Tuesday 22 February 2022

कविता. ४३६१. किसी पुकार संग आशाओं कि।

                                                        किसी पुकार संग आशाओं कि।

किसी पुकार संग आशाओं कि मुस्कान रोशनी दिलाती है दास्तानों से जुड़कर किनारों को अंदाजों कि उम्मीद एहसास सुनाती है।

किसी पुकार संग आशाओं कि उम्मीद आवाज दिलाती है सपनों से परखकर इशारों को अरमानों कि सुबह एहसास सुनाती है।

किसी पुकार संग आशाओं कि परख पहचान दिलाती है लम्हों से समझकर कोशिश को जज्बातों कि सोच एहसास सुनाती है।

किसी पुकार संग आशाओं कि तलाश खयाल दिलाती है लहरों से जुड़कर दास्तानों को बदलावों कि उमंग एहसास सुनाती है।

किसी पुकार संग आशाओं कि सोच इरादा दिलाती है आवाजों से परखकर लम्हों को कदमों कि आहट एहसास सुनाती है।

किसी पुकार संग आशाओं कि सरगम कोशिश दिलाती है अंदाजों से समझकर लहरों को दिशाओं कि रोशनी एहसास सुनाती है।

किसी पुकार संग आशाओं कि बदलाव रोशनी दिलाती है उजालों से जुड़कर कोशिश को तरानों कि उमंग एहसास सुनाती है।

किसी पुकार संग आशाओं कि समझ अफसाना दिलाती है रोशनी से परखकर दिशाओं को राहों कि तलाश एहसास सुनाती है।

किसी पुकार संग आशाओं कि अदा अल्फाज दिलाती है जज्बातों से समझकर दास्तानों को बदलावों कि उम्मीद एहसास सुनाती है।

किसी पुकार संग आशाओं कि कोशिश आस दिलाती है नजारों से जुड़कर बदलावों को सपनों कि मुस्कान एहसास सुनाती है।

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