Sunday, 28 December 2025

कविता. ५७३५. दास्तान कोई उम्मीद संग।

                         दास्तान कोई उम्मीद संग।

दास्तान कोई उम्मीद संग आशाओं की लहर‌ सुनाती है अफसानों को आवाजों की धून एहसास दिलाती है कोशिश देकर आगे बढती है।

दास्तान कोई उम्मीद संग नजारों की आहट सुनाती है तरानों को अरमानों की सौगात तलाश दिलाती है लहर देकर आगे बढती है।

दास्तान कोई उम्मीद संग जज्बातों की आस सुनाती है अल्फाजों को कदमों की सरगम आवाज दिलाती है अदा देकर आगे बढती है।

दास्तान कोई उम्मीद संग दिशाओं की पहचान सुनाती है खयालों को सपनों की आहट बदलाव दिलाती है आवाज देकर आगे बढती है।

दास्तान कोई उम्मीद संग अंदाजों की पुकार सुनाती है एहसासों को उजालों की समझ कोशिश दिलाती है आस देकर आगे बढती है।

दास्तान कोई उम्मीद संग धाराओं की समझ सुनाती है इरादों को बदलावों की पुकार अहमियत दिलाती है सपना देकर आगे बढती है।

दास्तान कोई उम्मीद संग किनारों की उमंग सुनाती है अंदाजों को अल्फाजों की दुनिया पहचान दिलाती है रोशनी देकर आगे बढती है।

दास्तान कोई उम्मीद संग तरानों की सौगात सुनाती है कदमों को धाराओं की समझ सुबह दिलाती है खयाल देकर आगे बढती है।

दास्तान कोई उम्मीद संग लम्हों की कहानी सुनाती है आशाओं को सपनों की पुकार किनारा दिलाती है दिशा देकर आगे बढती है।

दास्तान कोई उम्मीद संग धाराओं की सोच सुनाती है अंदाजों को नजारों की कोशिश तलाश दिलाती है आहट देकर आगे बढती है।


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