Saturday 20 May 2023

कविता. ४८१२. किनारों कि पुकार से।

                                     किनारों कि पुकार से।

किनारों कि पुकार से आशाओं कि लहर पहचान देती है दास्तानों कि परख संग अल्फाजों कि मुस्कान सहारा देकर जाती है खयाल सुनाती है।

किनारों कि परख से आवाजों कि धून सौगात देती है कदमों कि आहट संग अरमानों कि पहचान इशारा देकर जाती है अफसाना सुनाती है।

किनारों कि परख से उजालों कि सुबह दास्तान देती है नजारों कि सोच संग अंदाजों कि आस अहमियत देकर जाती है कोशिश सुनाती है।

किनारों कि परख से जज्बातों कि मुस्कान रोशनी देती है अल्फाजों कि समझ संग अफसानों कि पुकार राह देकर जाती है बदलाव सुनाती है।

किनारों कि परख से उम्मीदों कि सोच पहचान देती है तरानों कि दास्तान संग इशारों कि एहसास कोशिश देकर जाती है सरगम सुनाती है।

किनारों कि परख से अंदाजों कि तलाश आस देती है उजालों कि सौगात संग कदमों कि आहट रोशनी देकर जाती है अरमान सुनाती है।

किनारों कि परख से दास्तानों कि अदा कोशिश देती है बदलावों कि सोच संग अरमानों कि पुकार आवाज देकर जाती है आवाज सुनाती है।

किनारों कि परख से दिशाओं कि कहानी आहट देती है नजारों कि सुबह संग अल्फाजों कि सरगम सोच देकर जाती है कोशिश सुनाती है।

किनारों कि परख से उजालों कि सोच पुकार देती है इशारों कि समझ संग उम्मीदों कि लहर इशारा देकर जाती है सौगात सुनाती है।

किनारों कि परख से राहों कि परख सपना‌ देती है एहसासों कि रोशनी संग दिशाओं कि कहानी पहचान देकर जाती है तलाश सुनाती है।

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