Saturday, 27 May 2023

कविता. ४८१९. उमंग कि डोर पर।

                                         उमंग कि डोर पर।

उमंग कि डोर पर आशाओं कि कहानी बनती है दिशाओं संग अरमानों कि निशानी बनती है एहसासों को अदाओं कि पुकार इरादे देती है।

उमंग कि डोर पर अंदाजों कि पहचान बनती है कदमों संग उजालों कि तलाश बनती है दास्तानों को आवाजों कि धून इरादे देती है।

उमंग कि डोर पर आवाजों कि कोशिश बनती है किनारों संग दास्तानों कि परख बनती है अरमानों को खयालों कि लहर इरादे देती है।

उमंग कि डोर पर जज्बातों कि आहट बनती है नजारों संग अल्फाजों कि मुस्कान बनती है तरानों को लम्हों कि पुकार इरादे देती है।

उमंग कि डोर पर दास्तानों कि सौगात बनती है अरमानों संग आशाओं कि सरगम बनती है जज्बातों को कदमों कि समझ इरादे देती है।

उमंग कि डोर पर अल्फाजों कि मुस्कान बनती है आवाजों संग दास्तानों कि कोशिश बनती है नजारों को उम्मीदों कि लहर इरादे देती है।

उमंग‌ कि डोर पर लहरों कि सुबह बनती है अफसानों संग किनारों कि सौगात बनती है अरमानों को इशारों कि समझ इरादे देती है।

उमंग कि डोर पर दिशाओं कि आस बनती है अंदाजों संग कदमों कि आहट बनती है एहसासों को सपनों कि कोशिश इरादे देती है।

उमंग कि डोर पर किनारों कि कोशिश बनती है राहों संग आशाओं कि सोच बनती है आवाजों को किनारों कि आहट इरादे देती है।

उमंग कि डोर पर अरमानों कि तलाश बनती है जज्बातों संग बदलावों कि आवाज बनती है तरानों को नजारों कि पहचान इरादे देती है।



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