देता है।

लम्हा किसी पुकार को खयालों की समझ देता है एहसासों को अदाओं की सुबह संग जज्बातों की कहानी देता है खुशबुओं को सपनों की सरगम देता है।

लम्हा किसी पुकार को उजालों की पहचान देता है नजारों को दिशाओं की समझ संग किनारों की आहट देता है उम्मीदों को अंदाजों की सरगम देता है।

लम्हा किसी पुकार को बदलावों की लहर देता है राहों को अरमानों की परख संग इशारों की आवाज देता है उजालों को उमंग की सरगम देता है।

लम्हा किसी पुकार को तरानों की नजारा देता है इरादों को किनारों की कहानी संग कदमों की पुकार देता है राहों को लहरों की सरगम देता है।

लम्हा किसी पुकार को दिशाओं की रोशनी देता है खयालों को अंदाजों की सौगात संग अरमानों की कोशिश देता है आवाजों को एहसासों की सरगम देता है।

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