Thursday, 27 February 2025

कविता. ५४३१. जज्बात संग मुस्कान अक्सर।

                      जज्बात संग मुस्कान अक्सर।

जज्बात संग मुस्कान अक्सर एहसासों की दुनिया दिलाती है लहरों को खयालों की समझ अफसाना देकर चलती है।

जज्बात संग मुस्कान अक्सर आशाओं की सरगम दिलाती है अंदाजों को सपनों की आहट अफसाना देकर जाती है।

जज्बात संग मुस्कान अक्सर अरमानों की सोच दिलाती है राहों को दास्तानों की रोशनी अफसाना देकर जाती है।

जज्बात संग मुस्कान अक्सर आवाजों की पुकार दिलाती है लम्हों को इशारों की आस अफसाना देकर जाती है।

जज्बात संग मुस्कान अक्सर किनारों की कोशिश दिलाती है इरादों को बदलावों की पुकार अफसाना देकर जाती है।

जज्बात संग मुस्कान अक्सर नजारों की तलाश दिलाती है किनारों को कदमों की पहचान अफसाना देकर जाती है।

जज्बात संग मुस्कान अक्सर उजालों की सोच दिलाती है खयालों को अरमानों की अहमियत अफसाना देकर जाती है।

जज्बात संग मुस्कान अक्सर दास्तानों की लहर दिलाती है एहसासों को तरानों की अल्फाज अफसाना देकर जाती है।

जज्बात संग मुस्कान अक्सर दिशाओं की कोशिश दिलाती है उम्मीदों को नजारों की उमंग अफसाना देकर जाती है।

जज्बात संग मुस्कान अक्सर धाराओं की समझ दिलाती है आवाजों को इरादों की सुबह अफसाना देकर जाती है।

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कविता. ५४७८. एक कोशिश अक्सर।

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