Thursday 17 February 2022

कविता. ४३५६. कभी दिल कहता है।

                                                             कभी दिल कहता है।

कभी दिल कहता है एक आस को चुपके से क्यों न सुना जाए एहसास को मन के अंदर आने कि इजाजत हो लम्हों को किसी राह पर ना छोड़े उसे साथ लेकर क्यों न चला जाएं।

कभी दिल कहता है एक पुकार को सरगम से क्यों न गा ले हमे आशाओं के पंखों पर उड़ान को परखने दो लहरों को किसी धून पर ना छोड़े उसे साथ लेकर क्यों न चला जाएं।

कभी दिल कहता है एक अल्फाज को तरानों से क्यों न समझ लिया जाएं अंदाजों से दास्तानों कि छाया को हटा दो मुस्कान को किसी राह पर ना छोड़े उसे साथ लेकर क्यों न चला जाएं।

कभी दिल कहता है एक पहचान को लहरों संग क्यों न जुड़ जाने दे अरमानों से सपनों कि पुकार को समझा दो आशाओं को किसी सहारे पर ना छोड़े उसे साथ लेकर क्यों न चला जाएं।

कभी दिल कहता है एक सरगम को कदमों से क्यों न परख ले नजारों से अफसानों कि सौगात को आजमा लेने दो आवाजों को किसी आस पर ना छोड़े उसे साथ लेकर क्यों न चला जाएं।

कभी दिल कहता है एक परख को समझ से क्यों न पहचान देकर जाएं जज्बातों से दिशाओं कि सरगम को समझने दो कदम को किसी सुबह पर पर ना छोड़े उसे साथ लेकर क्यों न चला जाएं।

कभी दिल कहता है एक कोशिश को चुपके से क्यों न चल दे खयालों से अल्फाजों कि पुकार को परखने दो आशाओं कि कश्ती को किसी मोड़ पर ना छोड़े उसे साथ लेकर क्यों न चला जाएं।

कभी दिल कहता है एक मुस्कान को समझ लें क्यों न पुकार दे अरमानों से सपनों कि आवाज को बहकने दो खयालों कि उम्मीद को किसी अंधियारे पर ना छोड़े उसे साथ लेकर क्यों न चला जाएं।

कभी दिल कहता है एक सांस को सरगम से जोड़कर क्यों न ज़िन्दगी दे अंदाजों से किनारों कि सोच को आजमाने दो नजारों कि तलाश को किसी सोच पर ना छोड़े उसे साथ लेकर क्यों न चला जाएं।

कभी दिल कहता है एक अल्फाज को किरणों से मिलाकर क्यों न पहचान दे आवाजों से जज्बातों कि आहट को परखने दो उजालों कि कोशिश को किसी रोशनी पर ना छोड़े उसे साथ लेकर क्यों न चला जाएं।

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