Saturday, 22 February 2025

कविता. ५४२६. लहरों की पुकार अक्सर।

                        लहरों की पुकार अक्सर।

लहरों की पुकार अक्सर अलगसी सरगम देती है कदमों को उम्मीदों की आहट बदलाव देकर चलती है किनारों को कोशिश देती है।

लहरों की पुकार अक्सर अलगसी आवाज देती है तरानों को इशारों की आस अरमान देकर चलती है नजारों को कोशिश देती है।

लहरों की पुकार अक्सर अलगसी सोच देती है अफसानों को दिशाओं की समझ पहचान देकर चलती है जज्बातों को कोशिश देती है।

लहरों की पुकार अक्सर अलगसी उमंग देती है किनारों को सपनों की आवाज तलाश देकर चलती है दास्तानों को कोशिश देती है।

लहरों की पुकार अक्सर अलगसी तरंग देती है खयालों को उजालों की रोशनी बदलाव देकर चलती है अदाओं को कोशिश देती है।

लहरों की पुकार अक्सर अलगसी सौगात देती है एहसासों को राहों की सुबह सपना देकर चलती है आशाओं को कोशिश देती है।

लहरों की पुकार अक्सर अलगसी पहचान देती है उम्मीदों को तरानों की आहट आवाज देकर चलती है दिशाओं को कोशिश देती है।

लहरों की पुकार अक्सर अलगसी समझ देती है धाराओं को अंदाजों की सोच सौगात देकर चलती है कदमों को कोशिश देती है।

लहरों की पुकार अक्सर अलगसी मुस्कान देती है इशारों को जज्बातों की रोशनी बदलाव देकर जाती है आवाजों को कोशिश देती है।

लहरों की पुकार अक्सर अलगसी परख देती है नजारों को राहों की अहमियत अफसाना देकर जाती है अल्फाजों को कोशिश देती है।

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