Monday, 20 May 2024

कविता. ५१७८. आवाज कोई किनारों से।

                               आवाज कोई किनारों से।

आवाज कोई किनारों से एहसास की कहानी सुनाती है लहरों की धून आशाओं को दास्तान की पहचान देकर जाती है दिशाओं को सपना दिलाती है।

आवाज कोई किनारों से आस की पुकार सुनाती है लम्हों की आहट खयालों को अंदाजों की सौगात देकर जाती है इशारों को सपना दिलाती है।

आवाज कोई किनारों से लहर की सरगम सुनाती है नजारों की सुबह अफसानों को दिशाओं की कहानी देकर जाती है राहों को सपना दिलाती है।

आवाज कोई किनारों से जज्बात की पहचान सुनाती है अरमानों की पुकार लहरों को इशारों की आस देकर जाती है इरादों को सपना दिलाती है।

आवाज कोई किनारों से आहट की कोशिश सुनाती है उजालों की सुबह एहसासों को उम्मीदों की सोच देकर जाती है कदमों को सपना दिलाती है।

आवाज कोई किनारों से उमंग की सौगात सुनाती है तरानों की पुकार अरमानों को उजालों की सुबह देकर जाती है दास्तानों को सपना दिलाती है।

आवाज कोई किनारों से सोच की समझ सुनाती है जज्बातों की उम्मीद नजारों को अल्फाजों की तलाश देकर जाती है एहसासों को सपना दिलाती है।

आवाज कोई किनारों से अंदाज की पुकार सुनाती है इशारों की समझ खयालों को इरादों की आस देकर जाती है बदलावों को सपना दिलाती है।

आवाज कोई किनारों से रोशनी की सोच सुनाती है अंदाजों की पहचान उम्मीदों को कदमों की मुस्कान देकर जाती है जज्बातों को सपना दिलाती है।

आवाज कोई किनारों से खयाल की आस सुनाती है अरमानों की परख अफसानों को आशाओं की कोशिश देकर जाती है नजारों को सपना दिलाती है।

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