Tuesday, 11 February 2025

कविता. ५४१५. अरमानों की सोच जुडकर।

                          अरमानों की सोच जुडकर।

अरमानों की सोच जुडकर तराना दिलाती है इशारों को लम्हों का किनारा दिलाती है जज्बातों को सपनों की आहट कोशिश दिलाती है।

अरमानों की सोच जुडकर नजारा दिलाती है कदमों को अल्फाजों का इशारा दिलाती है आशाओं को कदमों की पुकार कोशिश दिलाती है।

अरमानों की सोच जुडकर मुस्कान दिलाती है अंदाजों को अफसानों का रोशनी दिलाती है अदाओं को खयालों की सरगम कोशिश दिलाती है।

अरमानों की सोच जुडकर अल्फाज दिलाती है राहों को आशाओं का पहचान दिलाती है किनारों को लहरों की समझ कोशिश दिलाती है।

अरमानों की सोच जुडकर सुबह दिलाती है जज्बातों को बदलावों का इरादा दिलाती है खयालों को राहों की अहमियत कोशिश दिलाती है।

अरमानों की सोच जुडकर लहर दिलाती है एहसासों को उजालों का तराना दिलाती है अफसानों को सपनों की रोशनी कोशिश दिलाती है।

अरमानों की सोच जुडकर आवाज दिलाती है लम्हों को इशारों का उमंग दिलाती है दिशाओं को जज्बातों की पुकार कोशिश दिलाती है।

अरमानों की सोच जुडकर अंदाज दिलाती है खयालों को अंदाजों का नजारा दिलाती है बदलावों को धाराओं की समझ कोशिश दिलाती है।

अरमानों की सोच जुडकर मुस्कान दिलाती है कदमों को अल्फाजों की दुनिया दिलाती है नजारों को दिशाओं की परख कोशिश दिलाती है।

अरमानों की सोच जुडकर पहचान दिलाती है उम्मीदों को एहसासों की सरगम दिलाती है लम्हों को इशारों की आहट कोशिश दिलाती है।


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